बहर :- 2122-2122-2122-212
ख्याल लफ्जों से उतरकर शाइरी हो जाएगा ।।
शेर लब से लब टहलकर कागजी हो जायेगा।।
अब्र से शबभर गिरेंगी ओश की बूंदें मगर ।
दिन ही चढ़ते ये समां इक मस्खरी हो जाएगा।।
हाँ खुमार -ए-इश्क है बातें तो होगी रात दिन ।
जब भी उतरेगा ये सर से मयकशी हो जाएगा।।
उसके हक़ में है सियासत देखना तुम एक दिन।
जाने वो बोलेगा क्या क्या औऱ बरी हो जायेगा।।
दर्द-ओ-गम शुहरत मुहब्बत सब मिलेगा इश्क में ।
इश्क…
Added by amod shrivastav (bindouri) on July 25, 2019 at 3:10pm — 3 Comments
बहर.
2122-2122-2122-212
एक दिन उसने मेरी खामोशियों को रख दिया ।।
मेरे पेश-ए-आईने मे'री' हिचकियों को रख दिया ।।
तोड़ बंदिश हिज्र -ए-दिल ख़ुल कर युँ रोया इक दफा।
उसने दिल के सामने जब चिट्ठियों को रख दिया ।।
खन्न की आवाज ले सिक्का छुआ कांसे को जब।
भूख ने नजरें उठाई सिसकियों को रख दिया ।।
जब कभी मेरा वजू अन्धा हुआ इस भीड़ में ।
माँ ने अपनी आस के रौशन दियों को रख दिया ।।
गर कभी मायूस हो मन देख कर छत घास…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on July 14, 2019 at 6:37pm — 2 Comments
2122-2122-2122-212
मतला:-
ख़ुश ही रहता हूँ शिकायत क्या करूँ क्या है अता।।
आदमी हूँ ख्वाहिशें होनी नहीं कम ऐ ख़ुदा।।
हुश्न-ए-मतला:-
तेरे ज़ानिब से मुझे जो भी मिला अच्छा लगा ।
मैं तो मुफ़लिस था मेरी हिम्मत कहाँ कुछ माँगता।।
मेरा दम घुटने लगा जब महफिलों की शान में ।
यार आया हूँ उठा कर दूर खुद का मकबरा।।
मेरी मैय्यत में गुलों की बारिशें अच्छी नहीं।
शाइरी के भेष में करने लगा था इल्तिज़ा।।
देख़ो उल्फ़त के…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on May 31, 2019 at 12:20pm — No Comments
बहर :- 22-22-22-22-22-2
तुम हो शातिर तुमको ऐसा लगता है ।।
मेरी ओर से भी दरवाजा लगता है।।
मैं करता तुमसे कैसे दिल की बातें।
तुमको मेरा प्रेम ही' सौदा लगता है।।
वो मंदिर में गिरजाघर में मस्जिद में।
मुझमें तुझमें पहरा जिसका लगता है।।
वो पत्थर ख़ुद को समझे क़िस्मत वाला।
जिसको छैनी और हथौड़ा लगता है ।।
आन पड़े जब मुश्किल घड़ियां जीवन में।
एक रु'पइया एक हजारा लगता है ।।
हिन्दू मुस्लिम भाई…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on May 24, 2019 at 5:46pm — No Comments
1211-22-1221-212
दरोज बुझाया जलाया गया मुझे।।
कुछ और नहीं बस सताया गया मुझे।।
यूँ पहली नजर की मुहब्बत ही नेक थी ।
गलत है क़े रस्ता दिखाया गया मुझे।।
मुँड़ेर से महताब जैसा दिखाई दूँ।
वही एक रोगन चढ़ाया गया मुझे।।
मुझे भी यही दौर आसान कह रहा ।
वो दौर बता जो बताया गया मुझे।।
गुलाब सी खुश्बू बिखेरुं कभी कहीं।
कलम से कलम कर लगाया गया मुझे।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on May 24, 2019 at 1:28pm — No Comments
1212-1122-1212-22
हरेक बात पे उसका जवाब उल्टा है ।।
मगर वो प्यार मुझे बेशुमार करता है।।
वो मेरे इश्क-ए- मरासिम* बनाएगा' इकदिन यूँ।(प्यार के रिश्ते)
बड़े यकींन से उल्फ़त की बात करता है।।
यूँ बर्फ आब-ओ-हवा वादियों से गुजरी हो।
उसी तरह से मेरा ज़िस्म अब पिघलता है।।
कभी भी वक्त न ठहरा हुआ लगे मुझको।
के चावी कौन भला सुब्ह शाम भरता है।।
यकीं न हो तो जरा गौर कर के देखो तुम ।
तुम्हारी आँख में भारी तुम्हारा'…
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 27, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
