1222 1222 1222 1222
तेरे औ' मेरे नामों पर सियासत और हो जाती
निहाँ होता नहीं सब कुछ तो आफ़त और हो जाती.
ह़दों से आगे जा कर ये ग़मे फ़ुर्क़त असर करता
अगर मुझको तेरी स़ुह़्बत की आ़दत और हो जाती.
ये रोने धोने का आ़लम, फ़िराक़े यार का मौसम
ए क़िस्मत! हैं अभी ये कम, अज़ीयत और हो जाती!
ख़िरद पर ग़र यकीं करते नहीं फिर जाने क्या होता
जो सुनते दिल की, दुनिया से अ़दावत और हो जाती.
चलो अच्छा हुआ दो टूक तुमने कह दिया…
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Added by shree suneel on October 3, 2016 at 11:45am —
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मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन
"तज़मीन बर तजमीन समर कबीर साहिब बर ग़ज़ल हज़रत सय्यद रफ़ीक़ अहमद "क़मर" उज्जैनी साहिब"
कोई पूछे ज़रा हमसे कि क्या क्या हमने देखा है
सुलगता शह्र औ' बिखरा वो कुनबा हमने देखा है
नया तुम दौर ये देखो पुराना हमने देखा है
"ख़ज़ाँ देखी कभी मौसम सुहाना हमने देखा है
अँधेरा हमने देखा है,उजाला हमने देखा है
फ़सुर्दा गुल कली का मुस्कुराना हमने देखा है"
"ग़मों की रात ख़ुशियों का सवेरा हमने देखा है
हमें…
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Added by shree suneel on July 18, 2016 at 2:00am —
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तज़मींन बर ग़ज़ल फ़िराक़ गोरखपुरी
2122 2122 2122 212
उसके लब औ' जाँफ़िजा़ आवाज़ की बातें करो
फिर उसी दमसाज़ के ऐजाज़ की बातें करो
सोगे इश्क़ आबाद है अब साज़ की बातें करो
"शामे ग़म कुछ उस निगाहें नाज़ की बातें करो
बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो."
ज़िंदगी में जाविदाँ हैं अाहो दर्दो रंजो ग़म
जिक्र से उस शोख़ के देखे गए होते ये कम
उसके ढब,उसकी हँसी,हर शौक़ उसका हर सितम
"नक्हते ज़ुल्फ़े परीशां दास्ताने शामे ग़म
सुब्ह़ होने तक…
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Added by shree suneel on July 4, 2016 at 8:36pm —
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1212 1122 1212 22
तज़़्मीन बर ग़ज़ल जाँ निसार अख्तर
वो होंगे कैसे, सितम जिनपे मैंने ढाया था
कि मैं रुका न मुझे कोई रोक पाया था
थे अपने लोग मगर उनसे यूँ निभाया था
"ज़रा सी बात पे हर रस्म तोड़ आया था
दिल-ए-तबाह ने भी क्या मिज़ाज पाया था "
जमूद हूँ कि रवाँ हूँ मैं रहगुज़र की तरह
रुका कभी तो लगा वो भी इक सफ़र की तरह
दयारे गै़र में उभरा कुछ उस दहर की तरह
" गुज़र गया है कोई लम्हा-ए-शरर की तरह
अभी तो मैं उसे पहचान भी न पाया था…
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Added by shree suneel on June 6, 2016 at 3:39am —
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1222×4
शिकस्ता दिल है, रंजोग़म से ये क्योंकर उबर जाए
जज़ा ये है अब आँखों में ज़रा ख़ूँ भी उतर जाए.
हम एेसे सच्चे दिल का हैं ख़तावार आज ऐ यारो
कि चलने भी न संगे राह दे, तल्वीम कर जाए.
कहाँ कुछ बदले हैं हालात मेरे चंद सालों में
लकीरे दस्त पे कोई मेरे भीतर विफर जाए.
कदम इन कुर्सियों पे बैठ कर बस धुन हीं लेता हूँ
ये पा ए पीर क्या निकले भी घर से और घर जाए.
