पाँव में खुद के बिवाई हो गयी.
आदमी तेरी दुहाई हो गयी.
वायु पानी भी नहीं हैं शुद्ध अब,
सांस लेने में बुराई हो गयी.
बारिशों का दौर सूखा जा रहा.
मौसमों की लो रुषायी हो गयी.
आपदाएं रोज़ होतीं हर कहीं,
रुष्ट अब जैसे खुदाई हो गयी.
काट डाले पेड़ सब मासूम से,
जंगलों की तो सफाई हो गयी.
काटती है पैर खुद अपने भला,
देखिये आरी कसाई हो गयी.
पेड़ दिखते थे जहाँ पर गाँव…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 1:00am — 18 Comments
नवगीत..चलता सूरज रहा अकेला
घूमा अम्बर मिला न मेला,
चलता सूरज रहा अकेला.
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गुरु मंगल सब चाँद सितारे,
अंधियारे में जलते सारे.
बृथा भटकता उनपर क्यों मन,
होगा उनका अपना जीवन.
कोई साथ नहीं देता जब,
निकला है दिनकर अलबेला.
..चलता सूरज रहा अकेला.
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पीपल के थर्राते पात,
छुईमुई के सकुचाते गात.
ऊषा की ज्यो छाती लाली,
पुलकित हो जाती हरियाली.
सभी चाहते भोजन पानी,
जल थल पर है मचा…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 24, 2014 at 1:19pm — 8 Comments
ग़ज़ल..टल लिया जाए.
२१२२ १२१२ २२
क्यों न चुपचाप चल लिया जाए.
बात बिगड़े न टल लिया जाए.
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जर्द हालात हैं ज़माने के.
रास्ता ये बदल लिया जाये.
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दायरे तंग हो गए दिल के.
घुट रहा दम निकल लिया जाए.
--
थक गए पाँव चलकर मगर सोचा.
साथ हैं तो टहल लिया जाए.
--
बर्फ सी जीस्त ये जमी क्यों थी.
खिल गयी धूप गल लिया जाए.
--
वारिशें इश्किया शरारों की.
भींगते ही फिसल लिया…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 22, 2014 at 1:30am — 17 Comments
खुद ज़रा गर्दन झुकाकर रूबरू हम हो गए.
बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए.
वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.
ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.
कौन जाने थी नज़र या वो बला जादूगरी.
देख मुझको बीज दिल में इश्क का वे बो…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 16, 2014 at 1:30pm — 16 Comments
हौंठ सीं गर्दन हिलाना आ गया.
दोस्त ! जीने का बहाना आ गया.
जिन्दगी में गम मुझे इतने मिले,
अश्क पीकर.. मुस्कुराना आ गया.
ख्वाब सब आधे अधूरे रह गए,
दर्द सीने में ...बसाना आ गया.
दर्द के किस्से सुनाऊँ किस तरह,
गीत गज़लें गुनगुनाना आ गया.
साथ रहने का असर भी देखिये,
आप से बातें छिपाना आ गया.
हादसों ने पाल रख्खा है मुझे.
मौत से बचना बचाना आ…
Added by harivallabh sharma on September 8, 2014 at 9:10pm — 18 Comments
चाँद बढ़ता रहा...... चाँद घटता रहा.
यूँ कलेजा हमारा ........धड़कता रहा.
--
उलझने रात सी ....क्यों पसरती रहीं.
वो दरम्याँ बदलियों .... भटकता रहा.
--
टिमटिमाता सितारा रहा... भोर तक.
शब सरे आसमा को.... खटकता रहा.
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उस हवेली पे जलता था... कोई दिया
बन पतंगा सा उस पे.... फटकता रहा.…
Added by harivallabh sharma on September 5, 2014 at 8:30pm — 21 Comments
हैं अनेकों धर्म भाषा, ...एक हिंदुस्तान है l
मातृभाषा हिन्द की, हिंदी हमारी जान है ll
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देश की संस्कृति रिवाजों पर हमें भी गर्व हो l
भारती की शान हिंदी, . विश्व में पहचान है ll
--
नृत्य शंभू ने किया, डमरू बजा, ॐ नाद का l
देववाणी के सृजन से ..विश्व का कल्यान है ll
--
पाणिनी ने दी व्यवस्था व्याकरण की विश्व को l
हम सनातन छंद रचते ...गीत लय मय गान है ll
--
सूर तुलसी जायसी, ......भूषण कवि केशव हुए l
चंद मीरा पन्त दिनकर, काव्य मय…
Added by harivallabh sharma on September 2, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
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