For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी's Blog (199)

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १६

जबहो जुनून सवार मिस्लेअस्प सर में

तब की फर्क पैंदा आबेहयातओज़हर में

 

खुदाभी यही कहता है लौट आओ पास

कितना सुकून है बैठे बैठे अपने घर में

 

कितने तज़ब्जुब से भरा है सफरेज़ीस्त

कोई कल्ब ज्यूँ भटकताहो राहगुज़र में 

 

दुनियामें कुछ नहींहै दीदनी दिखावा है 

तमाम तिलिस्मात बस भरे हैं नज़र में

 

तमाम दुनियामें जो महसूस करे तन्हा

समूची कायनात समाई है उस बशर में

 

कम लोग जाने हैं तामीरेखल्कका…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 4:00pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १५

ओबीओ के मित्र जनाब अलबेला खत्री साहेब ने एक शेर मुझसे फर्माया वो ये कि- ‘सबकुछ है इस जहान में तन्हाई नहीं है, अफ़सोस की है बात कि शनासाई नहीं है’

 

इस शेर से मुतास्सिर होके ये पूरी गज़ल लिखी गई है, पेश कर रहा हूँ, मुलाहिजा फरमाइए:  

 

तू नहीं है जिन्दगी में तो लुत्फेतन्हाई भी नहीं है

ये यूँ हैकि आग लगाई नहीं तो बुझाई भी नहीं है

 

ठहरा ठहरा है दरख्तों पे शामका इक तवील साया

शब लिखनेवालेके कलममें जैसे रोशनाईभी नहीं है…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 2:55pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १४

तुमको चाहा हमने तो मायूसी मिली

और न पाया तुझे तो जिन्दगी मिली

 

गले मिल के साथ साथ दोनों रोते थे

कल रात मेरे दुखोंसे जब खुशी मिली

 

आह तेरा दीद अश्कसे सूखी आँखोंको

समा न पाए जो इतनी रौशनी मिली

 

दामानेयार की सबा से मरनेवालों को

साअतेमर्ग दो पल की जिन्दगी मिली

 

कलशब कोई आधीरात कहके रोताथा

वफ़ा नीमशबहै मिली पे अधूरी मिली  

 

नसीब देताहै पर क्या ये बात दीगरहै

दिल की लगी चाही पे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:58pm — 1 Comment

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १३

ज़िंदगी गुज़र न जाए कहीं सवालों में

कि ज़रा शराबभी ढालो रखे प्यालों में

 

तमन्ना है कि अवाम का कहलाऊं मैं

नाम लिया न जाए फक़त मिसालों में

 

कहींतो कोई बात कुछ गलत लगतीहै

तफरका क्यूँ हुआ है तेरेमेरे हवालों में

 

भूख मिटाए ये ताकत नहीं निवालोंमें

आह ये बच्चे गड्ढे हैं जिनके गालोंमें

 

गुबारेख्वाब फूट जाता है ऊँचा हो कर

मंसूबे हमनेभी बाँधे थे कई ख्यालों में  

 

सुनाहै दमेमर्ग नाबीनाभी देख…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:21pm — 1 Comment

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १२

सबों से दिल की मुश्किलों का सबब क्या कहिए 

मगर जब अपनेही पूछें येसवाल तब क्या कहिए



वक्त क्यूँ ढाता है मासूमों पर गजब क्या कहिए

कहाँ जाती है नेकी -ए-कायनात अब क्या कहिए 



रूठकर खो गई जो अज्दाहामे फिक्रेदौराँ में कभी 

होती है अबभी उन निगाहोंकी तलब क्या कहिए 



बहुत एहतियात से हुस्न की नजाकत संभालिए

रहिए फिक्रमंद कि तबक्या और अबक्या…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:11am — 5 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ११

दो घूँट पिला दे साकी तो कोई बात बने 

तेरे गेसुओं से बुन के आज की रात बने



दो किनारे हैं समंदरके कहाँ मिल पाते हैं

कोई सूरत कमरओमेहरकी मुलाक़ात बने 



आओ कर लें दुआ इन्केलाबे तगय्युर की 

अज़- सरे- नौ अब आईन्दा कायनात बने



गर तेरी निगाह है बादा तो दुआ करता हूँ

देखने वालों के सीने में एक खराबात बने



ख़्वाब कामिलहो, मनचाही…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:07am — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १०

अब और जी के जहाँमें क्या कर लेंगे 

चलो हम आलमेबालामें नया घर लेंगे



ये कहाँ आ गए, किस मोड़पे हो तुम 

मंजिल नहीं हो तो क्यूँ राहगुज़र लेंगे 



न जाओ तुम मेरी बेफ़िक्रीओमस्ती पे 

होश खो दोगे कभू हम जो संवर लेंगे 



इन परीरूओं के दामसे बच कर रहना 

इक हंसी देंगे तो बदले में जिगर लेंगे 



सब्र करिए कि सब्र का फल मीठा है 

लेंगे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:04am — 1 Comment

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ९

मकते का शेर दरअसल इस बात के पसेमंज़र कहा गया है कि मेरे ख्यालों की उड़ान, मेरे मिजाजोतबीयत की रुझान और मेरी मआशी (आजीविका से जुडी) ज़िंदगी में कोई मेल नहीं है और मैं अक्सरहा खुद को गलत जगह पाता हूँ. 



