For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (876)

उम्मीद .......

उम्मीद .......

मैं जानती हूँ

बन्द साँकल में

कोई आवाज नहीं होती

मगर होती हैं उसमें

उम्मीद की सीढ़ियों पर सोयी

अनगिनत प्यासी उम्मीदें

किसी के लौट आने की

मैं ये भी जानती हूँ

कि उम्मीद के दामन में

दर्द के सैलाब होते हैं

कुछ हसीन ख़्वाब होते हैं

साँझ के साथ

उम्मीद भी जवान होती है

शब

इन्तज़ार के पैरहन में रोती है

जानती हूँ

उम्मीद झूठी होती है

मगर दिल की बसती में

उम्मीद…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 15, 2021 at 4:00pm — 6 Comments

उस रात ....

उस रात .......

उस रात

वो बल्ब की पीली रोशनी

देर तक काँपती रही

जब तुम मेरी आँखों के दामन में

मेरे ख्वाबों को रेज़ा-रेज़ा करके

चले गए

और मैं बतियाती रही

तन्हा पीली रोशनी से

देर तक

उस रात

मुझसे मिलने फिर मेरी तन्हाई आई थी

मेरी आरज़ू की हर सलवट पर

तेरी बेवफाई मुस्कुराई थी

और मैं

अन्धेरी परतों में

बीते लम्हों को बीनती रही

देर तक

उस रात

तुम उल्फ़त के दीवान का

पहला अहसास…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 13, 2021 at 3:42pm — 6 Comments

चाँद - चाँदनी पर दोहावली ......

चाँद -चाँदनी पर दोहावली ......

देख रहा है चाँदनी , आसमान से चाँद ।

मिलने आया झील में , नीले नभ को फाँद।1।

देख चाँद को चाँदनी ,करे झील पर रक्स ।

सिमट गया है चाँद का, उजियारी में अक्स ।2।

चाँद फलक का ख़्वाब तो, धवल चाँदनी नूर ।

वीचि -वीचि क्रीड़ा करे, सोम प्रीत में चूर ।3।

विभा चाँद की  देखती, तारों वाली रात ।

नील झील से कौमुदी, करे चाँद से बात ।4।

छुप-छुप देखे चंद्रिका, अपने विधु का रूप ।

बिम्ब चाँद…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 3, 2021 at 3:55pm — 5 Comments

एक दोहा गज़ल - नज़रें

एक दोहा गज़ल - नज़रें -(प्रथम प्रयास )



नज़रें मंडी हो गईं, नज़र बनी बाज़ार ।

नज़र नज़र में बिक गया, एक जिस्म सौ बार।

*

नजरों को झूठी लगे, अब नजरों की प्रीत ,

हवस सुवासित अब लगे, नजरों की मनुहार ।

*

नजरों से छुपती नहीं , कभी नज़र की बात ,

नजरें करती हैं सदा, नजरों से व्यापार ।

*

भद्दा लगता है बड़ा ,काजल का शृंगार ,

लुट जाता है जब कभी ,नजरों का संसार ।

*

कह देती है हर नज़र , अन्तस की हर बात ,

कहीं नज़र की जीत है, कहीं नज़र की…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 31, 2021 at 11:12pm — 7 Comments

दोहा मुक्तक ......

दोहा मुक्तक :.....

1

मिथ्या मैं की डुगडुगी, मिथ्या मैं के ढोल ।

मिथ्या मैं का आवरण, मिथ्या मीठे बोल ।

मिथ्या जग के कहकहे, मिथ्या सब सम्बंध -

मिथ्या मौसम प्रीत के, मिथ्या प्रीत के कौल ।

............................................................

2

हर लकीर में जिन्दगी, जीती एक विधान ।

मरता है सौ बार तब , जीता है इन्सान ।

रख पाया है वक्त की, वश में कौन लगाम -

श्वास पृष्ठ पर है लिखा, आदि संग अवसान ।

सुशील सरना / 29-8-21

मौलिक…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 29, 2021 at 10:48am — 4 Comments

मन पर कुछ दोहे ......

मन पर कुछ दोहे : ......

मन को मन का मिल गया, मन में ही विश्वास ।

मन में भोग-विलास है, मन में है सन्यास ।।

मन में मन का सारथी, मन में मन का दास ।

मन में साँसें भोग की, मन में है बनवास ।।

मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।

मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । ।

मन मंथन करता रहा, मिला न मन का छोर ।

मन को मन ही छल गया, मन को मिली न भोर । ।

मन सागर है प्यास का, मन राँझे का तीर ।

मन में…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 3, 2021 at 9:28pm — 4 Comments

मौसम को .......

