मात्रा भार - 222 ,222 ,22
खोल शिखा फिर आन करें हम
आज गरल का पान करें हम।
ज्वालाओं के धनुष बना कर
लपटों का संधान करें हम।
अंगारों सा धधक रहा उस
यौवन पर अभिमान करें हम।
अँधियारा जब छा जाये तो
खुद को ही दिनमान करें हम।
समिधाओं से राख उड़ी है
आहुति का आह्वान करें हम।
अपना कौन पराया कितना
अब उनकी पहिचान करें हम।
कर कौन रहा कल…
ContinueAdded by dr lalit mohan pant on October 30, 2013 at 12:00am — 16 Comments
ग़ज़ल -
२१२ २१२ २१२ २१२
वक़्त बदला, हैं बदले ख़यालात से
रौंदता ही रहा हमको लम्हात से .
क्यों मयस्सर नहीं जिंदगी में सुकूँ
जूझता ही रहा मैं तो हालात से .
माँगता था दुआ में तिरी रहमतें
उलझनें सौंप दी तूने इफरात से .
जुर्रतें वक़्त की कम हुईं हैं कहाँ
खेलती ही रहीं मेरे जज़्बात से.
तू बरस कर कहीं भूल जाये न फिर
भीगता ही रहा पहली बरसात से.
बात…
ContinueAdded by dr lalit mohan pant on October 16, 2013 at 11:00am — 16 Comments
एक आसमान को छूता
पहाड़ सा / दरक जाता है
मेरे भीतर कहीं ..
घाटियों में भारी भरकम चट्टानें
पलक झपकते
मेरे संपूर्ण अस्तित्व को
कुचल कर
गोफन से छूटे / पत्थर की तरह
गूँज जाती हैं.
संज्ञाहीन / संवेदनाहीन
मेरे कंठ को चीर कर
निकलती मेरी चीखें
मेरे खुद के कान / सुन नहीं पाते
मैं देखता हूँ
मेरे भीतर खौलता हुआ लावा
मेरे खून को / जमा देता है
जब तुम न्याय के सिंहासन पर बैठ कर
सच की गर्दन मरोड़कर
देखते देखते निगल…
Added by dr lalit mohan pant on October 10, 2013 at 11:00am — 16 Comments
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