ऐ चाँद !
पूजा तुझे वर्षों
हल्दी,कुमकुम,
अक्षत,रोली,पुष्प,
धूप दीप, नैवेद्य,
करती रही अर्पण
आस ये कि तू
अभिसिंचित करेगा
अपनी शीतल रश्मियों से
प्रेम की अनुभूतियों से
दूर कर देगा मेरे
प्रणय की प्रत्येक विसंगतियों से
पर यह क्या किया .....
सब कुछ बदल दिया !
तू उगलता रहा
अपनी चाँदनी में अदृश्य अंगारे
सुलगती रही जीवन की लहरें
झुलसा- झुलसा तन-मन
अंतरमन का हाहाकार लिए
अब तू ही बता
तुझे कैसे पूजूँ अब…
Added by Meena Pathak on October 11, 2014 at 1:00pm — 10 Comments
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