अब्रे गम जब दिल पे मेरे छा गया
अश्क का दरिया भी रुख पे आ गया
आइना देखा है जब भी दोस्तों
सामने मेरे मेरा सच आ गया
यूं तो गुल लाखों थे बगिया में मगर
दिल को लेकिन कोई कांटा भा गया
वो हसीं गुल आने वाला है इधर
चूम झोंका खुशबू का बतला गया
हाल उनसे कहते दिल का जब तलक
यार नजरों से ही सब जतला गया
जिसने भर दी खार से ये जिन्दगी
फूल नकली दे के फिर बहला…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 23, 2013 at 7:30pm — 18 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
छलकती आँखें हैं साकी हसीं इक जाम हो जाये
बना दो रिंद दुनिया को सुहानी शाम हो जाये
जुदा मजहब के लोगों को मिला दे आज ऐ साकी
तरीका कोई भी हो आज दिलकश काम हो जाये
हमें हिन्दू मुसल्मा कह लड़ाते हैं भिड़ाते हैं
करो कोई जतन ऐसा की हिंदी नाम हो जाये
हजारों फूल गुलशन में जुदा हैं रूप रंगत भी
मगर खुशबू जुदा मिलकर हसीं पैगाम हो जाये
न जाने किसकी साजिश है बहाते हम लहू…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 19, 2013 at 2:30pm — 21 Comments
सीमित संसाधनों के साथ
महती भौतिकता वादी प्यास की तृप्ति
शायद प्रेरित करती है तुम्हे सतत
बेच देने के लिए अपना जमीर ......
शराब और शबाब में मस्त
अपने दांतों से खींचते हुए
रोस्टेड चिकेन की टाँगे
भूलते रहे हो तुम अपने शक्ति और अधिकार ...
फिर समाज में रुतवा कायम करने की;
एक अच्छा पिता और पति कहलाने की ;
तुम्हारी ख्वाइश ने भी जी भर हवा दी है
अधिक से अधिक धनोपार्जन की तुम्हारी प्यास को
जायज या नाजायज
किसी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 14, 2013 at 4:29pm — 7 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
रात को चाँद फिर आयेगा देखिये
आके दिल फिर जला जायेगा देखिये
हम रहेंगे खड़े रात भर छत पे ही
बादलों में वो छुप जायेगा देखिये
अपने दीवानों पे रोज ही इस तरह
चांद क्या क्या सितम ढायेगा देखिये
हम जिसे भूल पाए कभी हैं नहीं
किस तरह वो भुला पायेगा देखिये
रंग गिरगिट के जैसे बदलता है जो
कैसे वादे निभा पायेगा देखिये
चांदनी बन जमी पर उतरता रहा
खुद जमी पर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 11, 2013 at 4:30pm — 20 Comments
२१२२ १२१२ १२२ २२२
रोज आदत जो तुमसे मिल ने की हो जायेगी
मौत की रात मेरी रूह भी रो जायेगी
आखिरी पल क़ज़ा जो सामने होगी मेरे
जिन्दगी इक हसीन ख्वाब में खो जायेगी
आज साकी बनी ग़ज़ल खडी है महफ़िल में
रिंद जब देंगे मशविरा सँवर वो जायेगी
हार उल्फत का देख मौत होगी शर्मिंदा
मौत खुद जिन्दगी ही हार में पो जायेगी
बात गुल से हसीं हो खार सी कड़वी चाहे
बीज जेहन मे ये ग़ज़ल के ही बो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 9, 2013 at 11:30am — 10 Comments
२२१२ १२१२ २२१ १२२
दम भूख से हैं तोड़ते मासूम जमीं पर
पीकर शराब मस्ती में तू झूम जमी पर
बच्चे मनाते फुलझड़ी बिन रो के दिवाली
पीकर तुझे लगे मची है धूम जमी पर
अम्बार फरजी डिग्रियों के तूने लगाए
लटका के अब गले में इन्हें घूम जमी पर
दो बूँद अश्क जो गिरे आँखों से यूं तेरी
सारे शहर में उग गए मशरूम जमी पर
सड़कों पे गर पिया तो पोलिश का भी है पंगा
बनवा ले झुरमुटों में ही कोई रूम जमी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 4, 2013 at 11:06am — 24 Comments
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