हजज़ मुरब्बा मक़बूज
अरकान :- मुफाइलुन मुफाइलुन (1212-1212)
मुझे उसी से प्यार हो ।।
जो तीर दिल के पार हो ।।
पहाड़ जैसी' जिंदगी ।
कोई तो दाबे'दार हो।।
सवाल बस मेरा यही ।
अदब ओ ऐतबार हो।।(शिष्टाचार,विश्वास)
नफ़स की धुन नहीं थमें।(आत्मा,soul)
कोई भी कितना यार हो।।
लुग़त* की …
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on April 24, 2019 at 11:00pm — 1 Comment
श'हर में शोर ये फैला हुआ है ।।
पडोसी गाँव में मुजरा हुआ है।।
कोई तो दीद के क़ाबिल है आया ।
यहाँ दो दिन से ही परदा हुआ है।।
वतन की आबरू कैसे बचाए।
म'सलतन आज ही सौदा हुआ है।।
जरा देखूं सराफ़त छोड़ कर के ।
सुना है नाम कुछ अच्छा हुआ है।।
अजां पढ़ ले या बुत की आरती को ।
सभी कुछ आज…
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 21, 2019 at 10:47am — 3 Comments
समय के साथ भी सीखा गया है ।।
ये गुजरा दौर भी बतला गया है ।।
मेरी मजबूरियां अब मत गिनो तुम ।
मेरे संग हो तो सब देखा गया है ।।
सभी उस्ताद बनकर ही नहीं हैं।
मुझे अधभर में ही रख्खा गया है ।।
ये तेरा प्रेम कब छूटेगा मुझसे ।
मेरे चहरे में ये बस सा गया है ।।
मेरे भी चाहने वाले मिलेंगे।
मुझे कहकर यही बिछड़ा गया है ।।
कभी वो इन्तेहाँ मेरा भी ले…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on April 17, 2019 at 11:30am — 5 Comments
2121-212-2121-212
सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई।।
ख़ैरख्वाह वो बने,खैर-ख्वाही' की गई।।
मुद्दतों के बाद गर जो यूँ बात की गई।।
खामियां जता के ही गात फिर भरी गई।।
गर दो'-आब की पवन,रोंक लें ये खिड़कियां ।
रूह चंद दिवारों के दरमियाँ सिली गई।।
गर कहूँ जो' उनकी' तो साफ़ लफ़्ज हैं यही।
रात-ओ-दिन युँ आदतन हमसे बात की गई ।।
बिन पढ़े किताब -ए- दिल ,ग़र हिंसाब कर दिया ।।
तो दरख़्ती' जिंदगी क़त्ल ही तो की…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2019 at 10:30am — 1 Comment
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कोई रोकने लगा है क्या ?
कोई राज दरमियां है क्या?
तेरा फोन अब नहीं आता!!
कोई और मिल गया है क्या ?
मुझे गैर कह दिया तुमने!!
मेरा वास्ता बुरा है क्या ?
मेरे रूबरू नहीं रहते!!
मेरा साथ बददुआ है क्या?
तू ही खैरख्वाह बस मेरा!!
तू भी आजकल खफा है क्या?…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 17, 2019 at 9:00pm — 1 Comment
2122-2122-2122
वक्त से दो चार हो जाने लगे हैं।।
मन की मनमानी को ठुकराने लगे हैं।।
अब जो अरमानों को टहलाने-लगे* हैं।।(बहाने बाजी करना)
जीस्त की सच्चाई अपनाने लगे हैं।।
उम्र की दस्तक़ जो है चहरे प मेरे।
श्वेत होकर केश लहराने लगे हैं।।
बचपना अब रूठता सा जा रहा है ।
पौढ़पन* अब अक्श दरसाने लगे हैं।।
मंजिलों में जिनके परचम दिख रहे उन।
सब के तर* पे शाल्य* मनमाने लगे हैं।।( निचला हिस्सा,…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2019 at 1:21pm — 4 Comments
शीत जैसी चुभन, आग जैसी जलन।।
जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन।।
इक कशिश पल रही है हृदय में कहीं।
कश्मकश चल रही , साथ मेरे कोई।।
डुबकियां ले रहा ही मेरा आज मन।।
इस कदर है अधर से अधर का मिलन।।
जैसे पुरवा पवन छू रही हो बदन।।..१
जाने क्या कह रहा है .....
