सँभाले थे तूफ़ाँ उमड़ते हुए
मुहब्बत से अपनी बिछड़ते हुए.
.
समुन्दर नमाज़ी लगे है कोई
जबीं साहिलों पे रगड़ते हुए.
.
हिमालय सा मानों कोई बोझ है
लगा शर्म से मुझ को गड़ते हुए.
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“हर इक साँस ने”; उन से कहना ज़रूर
उन्हें ही पुकारा उखड़ते हुए.
.
हराना ज़माने को मुश्किल न था
मगर ख़ुद से हारा मैं लड़ते हुए.
.
ज़रा देर को शम्स डूबा जो “नूर”
मिले मुझ को जुगनू अकड़ते हुए.
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निलेश "नूर"
मौलिक/…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 10:30am — 22 Comments
2122 2122 2122 212
हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद
चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद
आपने तो ख़ून का भी दाम दुगना कर दिया
यूँ लहू का ज़ायका नमकीन कह देने के बाद
फिर अदालत ने भी ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
मसअले को वाक़ई संगीन कह देने के बाद
ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का
बिछ गईं दस्तार सब कालीन कह देने के…
Added by Balram Dhakar on October 24, 2018 at 12:00am — 20 Comments
पागल मन ..... (400 वीं कृति )
एक
लम्बे अंतराल के बाद
एक परिचित आभास
अजनबी अहसास
अंतस के पृष्ठों पे
जवाबों में उलझा
प्रश्नों का मेला
एकाकार के बाद भी
क्यूँ रहता है
आखिर
ये
पागल मन
अकेला
तुम भी न छुपा सकी
मैं भी न छुपा सका
हृदय प्रीत के
अनबोले से शब्द
स्मृतियाँ
नैन घनों से
तरल हो
अवसन्न से अधरों पर
क्या रुकी कि
मधुपल का हर पल
जीवित हो उठा
मन हस पड़ा…
Added by Sushil Sarna on October 15, 2018 at 7:48pm — 14 Comments
"व्रत ने पवित्र कर दिया।" मानस के हृदय से आवाज़ आई। कठिन व्रत के बाद नवरात्री के अंतिम दिन स्नान आदि कर आईने के समक्ष स्वयं का विश्लेषण कर रहा वह हल्का और शांत महसूस कर रहा था। "अब माँ रुपी कन्याओं को भोग लगा दें।" हृदय फिर बोला। उसने गहरी-धीमी सांस भरते हुए आँखें मूँदीं और देवी को याद करते हुए पूजा के कमरे में चला गया। वहां बैठी कन्याओं को उसने प्रणाम किया और पानी भरा लोटा लेकर पहली कन्या के पैर धोने लगा।
लेकिन यह क्या! कन्या के पैरों पर उसे उसका हाथ राक्षसों के हाथ जैसा…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 14, 2018 at 2:23pm — 17 Comments
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