221 2121 1221 212/2121
पर्दा जो उठ गया तो हुआ काला धन तमाम
चोरों की ख्वाहिशों के जले तन बदन तमाम
बरसों से जो महकते रहे भ्रष्ट इत्र से
इक घाट पे धुले वो सभी पैरहन तमाम
बावक्त असलियत का मुखौटा उतर गया
किरदार का वजूद हुआ दफ़अतन तमाम
ये बंद खिड़कियाँ जो खुली, पस्त हो गई
सब झूट औ फरेब की बदबू घुटन तमाम
परवाज पर लगाम जो माली ने डाल दी
भँवरे का हो गया वो तभी बाँकपन…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 24, 2016 at 7:37pm — 26 Comments
2122 2122 2122 212
बुलबुला है इक फ़कत ये जिस्म जाँ कुछ भी नहीं
जिंदगानी से कजा की दूरियाँ कुछ भी नही
बागबाँ की है कमी या पस्त है आबो हवा
पाक नकहत फूल के अब दरमियाँ कुछ भी नही
मोल उसका गर न समझे तो बशर की भूल है
हम को कुदरत दे रही जो रायगाँ कुछ भी नही
आशिकों की मौत पे जो शम्मअ के दिल से उठे
नफरतों से जो निकलता वो धुआँ कुछ भी नही
फिक्र-ए-शाइर नापती कब से अज़ल की दूरियाँ
उसके आगे…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 21, 2016 at 12:00pm — 16 Comments
“बच्चों की बहुत याद आएगी बेटी इस बार मिंटू तो बड़ा भी हो गया है और समझदार भी बहुत अच्छी अच्छी बातें करता है दस दिन कैसे कटे पता ही नहीं चला| बहुत कम छुट्टी लेकर आते हो बेटा” नाश्ता खत्म करके प्लेट बहू की तरफ बढाते हुए मिंटू को प्यार से दुलारते हुए देशराज ने पास बैठे अपने बेटे चन्दन से कहा |
“ज्यादा छुट्टी कहाँ मिलती है पापा मिंटू के स्कूल की भी समस्या है और फिर खुशबू की शादी में भी तो आना है फिर छुट्टी लेनी पड़ेगी” चन्दन ने कहा |
“हाँ बेटा वो तो है” कहकर पापा चन्दन की…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 9, 2016 at 6:44pm — 10 Comments
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