बह्र : 2122 2122 2122 212
देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले
झूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी मिले
संत सारे बक रहे वाही-तबाही लंठ बन
धर्म सम्मेलन में अब दंगों की तैयारी मिले
रोशनी बाँटी जिन्होंने जिस्म…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 28, 2025 at 11:17pm — 2 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 25, 2025 at 5:02pm — 2 Comments
1222-1222-1222-1222
जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।
अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया सूरज।
चमकते चांद को इस तीरगी में देख लगता है,
विरासत को बचाने का हुनर समझा गया सूरज।
उफ़क तक दौड़ने के बाद में तब चैन से सोया,
जमीं से भी जो जाते वक्त में मिलता गया सूरज।
तुम्हें रोना है जितनी देर, रो लो शाम का रोना,
मगर दीपक की बाती पर सिमट कर आ गया सूरज।
वो आईना दिखाने में बहुत मसरूफ़ थे लेकिन,
बिना…
Added by मिथिलेश वामनकर on September 24, 2025 at 6:10pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . इसरार
लब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।
उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल ।।
रुखसारों पर रह गए, कुछ ऐसे अल्फाज ।
तारीकी के खुल गए, वस्ल भरे सब राज ।।
जुल्फों की चिलमन हटी ,हया हुई मजबूर ।
तारीकी में लम्स का, बढ़ता रहा सुरूर ।।
ख्वाब हकीकत से लगे, बहका दिल नादान ।
बढ़ी करीबी इस कदर, मचल उठे अरमान ।।
खामोशी दुश्मन बनी , टूटे सब इंकार ।
दिल ने कुबूल कर लिए, दिल के सब इसरार ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on September 15, 2025 at 8:57pm — 2 Comments
अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ
आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि
आज हमारे बीच वह नहीं रहे
जिन्हें युगों से
ईश्वर, ख़ुदा, भगवान,…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 11, 2025 at 10:43pm — No Comments
२१२२ २१२२ २१२२
औपचारिकता न खा जाये सरलता
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ये अँधेरा, फैलता जो जा रहा है
रोशनी का अर्थ भी समझा रहा है
चढ़ चुका है इक शिकारी घोसले तक
क्या परिंदों को समझ कुछ आ रहा है
जो दिया की बोर्ड से आदेश तुमने
मानिटर से फल तुम्हें मिलता रहा है
पूंछ खींची आपने बकरा समझ कर
वो था बन्दर, जो अभी चौंका रहा है
औपचारिकता न खा जाये सरलता
आज…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 7, 2025 at 6:30pm — 3 Comments
दोहा दशम्. . . . गुरु
शिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार ।
नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार ।।
बिना स्वार्थ के बाँटता, शिक्षक अपना ज्ञान ।
गढ़े ज्ञान से वह सदा, एक सभ्य इंसान ।।
गुरुवर अपने ज्ञान से , करते अमर प्रकाश ।
राह दिखाते सत्य की, करते तम का नाश ।।
शिक्षक करता ज्ञान से , शिष्यों का उद्धार ।
लक्ष्य ज्ञान से सींचता, उनका नव संसार ।।
गुरु बिन संभव ही नहीं, जीवन का उत्थान ।
पैनी छेनी ज्ञान की, गढ़ती नव पहचान…
Added by Sushil Sarna on September 5, 2025 at 3:00pm — 1 Comment
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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जिनकी ज़बाँ से सुनते हैं गहना ज़मीर है
हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर है।१।
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जब सच कहे तो काँप उठे झूठ का नगर
हमको तो सच का ऐसे ही गढ़ना ज़मीर है।२।
*
सत्ता के साथ बैठ के लिखते हैं फ़ैसले,
जिनकी कलम है सोने की, मरना ज़मीर है।३।
*
ये शौक निर्धनों का है, पर आप तो धनी,
किसने कहा है आप को, रखना ज़मीर है।४।
*
चलने लगी हैं गाँव में, बाज़ार की हवा,
पनपेंगे ज़र के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2025 at 9:15pm — 4 Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
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घाव की बानगी जब पुरानी पड़ी
याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१।
*
झूठ उसका न जग झूठ समझे कहीं
बात यूँ अनकही भी निभानी पड़ी।२।
*
दे गये अश्क सीलन हमें इस तरह
याद भी अलगनी पर सुखानी पड़ी।३।
*
बाल-बच्चो को आँगन मिले सोचकर
एक दीवार घर की गिरानी पड़ी।४।
*
रख दिया बाँधकर उसको गोदाम में
चीज अनमोल जो भी पुरानी पड़ी।५।
*
कर लिया सबने ही जब हमें आवरण
साख हमको सभी की बचानी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 1, 2025 at 5:30pm — 5 Comments
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