2122 2122 2122 २१२
आज ये महफ़िल सजाकर आप क्यूँ गुम हो गये
हमको महफ़िल में बुलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
पोखरों को पार करना भी न सीखा है अभी
सामने सागर दिखाकर आप क्यूँ गुम हो गये
लहरों से डरकर खड़े थे हम किनारों पर यहाँ
हौसला दिल में जगाकर आप क्यूँ गुम हो गये
तीरगी के साथ में तूफ़ान भी कितने यहाँ
इक दफा दीपक जलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
आपकी ये खामुशी चुभती है नश्तर सी हमें
हमको यूं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 24, 2014 at 3:01pm — 15 Comments
221 2121 1221 212
जल जल के सारी रात यूं मैंने लिखी ग़ज़ल
दर दर की ख़ाक छान ली तब है मिली ग़ज़ल
मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ
पाकर शबाब गुल का ही ऐसे खिली ग़ज़ल
मदमस्त शाम साकी सुराही भी जाम भी
हल्का सा जब सुरूर चढ़ा तब बनी ग़ज़ल
शबनम कभी बनी तो है शोला कभी बनी
खारों सी तेज चुभती कभी गुल कली ग़ज़ल
चंदा की चांदनी सी भी सूरज कि किरणों सी
हर रोज पैकरों में नए है ढली…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2014 at 1:30pm — 13 Comments
२१२२ २१२२ २1२२
जब भी सागर बनने इक दरिया चला है
पत्थरों को राह के हरदम खला है
जूझते दरिया पे जो कसते थे ताने
आज जलवे देख हाथों को मला है
यूं नहीं बढ़ता है कोई जिन्दगी में
बढ़ने वाला रात दिन हरदम चला है
अपने ही हाथों से रोका था हवा को
तब कहीं ये दीप आंधी में जला है
दोस्तों जिस को गले हमने लगाया
बस रहा अफ़सोस उसने ही छला है
मौलिक व…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2014 at 4:00pm — 14 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
ख्वाब जब दिल में हसीं पलने लगे है
अजनबी दो साथ में चलने लगे हैं
इश्क कोई अनबुझी सी है पहेली
जब हुआ सावन में तन जलने लगे हैं
वक़्त के अंदाज बदले यूं समझ लो
हुश्न आते पल्लू भी ढलने लगे हैं
आप के शानो पे सर रखते कसम से
लम्हे मेरी मौत के टलने लगे हैं
जिस घड़ी ओंठो को गुल के चूम बैठा
उस घड़ी से भौरों को खलने लगे हैं
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 4:30pm — 11 Comments
समस्त गुरुओं को सादर प्रणाम के साथ
2122 2122 2122 22/112
रास्ता रब का हमें जिसने दिखाया यारों
कह गुरु उसको है सर हमने झुकाया यारों
ज्ञान दीपक से किया जिसने जहाँ को रोशन
फन भी जीने का हमें उसने सिखाया यारों
भेद मजहब में कभी उसने किया ही है नहीं
पाठ उल्फत का ही कौमों को पढ़ाया यारों
नाम चाहे हो जुदा सब का है मालिक इक ही
गूढ़ बातों को सहज उसने बताया यारों
हाथ अन्दर से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 4, 2014 at 12:46pm — 12 Comments
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