छोटी छोटी बातें बने आस्था के प्रश्न जब ,
बातें बड़ी बड़ी जाने क्यों बिसा र जाते है
अन्नदाता को तो है पिलाते दूध हम किन्तु ,
नौनिहाल देश की प्यासे मर जाते है
द्रौपदी के हिय की व्यथा सुनेगा कौन यहाँ
कृष्ण की चरित्र जब सत्ता की निमित्त हों
कैसे होंगे सीमित दु:शासनों के आचरण
कुंती पुत्र जब आत्मदाह को प्रवत्त हों
कैसे राष्ट्रगान राष्ट्र चिंतन करेगा कोई
पेट को भूख को अंगारे छलते हो मित्र
कैसे होगा देश का भविष्य खुशहाल भला
सड़कों पे जब वर्त्तमान…
Added by ajay sharma on September 30, 2012 at 11:30pm — 2 Comments
बदल गयी नियति दर्पण की चेहेरो को अपमान मिले है ,
निस्ठायों को वर्तमान में नित ऐसे अवसान मिले है
शहरों को रोशन कर डाला गावों में भर कर अंधियारे
परिवर्तन की मनमानी में पनघट लहूलूहान मिले है,
चाह कैस्तसी नागफनी के शौक़ जहाँ पलते हों केवल
ऐसे आँगन में तुलसी को अब जीवन के वरदान मिले है ,
भाग दौड़ के इस जीवन में मतले बदल गए गज़लों के
केवल शो केसों में…
Added by ajay sharma on September 27, 2012 at 10:00pm — 3 Comments
शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |
शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||
सूरज की आँखों में कोहरे की चुभन रही
धुप के पैरो में मेहंदी की थूपन रही
शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को
समझ गए रिक्शे भी भीड़ के इशारों को
बच्चो के खेल सब कमरों में गए बिखर
ठिठक गए चौराहे भी खम्भों के इधर उधर
सुलग उठे हल्के हल्के बल्बों के मन उदास
शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |
शीत के दुर्दिन का…
Added by ajay sharma on September 25, 2012 at 11:30pm — No Comments
मासिक वेतन मीत है पेंसन है सम्बन्ध |
जीवन अंधी खोह है न सूरज न चंद |
इअमाई लोन का है वेतन पर राज | |
टीडीएस इस कोढ़ को बना रहा है खाज|
कन्याये है कैजुअल लड़के अर्जित आवकाश | |
इक तरसती मोह को दूजा देता त्रास | |
काम सभी छोटे बड़े जब लगते है खास |
आकस्मिक की छुटिया करती है उपहास ||
आकस्मिक , अर्जित सभी जब हो गयी उपभोग |
मना रहे है छुटिया बना बना कर रोग | |
महगाई के बोझ से बोनस गया लुकाय |
ऐसे में एस्ग्रीसिया मरहम…
Added by ajay sharma on September 25, 2012 at 10:30pm — 1 Comment
Added by ajay sharma on September 23, 2012 at 10:30pm — 9 Comments
माँ होती तो ऐसा होता माँ होती तो वैसा होता
खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको
जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से
कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?
पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको
कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता
माँ तुम ही हो एक सहारा तब तुम कहते अच्छा होता
माँ होती तो ऐसा होता…
Added by ajay sharma on September 22, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
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