ये गाथा मजदूर की, जिसके नाना रूप।
पत्थर तोड़े हाथ से, बारिश हो या धूप।।
कड़ी धूप में पिस रही, रोटी की ले आस।
पानी की दो घूँट से, बुझा रही है प्यास।।
सर पर ईंटें पीठ पर, लादे अपना लाल।
मानवता कुछ ढूँढती, लेकर कई सवाल।।
वे भी जन इस देश के, करते हैं निर्माण।
पर खुद जीने के लिये, झोंके अपने प्राण।।
उनको हो सबकी तरह, जीने का अधिकार।
उनके कर्मठ हाथ हैं, विकास का आधार
-मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:04am — 10 Comments
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हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये
ये माहो शम्स गुल मेरी पहचान बन गये
जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये
बदकिस्मती से आज निगहबान बन गये
आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो
मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये
चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की
वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये
जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक
कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये
सूरत बदल गई…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on September 25, 2014 at 7:54am — 20 Comments
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