सागर में गिर कर हर सरिता बस सागर ही हो जाती है
लहरें बन व्याकुल हो हो फिर तटबंधों से टकराती है
अस्तित्व स्वयं का तज बोलो
किसने अब तक पाया है सुख …
Added by seema agrawal on October 30, 2012 at 2:09pm — 18 Comments
प्रश्नवाची
मन हुआ है, हैं सुलगते अभिकथन
क्या मुझे अधिकार है ये
मैं दशानन को जलाऊँ ??
खींच कर
रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ
आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ
दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर
क्या मुझे अधिकार है
'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??
झूठ, माया-मोह
ईर्ष्या के असुर नित रास करते
स्वार्थ की चिंगारियों से प्रिय सभी रिश्ते सुलगते
पुण्य पापों को बता कर सत्य पर भूरज…
Added by seema agrawal on October 22, 2012 at 11:31am — 15 Comments
इस रक्त के संचार पे अधिकार तुम्हारा है
Added by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:00am — 15 Comments
1....
शीतल मीठे नर्म से ,शब्दों को दो पाँव
सद्भावों की ईंट से ,रचो प्रीत के गाँव
रचो प्रीत के गाँव, फसल खुशियों की बोना
नेह सुधा से सिक्त, रहे हर मन का कोना
कंचन शुचिता धार ,अहम् का तज कर पीतल
हरो ताप-संताप ,सलिल बन निर्मल शीतल ..
2.........…
ContinueAdded by seema agrawal on October 4, 2012 at 2:30am — 4 Comments
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