बहुत दिन एक से हालात में गुज़री ह़यात,अब तो
कोई लम्हा तसल्ली…
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Added by shree suneel on May 26, 2016 at 12:32am —
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2122 1212 22/112
साथ मेरे कभी रहो भी मियाँ
कुछ सुनाओ तो कुछ सुनो भी मियाँ.
चाँद बन जाओ या सितारे तुम
पर कभी तो फ़लक बनो भी मियाँ.
क्या है तुझमें,नहीं है क्या तुझमें
ये कभी ख़ुद से पूछ लो भी मियाँ.
तुम बहुत बोलते हो बढ़ चढ़कर
ये कमी दूर तुम करो भी मियाँ.
अब ये दारोमदार है तुम पर
तुम जहाँ हो वहाँ टिको भी मियाँ.
राय क़ाइम न दूर से करते
पहले सबसे मिलो जुलो भी मियाँ.
ज़िंदगी में कहाँ सुकून…
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Added by shree suneel on March 5, 2016 at 5:51pm —
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अभी जो देखकर गुज़रा हूँ रास्ते से
वो एक प्रतिछाया भर थी... वंचित जमाअ़त की.
एक दलित की बेटी
जो नहा रही थी
सड़क के किनारे गडे़ चापानल पर.
मुश्किल से गिरते पानी
और नहाने की शीघ्रता.
एक कुढ़न झेलती...
क्योंकि वह थी अर्द्धनग्न
चुभ रही थीं उसे आते-जाते
किशोरवय,अर्द्धवय लोगों की दृष्टियाँ.
बांस दो बांस की दूरी पे
उन दलितों के घर.
घर क्या...
आँगन और कोठरियाँ कुछ कुछ एक से
कहीं कहीं से फूस की धँसती…
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Added by shree suneel on December 8, 2015 at 1:40am —
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त़रह़ी ग़ज़ल /हवाऐं लौ को...
1222×4
हवाऐं लौ को आहिस्ता हिलाती हैं दिवाली में
डुलाती हैं ये सहलाती बुझाती हैं दिवाली में.
मचलती हैं चमकती हैं कभी कोई बहकती है
ये लड़ियाँ रौशनी की खिलखिलाती हैं दिवाली में.
बदल कर पैरहन अपने हुए जुलुमात हैं रौशन
'फ़िज़़ाऐं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में'.
जली थीं जो भी क़ंदीलें पसे दीवार छुप छुप कर
नुमायाँ कर के ख़ुद को अब जलाती हैं दिवाली में.
खुशी से झूमते ये नूर यां भी हैं वहाँ…
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Added by shree suneel on November 11, 2015 at 9:06am —
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कभी-कभी मैं भी न! वक़्त की इस हरकत पर
टूटा-सा महसूस किया करता हूँ भीतर.
मेरे बीते हुए दौर का वही एक पल
छू देता है मुझे और मैं जाता हूँ ढल.
गया वक़्त लौटता नहीं ये कहा किसी ने
मानूँ मैं क्यों भला सताया जबकि इसी ने.
माज़ी के दख़्ल से ज़िन्दगी ये मेरी,अब
मौजूदा वक़्त भी भला जी पाती है कब.
समय छोङ कर गया, कि जिद्दी थे कुछ लम्हें
गये नहीं, ये बात यकींनन पता है तुम्हें.
क्या ये मुमकिन नहीं, लौट आओ तुम भी
वापस मेरे पास, अचानक हीं…
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Added by shree suneel on September 14, 2015 at 2:40am —
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1212 1122 1212 22/112
चलो! दुआ ये अभी बैठकर ख़ुदा से करें
कुछेक मुश्किलों के हल तो अब दुआ से करें.
वो अम्नो चैन यहाँ यूँ बह़ाल हों शायद
ख़िरद से काम लें गर बात क़ाइदा से करें.
अ़जीब नस्ल के इस दर्द पे कहा ये तबीब
अब ऐसे दर्द का दरमां भी किस दवा से करें.
