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Rajesh kumari's Blog – September 2017 Archive (3)

आईने में सिंगार कौन करे (फिलबदीह ग़ज़ल 'राज')

2122     1212  22

.

दिल को फिर बेकरार कौन करे

आपका ऐतबार कौन करे

 

कत्ल का दिन अगर मुकर्रर है

 ज़िन्दगानी से प्यार कौन करे

 …

Continue

Added by rajesh kumari on September 25, 2017 at 12:30pm — 39 Comments

पशेमान सूरज पिघलने लगा(ग़ज़ल राज )

122 122 122 12

अना का जो खुर्शीद ढलने लगा

क़मर हसरतों का निकलने लगा

हटे मकड़ियों के वो जाले सभी

मेरा खस्ता घर भी सँभलने लगा

मुहब्बत का छोटा सा दीपक मेरा

ग़मों का अँधेरा निगलने लगा

मेरे आंसुओं की बनी झील में

पशेमान सूरज पिघलने लगा

चमन पर हुआ अब्र ज्यों महरबां

खजाँ का तभी रुख़ बदलने लगा

खुदा का करम चार हाथों से ये

सफीना मेरा आज चलने…

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Added by rajesh kumari on September 22, 2017 at 2:46pm — 6 Comments

भले ही आईने धोये हुए हैं (फिल्बदीह ग़ज़ल 'राज')

१२२२  १२२२  १२२

चढ़े सूरज तलक सोए हुए हैं

किसी की याद में खोए हुए हैं

 

ग़ज़ल लिक्खी हुई है आंसुओं से

कहें किससे कि हम रोये हुए हैं

 

तभी भीगा हुआ तकिया मिला है

इसे अश्कों से हम धोये  हुए हैं

 

कमर टूटी ज़फ़ा की चोट खाकर 

मगर फिर भी वफ़ा ढोए हुए हैं

 

वहाँ चर्चा हमारा हो रहा है

न जाने हम कहाँ खोए हुए हैं

 

तुम्हारे दाग ज्यों के त्यों दिखेंगे

भले ही  आईने धोए हुए…

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Added by rajesh kumari on September 20, 2017 at 5:00pm — 20 Comments

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"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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