गुज़रे हुए मौसम, ,,,
अन्तहीन सफ़र
तुम और मैं
जैसे
ख़ामोश पथिक
अनजाने मोड़
अनजानी मंजिल
कसमसाती अभिव्यक्तियां
अनजानी आतुरता
देखते रह गए
गुजरते हुए कदमों को
अपने ऊपर से
गुलमोहर के फूल
तुम और मैं
दो ज़िस्म
दो साये
चलते रहे
खड़े -खड़े
मीलों तक
और
ख़ामोशियों के बवंडर में
देखते रहे
अपनी मुहब्बत
तन्हा आंखों की
गहराईयों में
गुज़रे हुए मौसम की…
Added by Sushil Sarna on October 27, 2020 at 7:55pm — 6 Comments
ख़ामोश दो किनारे ....
बरसों के बाद
हम मिले भी तो किसी अजनबी की तरह
हमारे बीच का मौन
जैसे किसी अपराधबोध से ग्रसित
रिश्ते का प्रतिनिधित्व कर रहा हो
ख़ामोशी के एक किनारे पर तुम
सिर को झुकाये खड़ी हो
और
दूसरे किनारे पर मैं
मौन का वरण किये खड़ा हूँ
क्या कभी मिट पाएँगे
हम दोनों के मिलन में अवरोधक
ख़ामोशी के
ख़ामोश दो किनारे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 16, 2020 at 6:54pm — 6 Comments
पागल दिल का पागल सपना ......
इत् -उत् ढूँढूँ साजन अपना
नैनन द्वार भी आये न सपना
बैरी कजरा बह -बह जाए
का से कहूँ दुःख साजन अपना
तुम यथार्थ से बन गए सपना
प्यार किया करके बिसराया
प्रीतम तोहे तरस न आया
तडपत तडपत रैन बिताई
काहे तो पे ये मन आया
मुश्किल दिल को है समझाना
भूलूँ कैसे तेरी बातें
प्यार भरी वो प्यारी रातें
हर आहट पर ऐसा लगता
लौटी जैसे फिर मुलाकातें
आहत करे तेरा यूँ…
Added by Sushil Sarna on October 14, 2020 at 6:21pm — 2 Comments
पानी से आग बुझाने की ....
किस तिनके ने दी इजाज़त
घर में धूप को आने की
दहलीज़ पे रातों की आकर
पलकों में ख़्वाब जलाने की
जिस खिड़की पर लगी थी चिलमन
नज़र से हुस्न बचाने की
उस खिड़की पर रुकी थी नज़रें
इस कम्बख़्त ज़माने की
मंज़िल उसको मान के हम
उसके इश्क में जलते रहे
वो चालें अपनी चलते रहे
हमसे हमें चुराने की
ख़्वाहिश बस ख़्वाहिश ही रही
पलकों में घर बनाने की
नादाँ दिल को मिली सज़ा
नज़रों से नज़र मिलाने की
कसर न छोड़ी…
Added by Sushil Sarna on October 12, 2020 at 3:25pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on October 7, 2020 at 3:03pm — 2 Comments
वेदना कुछ दोहे :
गली गली में घूमते , कामुक वहशी आज।
नहीं सुरक्षित आजकल, बहु-बेटी की लाज।।
इतने वहशी हो गए, जाने कैसे लोग।
रिश्ते दूषित कर गया, कामुकता का रोग।।
पीड़ित की पीड़ा भला, क्या समझे शैतान।
नोच-ंनोच वहशी करे, नारी लहूलुहान।।
बेटे से बेटी बड़ी, कहने की है बात।
बेटी सहती उम्र भर , अनचाहे आघात।।
नारी का कामी करें, छलनी हर सम्मान।
आदिकाल से आज तक, सहती वो अपमान ।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 5, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on October 2, 2020 at 1:57pm — 6 Comments
अपने रूप पर ऐ चाँद तू ........
