मैं फूल इक छुपा दूँ दिल में किताब रखना
तैयार कल उसी में अपना जबाब रखना
वो सामने कहूँगा जो बात सच लगी है
तुम नाम चाहे मेरा खानाखराब रखना
कैसा एजाज़ वल्लाह कैसा हुनर है तुझमे
होटों पे इक तबस्सुम दिल में अज़ाब रखना
ले लेगी जान मेरी तेरी अदा कसम से
इस वक्त-ए-वस्ल में भी मुख पे निकाब रखना
पीकर जिसे सुखनवर अशआर दिल के कह दे
ज़ज्बात के समंदर ऐसी शराब रखना
मैं खुश रहूँ वहाँ पर है…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 24, 2016 at 10:45am — 16 Comments
खोलो दिल के वातायन प्रिय मैं आऊँगी
अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी
अलकन में नम शीत मलय की
बाँध पंखुरी
पंकज की पाती से भरकर
मेह अंजुरी
ऊषा की लाली से लाल
हथेली रचकर
कंचन के पर्वत से पीली
धूप खुरच कर
कोना कोना मैं ऊर्जा से भर जाऊँगी
अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी
सुरभित कुसुमो के सौरभ को
भींच परों में
चार दिशाओं के गुंजन को
सप्तसुरों में
बन…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 11, 2016 at 8:30am — 14 Comments
घुर्र्र घुर्र.. फट. फट..फट..फट ... “या अल्लाह आग लगे इसकी फटफटिया को मरदूद कहीं का जब देखो हमें फूँकने के लिए घर के सामने ही फट फट करता रहता है इसे दूसरे के सिर दर्द की क्या परवाह ” |
“बस करो.. बस करो.. बेगम, क्यूँ बिला बजह कोसती रहती हो, आग लगे.. आग लगे.. हरदम यही बददुआ देती रहती हो खुदा से डरो मोटरसाइकिल है तो आवाज तो करेगी ही”|
“बस बस!! तुम तो चुप ही रहो तुम्हें कुछ समझ नही आता| अब्बाजान को भी कितनी तकलीफ होती है ये तेज आवाज सुनकर मालूम है ” |
“किसी को…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 6, 2016 at 11:31am — 29 Comments
किश्तियों का छोड़ चप्पू
रौंदते पगडंडियों को
पत्थरों की नोक से
घायल करें उगता सवेरा
आग में लिपटे हुए हैं
पाखियों के आज डैने
करगसों के हाथ में हैं
लपलपाती लालटेनें
कोठरी में बंद बैठी
ख्वाहिशों की आज मन्नत
फाड़ कर बुक्का कहीं पे
रो रही है देख जन्नत
जुगनुओं की अस्थियों को
ढो रहा काला अँधेरा
घाटियों की धमनियों से
रिस रहा है लाल पानी
जिस्म में छाले पड़े हैं
कोढ़…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 2, 2016 at 10:30am — 25 Comments
मई जून का महीना आग बरसाता हुआ सूरज ऊपर से सामर्थ्य से ज्यादा भरी हुई खचाखच बस, पसीने से बेहाल लोग रास्ता भी ऐसा कहीं छाया या हवा का नाम निशान नहीं बस भी मानों रेंगती हुई चल रही हो| एक को गोदी में एक को बगल में बिठाए बच्चों को लेकर रेवती सवारियों के बीच में भिंची हुई बैठी थी| मुन्नी ने पानी माँगा तो रेवती ने बैग से गिलास निकाल कर पैरों के पास रक्खे हुए केंपर से बर्फ मिला ठंडा ठंडा पानी दोनों बच्चों को पिला दिया |पानी देखकर न जाने कितने अपने होंठों को जीभ से गीला करने…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 1, 2016 at 12:17pm — 14 Comments
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