ख़ुदा है सबपे, अगर सच यही है तो ऐ दिल!
चराग़ तू तो जला, बात क्या हवा से करें.
वो ख़ुशनिहाद है, ख़ुशदिल है, ख़ुशज़बाँ है तो
अब ऐसे शख्स का पैमाई किस उला से…
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Added by shree suneel on September 5, 2015 at 1:00am —
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2122 1212 22
यूँ ख़फ़ा भी कहाँ थे तब हम पर
तुम बहुत जाँ फ़िशाँ थे तब हम पर
उन दिनों खेलते थे तारों से
तुम हुए आस्मां थे तब हम पर
मन मुताबिक़ जहाँ में जी लेंगे
त़ारी कितने गुमां थे तब हम पर.
याद आई गली वो रूस्वाई
चीखते सब दहां थे तब हम पर.
हम तरद्दुद न इश्क़ के मानें
वो जुनूं हाँ जी हाँ थे तब हम पर.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by shree suneel on August 9, 2015 at 5:46pm —
10 Comments
221 2121 1221 212
कुछ दिन ठहर के आज ये तूफ़ान तो गया
अच्छा ! बना के अौर हीं इंसान तो गया.
था बेअदब मगर वो हुनरबाज़ था, मेरी
पत्थर सी ज़िंदगी में पिरो जा़न तो गया.
पीले से पड़ गये हैं मेरे पास जिसके ख़त
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया.
वर्षों के रब्त में यही बाकी हीं था अभी
सो आज हीं सही,मैं उसे जान तो गया.
मिलता रहा मैं जिससे लिपट कर खुशी खुशी
होने पे मेरे उसका चलो ध्यान तो गया.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by shree suneel on July 23, 2015 at 12:16am —
18 Comments
2212 2212 2212
मीआ़दे उल्फ़त देखिये पूरी हुई
इतनी सी तब तो बात अब उतनी हुई.
क्या इश्क़ में दुनिया से तू भी तंग है
क्या तंज़ तुझ पे भी मेरे जैसी हुई.
दौरे गुज़श्ता ने असर कुछ यूँ किया
टूटा हुआ मैं,तू भी है टूटी हुई.
पाया है जो मेयार तेरे इश्क़ ने
लो! ज़िन्दगी क्या! रूह भी तेरी हुई.
ऐ चाँद! मुझको खींच ले ख़ुद की तरफ़
देखूं कि छत पे होगी वो आई हुई.
उनसा खिला गमले में इक तो गुल, अरे!
ख़ुशबूू भी…
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Added by shree suneel on July 5, 2015 at 5:00pm —
38 Comments
2212 2122 2212
रिश्तों में जो थी दरारें, भरने लगीं
पहले सा मैं, आप तब सी लगने लगीं.
चुप्पी सी थी इक ख़ला सा था बीच में
उम्मीद की वां शुआऐं दिखने लगीं.
अब ये जहाँ तेरी ज़़द में लगता है, लो!
आँचल में तेरे फ़िज़ाऐं छुपने लगीं.
जब फ़ासलों में पड़ीं थोड़ी सिलबटें
ये क़ुर्बतें अपनी सब को खलने लगीं.
तू मेरी होगी, यकीं ये था क्योंकि इन
हाँथो में तुम सी लकीरें बनने लगीं.
किस जज्बे से तुम दुआएं करती हो…
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Added by shree suneel on June 8, 2015 at 2:01pm —
22 Comments
शहर की चहारदीवारी से कान लगाओ तो
शहर के हालात का पता चलता है.
अपहरण के बाद अपह्रीत की गिड़गिड़ाहट...
बलात्कारी की ख़ामोशी
और नारी की दीर्घ चीख.
ख़ून के छींटे बेचता अख़बार वाला.
पेट्रोल और डीजल अब कारक नहीं प्रदूषण के
उसकी जगह ले चुकी बारूद की गंध- फांद चुकी शहर की चहारदीवारी.
