नींद कहीं फिर आ ना जाए , डर लगता है,
ख्वाब वही फिर आ ना जाए, डर लगता है ।
सावन सा वो बरस रहा है मन आँगन में ,
मौसम कहीं बदल ना जाए, डर लगता है…
Added by ARVIND BHATNAGAR on September 13, 2013 at 3:00pm — 21 Comments
जाने क्या क्या लोग कहेंगे , किस किस को समझाओगे ,
जिसको वफ़ा समझते हो, उस गलती पर पछताओगे ।
हँसते चेहरे ,सुंदर चेहरे , कितने भोले - भाले चेहरे ,
इस तिलिस्म में पड़े अगर तो , बाहर न आ पाओगे ।
आसमान में उड़ो परिंदे , पंखों पर विश्वास करो ,
इस से ज्यादा खिली धूप और खुली हवा कब पाओगे ।
भींगी पलकें , उतरे चेहरे , वो सपनो का गाँव , गली ,
पीछे मुड़ के नहीं देखना, पत्थर के हो जाओगे ।
चलो उठो दो चार कदम ही , उस…
ContinueAdded by ARVIND BHATNAGAR on September 8, 2013 at 9:30pm — 16 Comments
पहरों उन के साथ बिताये ,
दिल की बात नहीं कह पाए ।
तेरी खिड़की तनिक खुली है ,
शायद धूप निकल ही आये ।
इसी आस पर जीते हैं हम ,
शायद उनको प्यार आ जाए ।
दिल की बात कहाँ तक माने ,
दिल तो हर शै पर आ जाए ।
आज खुले रखो दरवाजे,
आज कोई शायद आ जाए ।
उन के अफ़साने में सुनना ,
शायद मेरा नाम आ जाए ।।
मुझको खंजर मारने वाले ,
तुझको मेरी उम्र लग जाए ।
आते जाते मिल जाते हो…
ContinueAdded by ARVIND BHATNAGAR on September 6, 2013 at 11:30pm — 13 Comments
एक
तुम
मुझे ऐसे मिले
जैसे कि मंदिर में किसी
देवता के आगे
फैली
अंजलि में
फूल
देव मस्तक का
आ कर के गिरे /
या किसी प्यासे पपीहे को
मिले
एक बूँद पानी ।
प्यार सी
नजरो को छू कर
तुम खिले ऐसे
कि जैसे
ऋतु बसंत में
किसी कम्पित डाली पर
सोई कली
मंद , शीतल पवन का
स्पर्श पा कर के खिले /
या खिले कवि ह्रदय कोई
देख कर वर्षा सुहानी…
Added by ARVIND BHATNAGAR on September 2, 2013 at 9:00pm — 15 Comments
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