मेरे प्रियवर .............
स्नेह सिक्त हृदय
तुम रहते प्राण बन
जीवन की अविरल धारा
तुम रहते अठखेलियाँ बन
तुम मेरे प्रियवर.............
मद युक्त नयन
तुम रहते काजल रेख बन
शीश पर चमकते
यों सिंदूरी रेख बन
तुम मेरे प्रियवर.....................
तुमसे ही है जीवन
हर शाम सिंदूरी
फूलों सा महके सिंगार
संग तुम्हारा अनुपम फुलवारी ॥
मेरे प्रियवर.................
.
अन्नपूर्णा…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 24, 2013 at 10:30am — 22 Comments
क्या कहूँ ...............
आहत मन की व्यथा
कैसे सुनाऊँ.................
मन की व्याकुलता
अश्रु और व्याकुलता
साथी है परस्पर
आकुल होकर आँख भी
जब छलक जाती है
गरम अश्रुओं का लावा
कपोलों को झुलसा जाता है
न जाने कब कैसे ...................
पीर आँखों की राह
चल पड़ती है बिना कुछ कहे
आकुल मन बस यूं ही
तकता रह जाता है
भाव विहीन होकर भी
भाव पूर्ण बन जाता है जब
जिह्वा सुन्न हो…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 21, 2013 at 2:23pm — 34 Comments
आशीर्वाद !!
वह कोई नब्बे के आस पास वृदधा रही होगी जो सामान सहित अपने ही घर के बाहर बैठी थी न जाने क्या अँड बंड बड़बड़ा रही थी । लोग सहनुभूति से देखते और और चल देते किसी ने हिम्मत भी की उससे जानने की तो वह ठीक ठीक नहीं बता पा रही थी । पता नहीं क्रोध की अधिकता थी या ममता और दुःख का मिश्रित भाव था जो शब्द न निकल रहे थे । बेटा कुछ दिनों से बाहर गया हुआ था और घर पर बहू अकेली…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 9, 2013 at 7:30pm — 26 Comments
हे! कमल पर बैठने वाली सुंदरी भगवती सरस्वती को मेरा प्रणाम । तुम सब दिशाओं से पुजजीभूत हो । अपनी देह लता की आभा से ही क्षीर समुद्र को अपना दास बनाने वाली , मंद मुस्कान से शरद ऋतु के चंद्रमा को तिरस्कृत करने वाली............
माँ शारदा !!!
मार्ग प्रशस्त करो माँ अम्ब जगदम्ब हे !
आपकी शरण हम है माँ अम्ब जगदम्ब हे ! ........
श्वेत कमल विराजती वीणा कर धारती हे !
श्वेत हंस वाहिनी माँ श्वेताम्बर धारणी हे !
कमल सदृश नयन माँ भाग्य अनूपवती हे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 8, 2013 at 6:00pm — 14 Comments
माँ !!
नेह ममता
लाड़ दुलार
अविस्मरण रूप
स्नेह की गागर
छलकाती ।
आँखों मे असंख्य
अबूझ स्वप्न
स्नेह सिक्त
जल धारा बरसाती ।
होती ऐसी माँ !!!..................अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 2:00pm — 24 Comments
स्वच्छ गगन मे
सुवर्ण सी धूप
भोर की किरण ने
आ जगाया ।
अर्ध उन्मीलित नेत्र
उनींदा मानस
आलस्य पूरित
यह तन मन
पंछियों ने राग सुनाया ।
कामिनी सी कमनीय
सौंदर्य की प्रतिमा
नैसर्गिक छटा
फैली चहुं ओर
मुसकाते सुमन
झूमते तरुवर
नव जोश जगाया ।
हुआ प्रफुल्लित ये मन
तोड़ कर मंथर बंधन
मानो रोली कुमकुम
आ छिड़काया ।............. अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 4:59pm — 30 Comments
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