बुद्ध हो गये क्या?
शुद्ध हो गये क्या?
मज़ाक मज़ाक में!
क्रुद्ध हो गये क्या?
उसको देख देख!
मुग्ध हो गये क्या?
सफेदी दिखी है!
दुग्ध हो गये क्या?
अपनों के पथ में!
रुद्ध हो गये क्या?
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-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on November 30, 2014 at 5:00pm — 12 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 27, 2014 at 8:55pm — 15 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 1:30am — 6 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:57am — 26 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:46am — 6 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 22, 2014 at 11:00am — 8 Comments
मन को दुर्बल क्यों करें'क्षणिक दीन अवसाद।
आगे देखो है खड़ा'आशा का आह्लाद।।
रिश्ते भी अब हो गये'ज्यों दैनिक अखबार।
आज पढ़ लिया प्रेम से'कल फिर से बेकार।।
ह्रदय प्रेम से भर गया'देखा अनुपम प्यार।
कामदेव दुन्दुभि लिये'आये मेरे द्वार।।
खुद को भी आवाज़ दे,खुद को ज़रा पुकार!
एक रात तू भी कभी,खुद के साथ गुजार।!
आप कहो कुछ मै कहूँ'बातें हो दो चार।
तुम खुश मैं भी खुश रहूँ'बना रहेगा…
Added by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 1:58pm — 16 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 2, 2014 at 10:09am — 18 Comments
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