खुदा के बंदे हैं खुदा के बन्दों से क्यूँ डरें

आओ प्यारसे एक दूसरेको बाहोंमें भरलें 



अगर तुम मिल जाओ किसी साअत मुझे 

सुबहें भी बस थमी रहें, शामें भी ना ढलें 



ज़मानेको कहाँ नसीब मेरे ख्यालोंकी…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:03am — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८

कोई हसीन नज़ारा नज़र को चाहिए 

बसएक दरीचा दीवारोदर को चाहिए 



लो फ़ैल गई किसी जंगलकी आगसी

अफवाहों की तेज़ी खबर को चाहिए 



थोड़ी ज़मीन और थोड़ा आबो रौशनी

बस यही दौलत बेखेशज़र को चाहिए



दो जामा एक चारपाई माथे पर छत

और दो जूनकी रोटी बशरको चाहिए 



क्यूँ दिल को तेरा ख़याल हर साअत

और तेरे मूका दीदार नज़रको चाहिए



तेरी…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 12:00am — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७

ना करो कोई तफरका लड़के और लड़की में 

तुख्मेखल्क बराबर है औरत और आदमी में 



जो तुम मार डालोगे अपनीही कोखका जना

तोफिर क्या फर्क रहेगा इंसान और वहशीमें



बेटियाँ तो गुलपाश हैं गुलिस्ताने कुनबा की

फैलतीहैं ये बनके मुश्केबू हज़ार ज़िन्दगी में



ए ज़हालतमें भटकेहुए बिरादर संभल जाओ

तारीकीएतआस्सुबसे निकल आओ रौशनी में 



बेटेतो बड़े होके बसा लेते हैं अपना घोंसला 

बेटियाँ पोछतीहैं आपके आंसूं खुशीओगमीमें 



न होती मरियम तो कहाँ होते…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 11:57pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६

ज़माने भर की सताइश भी बहुत कम है 

जोतेरे दहनपे मेरी तारीफ़का एक ख़म है 



इक मुहब्बतथी जावेदां वोभी नहीं नसीब 

इस आलमे फना में क्या दूसरा अलम है 



कहानी नई नहीं अजअज़ल यही दास्ताँहै 

दिल है तो दर्द है, मुहब्बत है तो गम है 



आओ बताएं क्याक्या है बागेमुहब्बत में 

जुल्म है ज़ोर है ज़ब्र है जफा है सितम है



ज़िंदगी एकसी है दर्द एक इन्केशाफ एक 

आँखों को जैसे अश्क गुलों को शबनम है



ये कायनात कोई ख्वाब बीदा परीज़ादी है …

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 11:54pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५

कब तलक यूँ ही गली-गली में सताई जाएँगी बेटियाँ 

कभी ज़हेज़ तोकभी इज्ज़तको जलाई जाएँगी बेटियाँ 



कब तलक दुल्हन बननेके लिए गैरतके खरीदारों को 

सजा-धजाके किसी खिलौनेसी दिखाई जाएँगी बेटियाँ



माँ बहन बीवी और बेटी सभी हैं आखिरशतो बेटियाँ

फिर क्यूँ कब्रसे पहले हमल में सुलाई जाएँगी बेटियाँ 



खुदा भी क्या सोचता होगा आलमेअर्श में बैठा- बैठा

अगले खल्कमें सिर्फ और सिर्फ बनाई जाएँगी बेटियाँ 



अगर यूँ ही बेटियों को तआस्सुब से देखा जाएगा तो …

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 11:50pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ४

बहुत कुछ हमने पढ़ा है किताबों में

ज़िंदगी मगर नहीं समातीहै बाबों में

 

इत्मीनान हुए तो बेचैन हो उठे हम

सुकूंकी आदत होगई है इज्तेराबों में

 

बेपर्दा हुएतो पहचान न पाए तुमको

जोभी देखाहै वो देखा है हिजाबों में 

 

तुम गएतो खराबातेइश्क उजड़ गया

नशा अब कहाँ बाकी रहा शराबों में

 

कारिज़ थे जो तेरे होगए हैं कर्ज़दार

न जाने चूक कहाँ होगई हिसाबों में

 

हमें धोखामिला उनसे जोथे मोतेबर

तुम सबात…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 9:00pm — 7 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३

भोपाल की इक सुबह...

