तुम ही कहो अब
क्या मैं सुनाऊँ
सरगम के सुर
ताल हैं तुम से
सारी घटाएँ
बहकी हवाएँ
फागुन की हर
डाल है तुमसे
तुम ही कहो .......
तुम बिन अँखियन
सरसों फूलें
रीते सावन
साल हैं तुमसे
तेरी छुअन से
फूली चमेली
शारद की हर
चाल है तुमसे
तुम ही कहो .......
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by राजेश 'मृदु' on December 17, 2013 at 4:11pm — 14 Comments
''मिश्रा जी, बेटी का बाप दुनिया का सबसे लाचार इंसान होता है. आपको कोई कमी नहीं, थोड़ी कृपा करें, मेरा उद्धार कर दें. बेटी सबकी होती है.' कहते-कहते दिवाकर जी रूआंसे हो गए । मिश्रा जी का दिल पसीज गया ।
अगले वर्ष घटक द्वार पर आए तो दिवाकर जी कह रहे थे
''अजी लड़के में क्या गुण नहीं है, सरकारी नौकर है. ठीक है हमें कुछ नहीं चाहिए, पर स्टेटस भी तो मेनटेन करना है. हाथी हाथ से थोड़े ना ठेला जाता है. चलिए 18 लाख में आपके लिए कनसिडर कर देते हैं और बरात का खर्चा-पानी दे दीजिएगा,…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on December 16, 2013 at 1:30pm — 24 Comments
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