१ २ २ / १ २ २ / १ २ २ /१ २
याँ कुछ लोग जीते भलों के लिए
जिओ जिंदगी दूसरों के लिए |
गुणों की नहीं माँग दुख वास्ते
सकल गुण जरुरी सुखों के लिए |
मैं गर मुस्कुराऊं, तू मुँह मोड़ ले
शिखर क्यूँ चढूं पर्वतों के लिए ?
मैं किस किस की बातें सुनाऊं यहाँ
जले शमअ कोई शमो के लिए |
मकाँ और दुकाने जो भी हैं यहाँ
जवाँ केलिए ना बड़ों के लिए |
मौलिक…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 24, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
कुकुभ छंद -२
जीवन में दुःख के लिए तो, गुण जरुरी नहीं होता
हमेशा दुख है घुसपैटिया, अनाहूत पाहुन होता |
योग्यता, प्रतिभा जरूरी है, गर दिल में सुख की इच्छा
चढ़ता वही पर्वत शिखर पर, जिसमे है सशक्त स्वेच्छा |
प्रकृति कब कुपित हो लोगों से, कोई नहीं कभी जाने
करते गलती मानव जग में, कभी भूल से अनजाने |
जल प्रलय में डूबे हजारों, मकान थे नदी किनारे
ज़खमी न जाने जितने हुए, कितने अल्ला को प्यारे |
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 23, 2016 at 10:19am — 5 Comments
भारत में हर मास में, होता इक त्यौहार
केवल सावन मास है, पर्वों से भरमार |1|
रस्सी बांधे साख में, झूला झूले नार
रिमझिम रिमझिम वृष्टि में, है आनन्द अपार |२|
जितने हैं गहने सभी, पहन कर अलंकार
साथ हरी सब चूड़ियाँ, बहू करे श्रृंगार |३|
काजल बिन्दी साड़ियाँ, माथे का सिन्दूर
और देश में ये नहीं, सब हैं इन से दूर |४|
कभी तेज धीरे कभी, कभी मूसलाधार
सावन में लगती झड़ी, घर द्वार अन्धकार…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 6, 2016 at 8:00am — 4 Comments
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