मधुमति,
मेरे पदचिन्हों को
पी लेता है
मेरा कल
और मेरे
प्राची पनघट पर
उग आते
निष्ठुर दलदल
ऐसे में किस स्वप्नत्रयी की
बात करूं मेरे मादल ?
वसुमति,
मेरे जिन रूपों को
जीता है
मेरा शतदल
उस प्रभास के
अरूण हास पर
मल जाता
कोई काजल
ऐसे में किस स्वप्नत्रयी की
बात करूं मेरे मादल ?
द्युमति,
मेरे तेज अर्क में
घुल…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 31, 2013 at 3:39pm — 14 Comments
माते ! मैं ही रहा अभागा
जो तुझको सुख दे न सका
पावन तेरी चरण-धूलि तक
अपने हित संजो न सका
भर नथुनों में अमर गंध तू
ठाकुर का मेहमान हुई
सित फूलों की उस घाटी में
अमर ब्रह्म मुदमान हुई
औ तेरा यह पारिजात मां
गलित गात, क्षत शाख हुआ
खेद-स्वेद के तीक्ष्ण धार से
गलता-जलता राख हुआ
करूणे ! तेरा वृथा पुत्र यह
तेरी रातें धो न सका
धन,बल,वैभव खूब सहेजा
पर तुझको संजो न…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 28, 2013 at 5:30pm — 19 Comments
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