मौसम को .....

सुइयाँ

अपनी रफ्तार से चलती रहीं

समय

घड़ी के बाहर खड़ा खड़ा काँपता रहा

मौसम

समय के काँधे पर

अपनी उपस्थिति की दस्तक देता रहा

बदले मौसम की बयार को छूकर

झुकी टहनियाँ

स्मृतियों में

पिछले मौसम के स्पर्श का रोमांच

सुनाती रहीं

मौसम को

वायु वेग से

रेत पर छोड़े पाँव के निशान

उड़- उड़ कर

अपनी व्यथा सुनाने लगे

मौसम को

झील के पानी में निस्तब्धता

दिखाती रही…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 2, 2021 at 1:59pm — 17 Comments

सावन के दोहे : ..........

सावन के दोहे :.........

गुन -गुन गाएँ धड़कनें, सावन में मल्हार ।

पलक झरोखों में दिखे, प्यारी सी मनुहार ।।

सावन में अक्सर करे , दिल मिलने की आस।

हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास ।।

अन्तस में झंकृत हुए, सुप्त सभी स्वीकार।

तन पर सावन की करे, वृृष्टि   मधुर  शृंगार ।।

सावन में अच्छे लगें, मौन मधुर स्वीकार ।

मुदित नयन में हो गई, प्रतिबन्धों की हार।।

अन्तर्मन को छू गये, अनुरोधों के ज्वार ।

इन्कारों…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 28, 2021 at 3:30pm — 6 Comments

प्रश्न .....

प्रश्न ......

प्रश्न प्रश्न प्रश्न

स्वयं को तलाशते

सैंकड़ों प्रश्न

क्या मैं

सदियों से वीरान किसी पूजा गृह की

काल धूल के आवरण से लिपटी

कोई खंडित प्रतिमा हूँ

या फिर

किसी हवन कुंड में

किसी मनोरथ की सिद्धि के लिए

झोंकी जाने वाली सामग्री हूँ

या फिर

विषधरों के दंश झेलता

कोई चंदन का विटप हूँ

या फिर

काल की आँधी में अपने अस्तित्व से जूझता

धीरे-धीरे विघटित होता

शिला खंड…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 26, 2021 at 12:54pm — 6 Comments

फ़र्ज़ ......

फ़र्ज़ ......

निभा दिया फ़र्ज़
संतान ने
भेजकर माँ - बाप को
वृद्धाश्रम

........................

आजकल फ़र्ज़ भी
निभाए जाते हैं
कर्ज़ की तरह

.........................

गुजर गए
गुजरना था उनको
जिन्दगी की आखिरी पायदान से
बदल कर
पुरानी नेम प्लेट अपने नाम से
निभा दिया फ़र्ज़
अपने वारिस होने का

सुशील सरना / 23-7-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on July 23, 2021 at 5:37pm — 2 Comments

दोहा त्रयी. . . .

अन्तस में नर्तन करें, विगत रैन के द्वन्द ।
मुदित नैन रचने लगे, प्रीत गंध के छन्द । ।

नैनों से नैना करें , गुपचुप- गुपचुप बात ।
रैन तिमिर में हो गए, अलबेले उत्पात ।।

थोड़े से इंकार थे, थोड़े से इकरार ।
भली  लगी संघर्ष में, भोली भाली हार ।।

सुशील सरना / 20-7-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on July 20, 2021 at 12:00pm — 10 Comments

अभिव्यक्ति .......

अभिव्यक्ति ......

कैसे व्यक्त करूँ

अपने प्रेम की गहराई को

अभिव्यक्ति के अवगुंठन में

एक खीज है

तुम्हें छूने की

अबोले स्पर्शों से

कब तक लड़ूँ मैं

तुम ही कहो न

अपने प्रेम की गहराई को

कैसे व्यक्त करूँ मैं

हां! मैं तुम्हें प्यार करूँगी

भोर की उजास में

साँझ की प्यास में

तृप्ति की आस में

हर हलाहल पी जाऊँगी

मर के भी जी जाऊँगी

बस मेरी तन्हाई में

कुछ देर और जी जाओ

तुम ही कहो

तुम्हारे प्यार में आखिर…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 15, 2021 at 3:32pm — 10 Comments

सुलगते अँधेरे . . .

सुलगते अँधेरे  .......