गर हूँ तन्हा मेरे साथ तन्हाई है।
भीड़ के साथ हूँ तो ये रूसवाई है।
दौड़कर पास आना लिपटना तेरा।।
मेरे आगोश में यूँ सिमटना तेरा।।
यूँ लगे जैसे मिलतें हो धरती…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 12, 2019 at 10:48am — 2 Comments
22-22-22-2
मन भी कितना आतुर है।।
ज्यूँ सबकुछ जीवन भर है।।
पशुओं कि यह हालत भी।
इंसानों से बेहतर है।।
लोक समीक्षा इतनी ही।
जितना चिड़िया का पर है।।
मेरा मेरा मुझको ही।
छाया है सब छप्पर है।।
कितना तुम अब भागोगे ।
तीन-कदम* पर ही घर है।।(बचपन जवानी बुढ़ापा)
खूब बड़े बन जाओ क्या…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 11, 2019 at 2:49pm — 3 Comments
22-22-22-22
मैं कुछ और कहाँ कहता हूँ।।
गैरों से लिपटा - अपना हूँ।।
वैमनष्यता न सर उठा पाए।
दुश्मन की तरहा रहता हूँ।।
दरपण भी छू सकता है क्या।
बस ये ऐसे ही - पूछा हूँ।
कलियाँ खुशबू बिखरायेंगी।
मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ।।
आमोद रखो, बिश्वास रखो।
पग पग जीवन में अच्छा हूँ।।
..अमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2019 at 11:30am — 5 Comments
याद आती है तुम्हारी क्या करूँ ।।
छाई रहती है खुमारी क्या करूँ।।
अब नहीं चलता , मेरे पे बस मेरा।
बढ़ रही नित बेक़रारी क्या करूँ।।
खुद मुआफ़िक आयत ए कुरआन हो।
इसमें अच्छी अर्श कारी क्या करूँ।।
झूठा' सिक्का अब चलन बाजार का
सच की झूठी जिल्दकारी क्या करूँ।।
हर्ज़ कोई बात से…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 9, 2019 at 3:30pm — 4 Comments
1222-1222-1222-1222
जो नजरें अब तलक बेख़ौफ़ दौड़ी जा रहीं हैं यूँ।।
कई आशाएं तपती रेत को खंघला रहीं हैं यूँ।।
कोई उम्मीद का सूरज , कहीं पर है खड़ा सायद।
पहल की किरने ये पैग़ाम लेकर आ रहीं हैं यूँ।।
ये सन्नाटा जो पसरा चीख़ के कुछ अंश बांकी हैं।
दिशाएँ इंतक़ाम-ए-जंग को दुहरा रहीं हैं यूँ।।
विषमता में खड़ी हो लोकधर्मी जंग लड़कर अब।
रिसाल ए रौशनाई हौसले उमड़ा रहीं हैं यूँ।।
कोई तो लिख रहा बेशक नया भारत किताबों में।…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 6, 2019 at 7:39pm — 1 Comment
अहसास होगा याद अगर करते हैं।।
आती है क्यूँ चाहत, के क्यूँ घर करते हैं।।
इस आस से की कल कुछ अच्छा होगा।
हम लोग इक दिन और सफर करते हैं।।
मैंने भी अक्सर नाम लिये बिन लिख्खा।
जज्बात ए दिल बेनाम सफर करते हैं।।
ये आपकी आहट ही कुरेदेगी घर को।
जो छोड़ जाना आप नज़र करतें हैं।।(पेश करना)…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 4, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
121-22-121-22
नये ज़माने का खून हूँ मैं।।
पुराने स्वेटर का ऊन हूँ मैं।।
मुझे न पढ़ना न पढ़ सकोगे।
मैं अहदे उल्फ़त* जुनून हूँ मैं। time of love
अजब! सिफारिश मेरी करोगे।
अभी भी शक है कि कौन हूं मैं।।
करोगे क्या मेरे ज़ख्म सी कर।
यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं।।
मकान मेरा नहीं है गुम सा।
पुराने घर से दरून* हूँ मैं।। (दिल,मध्य कोर)
के हिज्र हो या विसाल तेरा।
हूँ दोनों शय में…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 13, 2019 at 11:52pm — 3 Comments
बह्र-
2122-2122-1221-222
सुन! जो उनसे हो मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।
दरमियाँ फिर हो वही बात जाये तो क्या होगा।।
पर कहीं वो रूठ कर नजरें अपनी घुमा ली तो ।
बेबजह यूँ इश्क जजबात जाये तो क्या होगा।।
छोड़ उसको फिर न ये दर्द उलफत का देना अब।
रो के गर उसकी भी ये रात जाये तो क्या होगा।।
जानते हो ,वो यूँ मीलों सफर के जैसा है।
दो कदम चल के मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।
मुझसे वो अच्छे से मिलना नहीं चाहती…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 7, 2019 at 6:37pm — 4 Comments
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