जागा श्रमिक अभाव की चादर पीछे कर
चला अपने भाग्य से लड़ने डट कर
रेशमी विस्तर में सोने वालों,
तुमने कभी सुबह उठ कर देखा है ।
साहस की ईंटों को चुनता हैं अरमानों के गारे से
फिर भी खुशी चलती है दीवार पर, उसके आगे
संगमरमर के महलों में सुख से रहने वालों,
तुमने उनके भूखे पेटों को कभी देखा है ।
तारों की छांव में रोज सबसे आगे उठता
फिर भी जीवन की अरूढ़ाई ना देख पाता
तरुणाई श्रमिकों की पीने वालों,
इनके सिकुड़े…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on October 30, 2014 at 7:30am — 10 Comments
कविता
कविता हृदय की सहचरी है
भावों से भरी हुई रस भरी है।
जिंदा दिलों की रवानगी है
कविता कवि की वानगी है ।
कविता अपने दिल से उदार है
कवि के भावों की चित्रकार है ।
समेटती कई रहस्यों को अपने में
संवेदनावों पर करती प्रहार है ।
उगती है कलम के साथ कागज पर
पहुँच इसकी हृदय के उस पार है ।
कविता माला है भावों और शब्दों की
शुष्क मन को भी करती तार-तार है…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on October 19, 2014 at 10:00pm — 5 Comments
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