काम काम दिन रात है, पैसे की दरकार ।
और और की चाह में, हुये सोच बीमार ।।
रूपया ईश्वर है नही, पर सब टेके माथ ।
जीवन समझे धन्य हम, इनको पाकर साथ ।।
मंदिर मस्जिद देव से, करते हम फरियाद ।
अल्ला मेरे जेब भर, पसरा भौतिक वाद ।।
निर्धनता अभिशाप है, निश्चित समझे आप ।
कोष बड़ा संतोष है, मत कर तू संताप ।।
धरे हाथ पर हाथ तू, सपना मत तो देख ।
करो जगत में काम तुम, मिटे हाथ की रेख ।।
बात नही यह दोहरी, है यही गूढ ज्ञान ।
धन…
Added by रमेश कुमार चौहान on August 3, 2014 at 10:00pm — 7 Comments
ये रिमझिम सावन, अति मन भावन, करते पावन, रज कण को ।
हर मन को हरती, अपनी धरती, प्रमुदित करती, जन जन को ।
है कलकल करती, नदियां बहती, झर झर झरते, अब झरने ।
सब ताल तलैया, डूबे भैया, लोग लगे हैं, अब डरने ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on August 3, 2014 at 6:30pm — 10 Comments
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