!!! सावधान !!!
रूप घनाक्षरी (32 वर्ण अन्त में लघु)
दंगा करार्इये खूब, जीना सिखार्इये खूब, हर हाल में जीना है, कांटे बिछार्इये खूब।
अवसर भुनार्इये, जाति-धर्म लड़ार्इये, सौहार्द-भार्इचारा को, जिंदा जलार्इये खूब।।
गाते रहे तिमिर में, झींगुर श्वांस लय में, सर्प-बिच्छू देव सम, बाहें बढ़ार्इये खूब।
नारी दुर्गा काली सम, जया शक्ति यशो गुन, महिषा-भस्मासुर सा, नाच दिखार्इये खूब।।
के0पी0सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 30, 2013 at 9:10pm — 15 Comments
!!! फकीरी में विरासत है !!!
जगो जालिम बढ़ो देखो
मिलन की र्इद आयी है,
दिवा से शाम तक सजदा
रात में तीर कसता है।
भुलाकर प्रेम की बातें
बढ़ाता द्वेष भावों को,
खुदा की शान को गाये
संभाले दीन की राहें।
मगर आयत भुला कर तू
सदा हैरान करता है,
करम है कत्ल अपनों का
बना तू पीर फिरता है।
गुनाहों को छिपाता है
खुदा को ताख में रखता,
चलाता तीर औ खंजर
नमाजी बन करे धोखा।
करे है घाव नश्तर से
छुरा…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 15, 2013 at 8:14am — 5 Comments
!!! डर गई है यह धरा !!!
बह्र -2122 212
मिल गया रब देख ले।
क्या मिला सब देख ले।।
जिंदगी है मौत सी,
कल कहां कब देख ले।
राम जाने क्या हुआ,
आसमां अब देख ले।
रात काली हो गयी,
बर्फ का ढब देख ले।
कल जहां पर जश्न था,
मौत-घर अब देख ले।
फिर अहम आलाप है,
भोर की शब देख ले।
हम किसे आवाज दे,
साथ में रब देख ले।
रात ढलती जा रही,
निश अजायब देख ले।
आज आभा…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 14, 2013 at 5:57am — 12 Comments
!!! पाठशाला बेमुरव्वत !!!
लोग मन को जांचते हैं,
भांप कर फिर काटते हैं।।
जब किसी का हाथ पकड़ें,
बेबसी तक थामते हैं।
धूप में बरसात में भी,
छांव-छतरी झांकते हैं।
दोस्तों से दुश्मनी जब,
रास्ते ही डांटते हैं।
छोड़ते हैं दर्द विषधर
बालिका को साधते हैं।
आज गरिमा मर चुकी जब,
गीत - कविता भांपते हैं।
जिंदगी में शोर बढ़ता
रिश्ते सारे सालते हैं।
पाठशाला…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 10, 2013 at 10:22pm — 20 Comments
!!! सुख सभी तो चाहते हैं !!!
गजल बह्र - 2 1 2 2 2 1 2 2
प्रेम पूंजी बांटते हैं।
सुख सभी तो चाहते हैं।
दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।
सुख बड़े चंचल भटक कर,
पल में घर से भागते हैं।
रोशनी जब भी निकलती,
चांद - सूरज ताकते हैं।
फिर कभी उलझन न होती,
सांझ सुख मिल बांटते हैं।
चांदनी जब तरू में उलझी,
वृक्ष साया शापते हैं।
गर किसी ने की…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 7, 2013 at 9:26am — 18 Comments
!!! आत्मा रोज सफल है !!!
बह्र- 2122 1122 1122 112
दीप तन तेल पिए, गर्व बढ़ाये न बने।
ज्ञान बाती से मिले, तेज बुझाये न बने।।
रोशनी खूब बढ़े, रात छिपाती मुख को,
भोर में भानु उदय, आंख मिलाये न बने।।
हम सफर राह में, मिलते हैं बिछड़ जाते हैं।
छोड़ते दर्द दिलों में, ये मिटाये न बने।।
तेल औ दीप मिले, तर्क खड़ा मौन रहे,
तेज लौ मस्त जले, अर्श बताये न बने।।
आत्मा रोज सफल है, सुविचारक बनकर।
जिन्दगी आज…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 7, 2013 at 9:15am — 14 Comments
!!! बूट पालिश !!!
एक मानुष की
कहानी
पढ़ गया कुछ
ढेर सारा
कर वकालत बुध्दि खोयी।
हो गया पागल
फकीरा!
घोर कलियुग में
बेचारा!
प्रेम पूरित बात करता।
चोप! चप चप
बक-बकाता,
बूट पालिश का
समां सब
साथ रखता,... बूट पालिश!
चोप! चप चप बक बकाता,
दौड़ कर फिर
रूक गया वह
चाय पीना याद आया।
एक चाहत,
चाय पीना
पूछता है चाय
वाला
क्या? फकीरा जज बनेगा!
हंस - हंसाता, चाय वाला।
कुछ इशारा कर
बढ़ा…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 5, 2013 at 7:01pm — 24 Comments
!!! मां शारदे !!! //हरिगीतिका छन्द//
तुम दिव्य देवी बृहम तनुजा हृदय करूणा धारिणी।
संगीत वीणा ताल सरगम धर्म बृहमा चारिणी।।
कर कमल धारण हंस वाहन ज्ञान पुस्तक वाचिनी।
अति मधुर कोमल दया समता प्रेम रसता रागिनी।।1
कल्याणकारी सत्यधारी श्वेत वसनं शोभनं।
संसार सारं कंज रूपं वेद ज्ञानं बोधनं।।
मन प्रीत प्यारी रीति न्यारी प्रकृति सारी धारती।
सब देव-दानव जीव-मानव शरण आते तारती।।2
उध्दार करती द्वेष हरती पाप-संकट काटती।
तुम तेज रूपं…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 1, 2013 at 10:29pm — 16 Comments
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