रेंगने की आवाज़ पे मैं चौंका -
वह सुकून था-दीवारों में सुराख ढूँढता हुआ.
चहारदीवारी से चिपके कान की नसें क्या तनीं,
दीवार पे चढ़ के शहर…
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Added by shree suneel on May 28, 2015 at 3:06pm —
7 Comments
122 122 122 122
यकायक चराग़ों को क्या हो गया है
बुझे थे, जले फिर, ये किसकी दुआ है.
चलो और दिन तो है बाकी, रूकें क्यों
शजर पे अभी नूर देखो झुका है.
इसी आरज़ू में कटी ज़िन्दगी ये
पता तो चले क्या हमारा हुआ है.
अभी छू नहीं सर्द हांथों से ऐ शब
अभी तो मुझे उसने मन से छुअा है.
मुहब्बत किसे रास आई है इसमें
अमीरी, ग़रीबी, ज़माना, जुआ है.
- श्री सुनील
मौलिक व अप्रकाशित
Added by shree suneel on May 15, 2015 at 5:02pm —
35 Comments
उसकी सासें गातीं हैं सरगम
अौर रात रक़्स करती है/
मैं चाँद की डफली बजाता हूँ,
मगर ये गीत जाने कौन गाता है!
हमने चाँद को चिकुटी काटी /
शरारत सूझी/
उसे प्यार आया, फिर सहलाया /
और,
दे गया चाँदनी रात भर के लिये.
उसे चाँद दे दिया
और ख़ुद चाँदनी ले ली.
ठग लिया यूँ आसमाँ को आज हमने.
सुना है,
आसमां सितारों से शिकायत करता है.
रात की मिट्टी में,
तेरी यादों की एक डाली रोपी
जज्बात से सींचा उसे,
फिर,…
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Added by shree suneel on April 29, 2015 at 4:00pm —
16 Comments
2212 2212 2212
आसान राहों पे ले आती है मुझे
उसकी दुआ है, लग हीं जाती है मुझे.
ये शोर दिन का चैन लूटे है मेरा
औ' रात की चुप्पी जगाती है मुझे.
किस किस को रोकूं कौन सुनता है मेरी
ये भीङ पागल जो बताती है मुझे.
कूचे में जो मज्कूर है उस्से अलग
दहलीज़ तो कुछ औ' सुनाती है मुझे.
पहलू में मेरे बैठी है मुँह मोङ कर
ये ज़िन्दगी यूँ आजमाती है मुझे.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by shree suneel on April 28, 2015 at 3:36pm —
24 Comments
2122 1212 22
बात उतनी कहां पुरानी थी
मिलते हीं याद तब की आनी थी.
फ़र्क़ इतना दिखा मुझे यारों
अाज पीरी है तब जवानी थी.
वो दिखा हीं न ज़िन्दगी जीते
ज़िन्दगी उसकी बस ज़ुबानी थी.
बेवफ़ा हो के रात भर रोया
बेबसी उसकी क्या कहानी थी.
आज दरिया-ए-चश्म में उसके
थोङे पानी में क्या रवानी थी.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by shree suneel on April 12, 2015 at 11:27am —
18 Comments
मिट्टी के तत्वों से
गल चुके सैंकङों शब्द
कि शिलालेख की अर्थवत्ता खो चुकी.
जब कि,
अक्षम शिलालेख के नीचे
हस्ताक्षर सा शिलाचित्र
वयक्त कर रहा था सबकुछ.
कई-कई पुरूषों के बीच
अपह्रीत नारी, उसकी अस्मिता,
संकुचित देह से जैसे फटकर
निकलते आत्मरक्षार्थ हाथ.
पुरुषत्व के आगे याचनावत् थी नारी.
मिट्टी के तत्वों ने
शब्दों की तरह गलाया नहीं उसे,
इसलिए कि वह शिलाचित्र था
सर्वत्र के धरातल पर
सर्वदा की विषैली…
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Added by shree suneel on April 9, 2015 at 2:46pm —
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