न जाने आज

मन इतना उदास क्यों है

लगता है

स्मृतियों की सीलन से

मन की दीवारें

भुरभुरा सी गई हैं

यादों के पारदर्शी प्रतिबिम्ब

जैसे गिरती दीवारों पर

मन की बेबसी पर

अट्टहास लगा लगा रहे हों

कितनी ढीठ है

ये बरसाती हवा

जानती है मेरी आकुलता को

फिर भी मुझे छू कर

मुझसे मेरा हाल पूछती है

अब अच्छी नहीं लगतीं मुझे

आहटें

मन के वातायन पर गूँजती…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 13, 2021 at 8:00pm — 8 Comments

मन का साहिल. . . .

मन का साहिल ......

जाने कब मेरे अन्तस में

भावनाओं का सागर उफान मारने लगा

भावों की वीचियों पर

चाहत की कश्ती

अठखेलियां करने लगी

दिल के किसी कोने में

एक चाहत उभरी

कि मैं हौले से छू लूँ

फिर वही

अधर दलों पर ठहरी

उल्फ़त की गंध

चुपके से

डूब जाऊँ

किसी मदहोश भंवरे की तरह

पुष्प आगोश में

पराग का रसपान करते हुए

आकंठ तक

और मिल जाए

मेरी चाहत की कश्ती को

मेरे मन का…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 10, 2021 at 2:57pm — 10 Comments

आशा ......



आशा .......

बहुत कोशिश की

मगर हार गई मैं

उस अनुपस्थिति से

जो हर लम्हा मेरे जहन में जीती है

एक खौफ के लिबास में

मुझे ठेंगा दिखाते हुए

भोर से लेकर साँझ तक

दिनभर की व्यस्ततम गतिविधियों के बीच

हमेशा झकझोरती है

किसी ग़ैर की मौजूदगी

मेरे अंतःस्थल को

उस की अनुपस्थिति के लिए

निराशा की स्वर वीचियों के बीच कहाँ लुप्त होते हैं

आशा को प्रज्वलित करते अनुपस्थिति के स्वर

थकान की पराकाष्ठा पर

जब बदन निढाल होकर…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 30, 2021 at 4:15pm — 3 Comments

पाकीज़गी .......

पाकीज़गी ......

मैं

जिस्म से रूह तक

तुम्हारी हूँ

मेरी नींदें तुम्हारी हैं

मेरे ख़्वाब तुम्हारे हैं

मेरी आस भी तुम हो

मेरी प्यास भी तुम हो

मेरी साँसों का विश्वास भी तुम हो

मेरे प्राणों का मधुमास भी तुम हो

मगर ख़याल रहे

मेरे जिस्म को

दिखावटी पर्दों से नफ़रत है

मेरे पास आना तो

ज़माने के बेबस लिबास को

ज़माने में ही छोड़ आना

क्योंकि

मेरे जिस्म को

पाकीज़गी पसंद है

सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 28, 2021 at 12:57pm — No Comments

काँटा

मैं काँटा हूँ
जाने कितने काँटे चुभा दिये लोगों ने
मेरे बदन में अपने शूल शब्दों के
जमाने ने देखी तो सिर्फ
मुझसे मिलने वाली वेदना को देखा
मेरी तीक्ष्ण नोक को देखा…
Continue

Added by Sushil Sarna on April 19, 2021 at 8:30pm — 4 Comments

कहानी.........

कहानी ..........

पढ़ सको तो पढ़कर देखो

जिन्दगी की हर परत

कोई न कोई कहानी है

कल्पना की बैसाखियों पर

यथार्थ की हवेलियों में

शब्दों की खोलियों में

दिल के गलियारों में

टहलती हुई

कोई न कोई कहानी है

पत्थरों के बिछौनों पर

लाल बत्ती के चौराहों पर

बसों पर लटकी हुई

रोटी के लिए भटकी हुई

आँखों के बिस्तर पर बे-आवाज

कोई न कोई कहानी है

सच

पढ़ सको…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 16, 2021 at 5:09pm — 2 Comments

मन पर दोहे ...........

मन पर दोहे ...........

मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । 1।
हर मन को मिलता नहीं, मन वांछित परिणाम ।
मन फल की चिन्ता करे, मन अशांति का धाम ।2।…
Continue

Added by Sushil Sarna on April 13, 2021 at 1:30pm — 6 Comments

गरीबी ........

गरीबी..........
कैसी होती है गरीबी
शायद
तिमिर के गहन आवरण को
भेदने में असफल होती
जुगनू की
क्षीण सी रोशनी…
Continue

Added by Sushil Sarna on April 11, 2021 at 12:00pm — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
14 hours ago
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
14 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
14 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. रवि जी,ग़ज़ल तक आने और उत्साह वर्धन का धन्यवाद ..ऐ पर आपसे सहमत हूँ ..कुछ सोचता हूँ…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service