"क्या यार?.........हमलोग एक घंटे से इस कैफे में बैठे हैं और वीकेंड का एक बढ़िया प्लान नहीं बना पा रहे........व्हाट इज दिस?" रितिका ने झल्लाते हुए कहा| साथ बैठा उसका क्लासमेट मोहित उसे उखड़ता देख के उसकी हँसी उड़ाते बोला - "मैडम जी.....मैं तो कब से प्लानों की लाइन लगा रहा हूँ, आपको जँचे तब तो"| रितिका थोड़ा और गुस्से में आ के बोली - "मोहित, जस्ट कीप योर माउथ शटअप.......तुम्हारे आइडियाज हमेशा बोरिंग होते हैं....तुम अपनी तो रहने दो बस"| मोहित को बात बुरी लग गई - "क्यों? तुम्हारे उस विभोर के…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 30, 2012 at 12:01pm — 10 Comments
देख-देख दुनिया हँसी, मन ही मन में कोसती |
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||
कैसा गड़बड़झाल ये, जाने कैसा खेल है,
लोटे औ जलधाम का, होता कोई मेल है |
आ जाएगा घूम के, सबकी खोपड़ सोचती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||
पौधा है नवजात ये, कोमल इसकी डाल है,
हट्टा-कट्टा पेड़ तो, मानो गगन विशाल है |
बुढ़िया काकी…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 7:27am — 12 Comments
गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के
कटिंगदार झरोखों से लटक कर
धुंआयुक्त वातावरण में बीमार, खाँसते
अपने चेहरे की धूल को
कृत्रिम फुहारों से धोने की कोशिश में
बड़े दयनीय लगते हैं
छोटे से पात्र में कैद जड़ों के सहारे…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 4, 2012 at 10:57am — 6 Comments
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