------------------------------

भोपाल की इक सुबह...जून का महीना और गर्मी का तेवर चढ़ा हुआ. किसी महानगर सी हलचल का कोई निशाँ नहीं. हाँ, इक छोटे, अलसाए से कस्बे के जीवन की मद्धम धड़कन की अंतर्ध्वनि कानों में आहिस्ता गूंजती, जैसे खामोशी अगर कभी बोलती तो यूँ बोलती. लताएं हल्के हलके अंदाज़ में सुस्त हवाओं के ताल पे डोलतीं, सडकों पे बेज़ार कुत्ते इधर उधर मुंह मारते, रुपहली धूप के गर्म होते साये मकानों पे फैलते- भोपाल की ये तस्वीर अद्भुत है. लोग कब घरों से निकल के दफ्तर…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 6:13pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २

महीनों बाद भोपाल के घर में बैठा एकांतप्रस्थ मेरा मन.....

-----------------------------------------------------------------------

शाम इक दुल्हन की तरह सजी संवरी महक रही है. डूबते सूरज की लालिमा के घूंघट ने उसे और भी युवा बना दिया है, पीतवर्णी क्षितिज जैसे उसकी सुडौल बाहें हैं, सारी धरा इस दुल्हन की सौम्य काया, नीड़ों को लौटते पक्षियों का कलरव जैसे दुल्हन के आभूषणों की कर्णप्रिय ध्वनियाँ हैं, कोयल की आवाज़, जैसे दुल्हन की पाजेब की खनक. अस्तमान सूर्य के अर्धचन्द्राकार वलय से विकीर्ण…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 6:10pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १

दिन किसी पैसेंजर ट्रेन की तरह है...

-------------------------------------------

दिन किसी पैसेंजर ट्रेन की तरह है जिसपे हर सुबह हम सवार हो जाते हैं. रोज़ का बंधा बंधाया सफर सुब्ह से शाम तक का और फिर वापिस अपने अपने घरों में. सुबह की निकली ट्रेन दोपहर के स्टेशन आ चुकी है, कुछ थकी थकाई, सांसे थोड़ी ऊपर नीचे, चेहरे पे सफर की धूल और आँखों में रुकते-दौड़ते रहने की थकान. लोग अपने अपने मुकामों के प्लेटफोर्म पे उतर कर न जाने क्या ढूँढते रहते हैं, क्या कदो-काविश (भाग-दौड़) है, क्या कारोआमाल…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 6:00pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३

हज़ार जिगर को तेरे मिलने की चाहत हो

काम क्या बने जब न अपनी किस्मत हो

 

मैंने अक्सरहा रोटी और कपड़ों से पूछा है

ज़रूरतोंके दाफिएके लिए कितनी दौलतहो

 

क्यूँ अभीसे ही तू सूफियाना हुआ जाता है

ऐ दिल तुझे कोई ख्वाहिश कोई हसरत हो

 

हसरतों को लूटकर करते हो मिजाजपुरसी

दुआ है तुझेभी जूनूँ हो दर्द हो मुहब्बत हो 

 

लो ऐलान करदिया कि आगए हैं बाज़ारमें

ज़िंदगी तवाइफ़ है मेरी, अबतो इनायत हो

 

ज़िंदगी भर रहे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:26pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २

जिन्दगी है उलझी तेरे तुर्रा -ए-तर्रार की तरह

और इतनी साफ़ कि पढ़लो अखबार की तरह

 

एहसासेतवाफ़ेरोजोशब ये सोना- जागना अपना

भटकते हैं दर- दर तम्सीलके किरदारकी तरह   

 

आना ही था तो आ जाता जैसे नींद रातों को

तू ज़िंदगीमें क्यूँ आया फ़स्लेबेइख्तेयारकी तरह

 

तुझसे बिछड़नाभी हो गोया कोई कारेखुदकुशी

और तुझसे इश्क निभानाभी वस्लेनारकी तरह

 

दर्दकी दास्ताँ रहगई खतोंकी तहरीर की तरह

प्यार हमारा टूट गया मुंहबोले इकरारकी…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:06pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १

कुछ बातों की कोई इम्तेहा नहीं होती

होती है बस, कमोबेश वफ़ा नहीं होती

 

करो बहबूदीकी तमन्ना और भूलजाओ

जिसमें हो एहसान वो दुआ नहीं होती  

 

माँ माँ होतीहै लहुलुहान होकर भी माँ

बच्चोंके लिए कभी आब्लापा नहींहोती

 

गरीबों केलिए ज़्यादा गिज़ा नहीं होती

अमीरों केलिए भूखकी दवा नहीं होती

 

अगर न होती भूल आदमोहव्वा से तो

रंगभरी और दुःखभरी दुनिया नहींहोती

 

काश कि औरत न होती रागिबेपैदाइश

और…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:00pm — 3 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2016

2013

2012

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service