अपने रूप पर ऐ चाँद तू
क्यों इतना इतराया है
तू तो मेरे चाँद का
बस हल्का सा साया है
केसरिया है रूप तेरा
केसरिया परछाईं है
कौमुदी ने पानी में
प्रीत की पेंग बढ़ाई है
विभावरी का स्वप्न है तू
चांदनी का प्यारा है
पानी में तेरा अक्स
बड़ा हसीँ छलावा है
अक्स नहीं यकीं है वो
इन बाहों को जो भाया है
ख़्वाब है मेरी नींद का वो
हकीकत में हमसाया है
खुदा ने अपने हाथों से
मेरे चाँद को बनाया…
Added by Sushil Sarna on September 25, 2020 at 5:04pm — No Comments
क्षणिकाएं : जिन्दगी पर
जिंदगी
जीती रही
मिट जाने के बाद भी
जिंदगी के लिए
कैद में
निर्जीव फ्रेम के
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
लगा देती है
जिन्दगी
आंखों की चौखट पर
सांकल
हर प्रतीक्षा की
सांसो से
अनबन
होने के बाद
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हो गया
गिलास खाली
पानी
बिखर जाने के बाद
थी
फिर भी उसमें
शेष
थोड़ी सी
नमी
अनदेखी
जिन्दगी…
Added by Sushil Sarna on September 17, 2020 at 8:52pm — 6 Comments
Added by Sushil Sarna on September 14, 2020 at 2:00pm — 8 Comments
बिना दिल के ......
लहरों से टकराती
हवाओं से उलझती कश्ती को
आख़िरकार
किनारा मिल ही गया
मगर
अभी तो उसे जीना था
वो समंदर
ज़िंदा थीं जिसमें
उसकी बेशुमार ख्वाहिशें
उसके साथ जीने की
लगता था
उसके बिना
रेतीले किनारों पर
मेरा बदन मृत सा पड़ा जी रहा था
इस आस में
कि मेरा समंदर
मुझे नहीं छोड़ेगा
इन रेतीले किनारों में
दफन होने के लिए
वो जानता है
बिना दिल के भी
कहीं ज़िस्म…
Added by Sushil Sarna on September 7, 2020 at 7:30pm — 8 Comments
ज़िंदगी ........
झड़ जाते हैं
मौसमों की मार सहते सहते
एक एक करके सारे पात
किसी वयोवृद्ध वृक्ष के
भ्रम है उसकी अवस्था
क्योँकि
उम्र के चरम के बावज़ूद
रहती है ज़िंदा
अपने मौसम की प्रतीक्षा में
आदि किरण
ज़िंदगी की
लौट आते हैं उदास विहग
ज़िंदगी के
पुनः उन्हीं पर्ण विहीन शाखाओं पर
अंकुरित होती है जहाँ
फिर से शाखाओं की कोरों पर
पीत पुष्पों से
लौटे मौसम का अभिनन्दन करती…
Added by Sushil Sarna on September 3, 2020 at 9:30pm — 6 Comments
देह पर कुछ दोहे, ,,,,,,
देह धरा में खो गई, शून्य हुए सम्बंध ।
तस्वीरों में रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।
देह मिटी तो मिट गए, भौतिक जग के दंश ।
शेष पवन में रह गए, कुछ यादों के अंश ।।
देह छोड़ के उड़ चला ,श्वास पंख का हंस ।
काल न छोड़े जीव को ,होता काल नृशंस ।।
आती -जाती देह में , सांसे हैं आभास ।
एक श्वास का भी नहीं, जीवन में विश्वास ।।
देह दास है श्वास की, श्वास देह की प्यास ।
श्वास देह की जिंदगी, श्वास देह की आस…
Added by Sushil Sarna on September 3, 2020 at 8:35pm — 10 Comments
दोहा त्रयी : गरीबी
दृगजल से रहते भरे, निर्धन के दो नैन।
दर्द सुनाए लोरियाँ, भूखी बीते रैन।।
बिखरे बाल गरीब के, आँसू शोभित गाल।
उदर क्षुधा जीवित रहे, बन कर सदा सवाल।।
आँसू गिरा गरीब का, कोई न समझा दर्द।
संग श्वास लिपटी रही, सदा भूख की गर्द।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 30, 2020 at 6:23pm — 2 Comments
कुछ क्षणिकाएँ :
1.
