घने-काले बादलों से निकल बूंद, जब
सपनों में, अनगिनत खो जाती है
कहाँ गिरूंगी कैसे गिरूंगी
सोच-सोच घबराती है ||
क्या गिरूंगी, फूल पराग में
या धुल संग मिल जाऊँगी
कहीं बनूँगी, ओस का मोती
और मनमोहकबन जाऊँगी ||
कहीं बनूँ, जीवन आधार मैं
जीव की प्यास बुझाऊंगी
या जा गिरूंगी धधकती ज्वाला
क्षणभर में ही जल जाऊँगी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 31, 2019 at 4:55pm — 6 Comments
इंसा नहीं उसकी छाया है
बिन शरीर की काया है
सृष्टि का संतुलन बनाने हेतु
ईश्वर ने ही उसे बनाया है||
सृष्टि में नकारात्मकता और सकारात्मक्तका समन्वय करके
अच्छाई बुराई में भेद बनाया है
सही गलत का मार्ग बता
प्रभु ने जीवन को समझाया है||
अंधेरा का मालिक बना
भयानक रूप उसको दे कर
जग जीवन को डराया है
जीवन का भेद बताया है||
प्रबल इच्छा संग मर, जो जाते
सपने पूरे जो, ना कर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 28, 2019 at 11:37am — 3 Comments
कभी मैं बन ओंस की बूंद
मोती बन बिखर जाता हूँ
मोहकता की छवि बना
मुस्कान चेहरे पर लाता हूँ||
कभी तपता भानु के तप में
और भाप बन उड जाता हूँ
काले घने मैं बादल बन
मैं बरसता, भू-धरा की प्यास बूझाता हूँ||
कभी बन आँसू के मोती
कभी खुशी में मैं छ्लक आता हूँ
कभी दुख में बह कर के मैं
भावुकता को दर्शाता हूँ||
बेरंग हूँ, पर हर रूप में ढलता
जिसमे मिलता उसका रूप अपनाता हूँ
निश्चित…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 24, 2019 at 12:32pm — 4 Comments
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