रांची का रेलवे स्टेशन.
फुलमनी ने देखा है
पहली बार कुछ इतना बड़ा .
मिटटी के घरों और
मिटटी के गिरिजे वाले गाँव में
इतना बड़ा है केवल जंगल.
जंगल जिसकी गोद में पली है…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 26, 2013 at 9:30am — 20 Comments
समतल उर्वर भूमि पर
उग आयी स्वतंत्रता
जंगली वृक्ष की भांति
आवृत कर लिया इसे
जहर बेल की लताओं ने
खो गयी इसकी मूल पहचान
अर्थहीन हो गए इसके होने के मायने .
..
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...
… नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on October 22, 2013 at 7:30pm — 17 Comments
सांझ ढली
कुछ टूटा ,
भर गयी रिक्तता.
सब मूंद दिया कसकर.
अन्दर बाहर अब है,
एक रस.
घुप्प अँधियारा.
दिवस का…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 18, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये
दशानन था रावण
इनके हैं सौ- सौ सर
लोभ, मोह, मद, इर्ष्या ,
द्वेष, परिग्रह, लालच,
राग , भ्रष्टाचार, मद, मत्सर
रहे बजबजा इनके भीतर
फिर भी जरा नहीं शर्माए .
कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये .
पंडित था रावण ,
था, अति बलशाली ,
धर्महीन हैं ये, हृदयहीन ,
विवेकशून्य , मर्यादा से खाली.
आचरण हो जिनका राम सा
जनता जिनके राज्य…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 14, 2013 at 10:30am — 18 Comments
सागर , सरिता ,
निर्झर , मरू
कलरव करते विहग
सुन्दर फूल , गिरि , तरु
अरुणाई उषा की
रजनी से मिलन शशि का
जल, वर्षा , इन्द्रधनुष
कोटि जीव , वीर पुरुष
सब कितना मंजुल जग में
प्रकृति का रूप अनूप
लेकिन
नारी, तुम हो जगत में
प्रकृति का सबसे सुन्दर रूप.
......मौलिक एवं अप्रकाशित ....
Added by Neeraj Neer on October 1, 2013 at 8:30am — 17 Comments
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