बहुत कुछ कह जाती हैं
कुछ
कहने से पहले
ये
ख़ामोश सी आँखें
............................
2.
गुंजित कर गईं
कितनी ही चुप सी दस्तकें
एक
जुगनू सी याद
.................................
3.
कब टूटा है
आसमान से चाँद
टूटते तो
तारे हैं
अतृप्त अभिलाषाओं के
आसमान से
दिल के
..............................
4.
करती रही बातें
बिस्तर पर
सोये सपनों से…
Added by Sushil Sarna on August 23, 2020 at 9:50pm — 6 Comments
21.8.20
एकाकी मन........
झूठ है
एकांत में
सिर्फ एकांत होता है
एकाकी मन
वहीं शांत होता है
थक जाता है ये एकाकी मन
ज़िंदगी के जालों को
सुलझाते सुलझाते
अनकहे अहसासों को
दबाते दबाते
भावनाओं की गठरी को
उठाते उठाते
अंधेरों की स्याह चादर में
अपने ही साये
एकाकीपन की देह को
नोचते नज़र आते हैं
सच तो ये है
एकांत में अनचाहे बवंडर
एकाकी मन के
एकाकीपन को लील जाते हैं
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 21, 2020 at 7:47pm — 8 Comments
सावनी दोहे
गुन -गुन गाएं धड़कनें, सावन में मल्हार ।
पलक झरोखों में दिखे, प्यासा -प्यासा प्यार ।।
अनुरोधों के ज्वार हैं, अधरों पर स्वीकार ।
प्रतिबन्धों की हो गई, मूक रैन में हार ।।
सावन में अक्सर बढे़, पिया मिलन की प्यास ।
हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास । ।
बूंदों की अठखेलियां, नटखट से इंकार ।
बेसुध तन पर प्यार की, पड़ती रही फुहार…
Added by Sushil Sarna on August 18, 2020 at 8:14pm — 10 Comments
Added by Sushil Sarna on August 15, 2020 at 6:09pm — 10 Comments
प्रश्नों का प्रासाद है, जीवन की हर श्वास ।
मरीचिका में जी रहा, कालजयी विश्वास । ।
प्रश्नों से मत पूछिए, उनके दिल का हाल ।
उत्तर के नखरे बड़े, करते बहुत सवाल ।।
बिन उत्तर हर प्रश्न ज्यूँ, बिना पाल की नाव ।
इक दूजे को दम्भ का, दोनों देते घाव ।।
प्रश्न अगर हैं तीक्ष्ण तो , उत्तर भी उस्ताद ।
बिन उत्तर के प्रश्न का, बढ़ जाता अवसाद ।।
उत्तर से बढ़कर नहीं, प्रश्नों का अस्तित्व।
इक दूजे में है निहित, दोनों का…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2020 at 5:30pm — 6 Comments
मोहब्बत क्या है .......
तुम समझे ही नहीं
मोहब्बत क्या है
मेरी तरह
कुछ लम्हे
तन्हा जी कर देखो
दीवारों पर अहसासों के अक्स
रक्स करते नज़र आएंगे
दर्द के सैलाब
आखों में उतर आएंगे
लबों के साहिल पर
अलफ़ाज़ कसमसायेंगे
अंधेरों के कहकहे
रूह तक पसर जाएंगे
तब तुम जानोगे
मोहब्बत क्या है
उलझी लटों को सुलझाना
मोहब्बत नहीं है
ज़िस्मानी गलियों से गुजर जाना
मोहब्बत नहीं है
हिर्सो-हवस के पैराहन
पहने रहना
मोहब्बत नहीं…
Added by Sushil Sarna on August 11, 2020 at 4:56pm — 2 Comments
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