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Dr. Vijai Shanker's Blog – October 2014 Archive (8)

जो प्रिय है -डा० विजय शंकर.

कोई सच प्रिय है

कोई सच अप्रिय है

कोई कोई तो कटु है |

सच तो सच है ॥

सच है, इसीलिये तो सच है |

और इसीलिये तो, है ॥



झूठ वो है जो नहीं है ,

फिर भी है , क्योंकि

हम मान रहे हैं, कि है,

हम इसलिए मान रहे हैं

क्यों कि वह हमको प्रिय है ॥



हमको क्या प्रिय है,

वो झूठ , जो है नहीं ,

जो है नहीं , कहीं नहीं

वह हमको प्रिय है ॥

जो है नहीं वो हमको

प्रिय कैसे हो सकता है ||



वो क्या है जो हमें

प्रिय है और है… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 31, 2014 at 8:09pm — 13 Comments

सफाई (लघुकथा) : डॉo विजय शंकर

दावत जोरदार रही , सब ने छक के खाया, खाना था ही इतना बढ़िया , तिस पर बिठा कर पत्तल पर प्रेम से परोस-परोस कर खिलाया गया था। अब कहाँ होतीं हैं ऐसी दावतें। देर रात तक नौकरों ने सारे पत्तल इकठ्ठा करके पास तिराहे के कोने पर, जहां लोग कूड़ा फेंकते थे , फेंक दिये। लोग रात देर तक टहल टहल कर बतियाते रहे , दावत की तारीफ करते रहे। सब कुछ अच्छा था पर किसी एक-दो को अच्छा नहीं लगा। किसी ने सुबह-सुबह इधर-उधर दो एक फोन कर दिये । साढ़े दस तक एक बाबू साहब एक डायरी लेकर आ गए। उन्हें बुलवाया , कहा , अच्छी दावत…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 25, 2014 at 9:30pm — 9 Comments

इस दीपावली एक ऐसा दीप जलायें - डॉo विजय शंकर

आओ इस दीपावली

एक ऐसा दीप जलायें

भटके हुए रहनुमाओं को

सही रास्ता दिखायें।

आओ इस दीपावली एक ……

वो जो अन्धकार को

अन्धकार से मिटाने

का दम भरते हैं,

दूसरों के लिए उठाया

हर कदम अन्धकार की

ओर ही रखते हैं ,उन्हें

दीप-ज्योति कुछ यूँ दिखायें ,

कभी दूसरों के लिये भी

रौशनी में चलना सिखायें।

आओ इस दीपावली एक ……



उनकी दीवाली शुभ हो ,

हमारी दीवाली शुभ हो ,

इस बार सबकी दीवाली

शुभ- और - शुभ बनायें।

आओ इस दीपावली… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 22, 2014 at 6:54pm — 8 Comments

नवेली का भोज -डॉo विजय शंकर

नई नई शादी हुयी थी उनकीं। कुछ दिन दावतों वावतों का दौर चला फिर कुछ ख़ास दोस्तों ने कहना शुरू किया , " भाभी जी क्या बनाती हैं , कैसा बनाती हैं , कभी हम भी तो देखें। " जी , भाई साहब , क्यों नहीं , जरूर ", भाभी जी का सभी को यही जवाब होता था। फिर एक दिन उन्होंने पूरा भोज बनाया, कई तरह के पकवान बनाये , डाइनिंग टेबल पर सब सजाया , चारों एंगिल से उसकी फोटो खींची और फेसबुक पर डाल दी और लिख दिया , "सभी जानने वालों के देखने के लिए "

डेढ़ सौ लाइक आ गए और बहुतों ने कमेंट भी किया , " मजा आ गया…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 17, 2014 at 5:00pm — 10 Comments

निष्पक्षता -- डॉo विजय शंकर

कोई कितना भी काबिले तारीफ़ हो ,

हमें दिखाई देता नहीं ,

दुनिया उसे इनाम इकराम दे दे

तो हम भी फोटो ओटो

छपवा देते हैं उसकी ,

क़ि देखो एक देसी

कैसा नाम किया है देश का ॥

दो चार दिन ,बस ,ज्यादा नहीं ॥

बात पक्षपात की नहीं है ,

ऐसा न सोचियेगा , न कहियेगा ॥

क्योंकि जो अपराधी हैं ,

जो विदेशों में काला धन जमा किये हैं ,

वो भी तो हमें नहीं दिखाई देते ॥

हम अच्छे बुरे से ऊपर हैं,

सिर्फ अपना मतलब देखते हैं , बस ॥



मौलिक एवं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 14, 2014 at 3:27pm — 14 Comments

लगन - डॉo विजय शंकर

लगभग पचास वर्ष पूर्व जब मैं बहुत छोटा था , प्रायः दीवारों पर लिखा एक विज्ञापन पढ़ा करता था , " न मच्छर रहेगा , न मलेरिया रहेगा , डी डी टी छिड़किये , मच्छरों को दूर भगाइए " .

पता नहीं क्या हुआ , कुछ समय बाद , दीवारों का विज्ञापन बदल गया , कुछ यूँ हो गया , " मच्छर रहेगा पर मलेरिया नहीं रहेगा " .

कुछ समय और बीता , दीवार के विज्ञापनों की श्रृंखला में , मच्छरों , मलेरिया ग्रस्त रोगी के चित्र , कुनैन जैसी दवाओं के साथ मलेरिया के लक्षण और उपचार कराने और मलेरिया से लड़ने के बड़े-बड़े सचित्र… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 12, 2014 at 12:32pm — 5 Comments

एक व्यवस्थित इंटरप्राइज़-डा० विजय शंकर

अच्छे काम का प्राइज़ हो न हो

बेईमानी एक व्यवस्थित इंटरप्राइज़ है .

बेईमानी स्वयं बड़ी ईमानदारी से होती हैं .

सिद्धांतों , आदर्शों में नहीं , व्यवहार में होती है .

इसीलिये लोग किसी को यह सलाह नहीं देते

कि बेईमान बनो, कहते हैं व्यवहारिक बनो .



व्यवहार का नेटवर्क कितना भी गहन क्यों न हो

व्यवस्था का हर अंग अकेला माना जाता है ,

कोई अदना या सरगना कभी पकड़ा भी जाए ,

वह स्वतन्त्र, अकेला इंटरप्रिन्योर माना जाता है .

सजा सिर्फ उसे होती है ,चाहे जितनी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 7, 2014 at 10:36am — 14 Comments

राम के वंशज कहाँ खो गये --डा० विजय शंकर

राम के वंशज कहाँ खो गये ,

उत्तराधिकारी रावण के

क्यों प्रबल हो गये ॥



कितना कठिन है राम के

रूप को लोगों में ज़िंदा रखना ,

राम की मर्यादा बनाये रखना ,

रावण तो है , स्वतः है ,

अपने आप ज़िंदा रहता है |



कैसे कुछ लोग राम राम जपते हैं ,

रावण जैसा बनने को तरसते हैं ।

मौक़ा मिलते ही रावण बनने के

हर एक जतन करते हैं |



उन्हें भी सोने की लंका चाहिए ,

सोने का हिरन चाहिए ,

सुंदरी हरण का मौक़ा चाहिए |



राम का त्याग… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 2, 2014 at 1:43pm — 11 Comments

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"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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