अमर पुष्प
कुछ बातें ऐसी थीं
कुछ ठहरी हुई कुछ चंचल
कुछ कही हुई
कुछ अनकही.
कुछ सपने
पलकों में थे बिखरे
ख्यालों की लम्बी दरिया में
कुछ बातें थी उपली.
मैं तुम्हें देखती थी
मुस्काते नयनों से
तुम भी देखते थे
पर रहते थे मौन.
तुम्हारे आस-पास
बन तितली उड़ती रहती
तुम्हारे हृदय का पट न खुला
मैं पहेली बूझ न सकी.
तुम्हारी चुप्पी ने
मेरे कितने सवालों को…
Added by coontee mukerji on November 30, 2013 at 2:39am — 20 Comments
उतर रही लक्ष्मी घर आंगन
सावन भादो बरस गये
हर्षित हुई अवनी.
नृत्य कर रही है वह खेतों में
धानी चुनरी पहन.
मिली किसानों को फ़सलों का सौगात
बीत गये अंधकार भरे दिन.
गा रही है हर सुबह
उषा, मृदु स्वर में असावरी.
उल्लसित है सब का मन.
कर पितरों को जल तर्पण
भगवती को सुगंधित अर्ध्य अर्पण
तुलसी बीरवा तले दीप जला
त्यौहारों का है मौसम
सखी! सतरंगी परिधान पहन
चल हाट! मोल ले चूड़ियाँ
सिंदूर टिकुली मेहेंदी महावर
और…
Added by coontee mukerji on November 2, 2013 at 5:07pm — 12 Comments
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