शृंगारिक दोहे :
नैनों से बरखा बहे, जब से छूटा हाथ।
नींदें दुश्मन हो गईं, कब आओगे नाथ।1।
एक श्वास तुम साथ हो, एक श्वास तुम दूर।
कैसी है ये दिल्लगी, कुछ तो कहो हुज़ूर।2।
कातिल हसीन शोखियाँ, हैं आपकी हुजूर।
नज़र न कर बैठे कहीं , बहका हुआ कुसूर।3।
सावन की बौछार में, भीगा हुआ शबाब।
बहके रिंदों की कहीं, नीयत हो न ख़राब ।4।
तुम तो साजन रात के, तुम क्या जानो पीर।
भोर हुई तुम चल दिए, नैन बहाएँ…
Added by Sushil Sarna on May 20, 2019 at 4:00pm — 8 Comments
मित्र पर चंद दोहे :
अपने मन को जानिए, अपना सच्चा मित्र।
दिखलाता हर कर्म का, श्वेत श्याम हर चित्र।।
किसको अपना हम कहें, किसको जानें ग़ैर।
मृदु शब्दों की आड़ में, मित्र निकालें बैर।।
सुख में हर जन साथ है, दुख में दीनानाथ।
दुःख में जब सब छोड़ दें, नाथ थामते हाथ।।
जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।
कदम कदम विश्वास का ,हो जाता अवसान।।
मन को रोगी कर दिया, मित्र दे गया घात।
थामो मेरा हाथ…
Added by Sushil Sarna on May 9, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
साँसों की बैसाखी :
जोड़ता है
अनजाने रिश्ते
तोड़ता है
पहचाने रिश्ते
जाने और अनजाने में
जान से कीमती
मोबाइल
साँसों का पर्याय है
जीवन का अध्याय है
किसी की जीत है
किसी की मात है
न उदय का भान है
न अस्त का ज्ञान है
हाथों में जहान है
स्वयं से अनजान है
इंसान को चलाता
एक और इंसान है
मोबाइल
चुपके से हंसाता है
चुपके से रुलाता है
सन्देश आता है
सन्देश जाता है…
Added by Sushil Sarna on May 9, 2019 at 12:55pm — 1 Comment
१. फुल स्टॉप .... ३ क्षणिकाएं
फुल स्टॉप
अर्थात
अंतिम बिंदु
अर्थात
जीवन रेखा का
जीवन बिंदु में विलय
अर्थात
समाहित हो गई
सूक्षम में
श्वास की लय
.......................
२. नो मोर ...
नो मोर
वन्स मोर
अंतिम छोर
उड़ गया पंछी
हर बंधन
पिंजरे के तोड़
.......................
३. रेखाएँ ....
रेखाएँ
हथेलियों की
मृत देह पर
जीवित देह सी रहीं
बस…
Added by Sushil Sarna on May 7, 2019 at 7:41pm — 8 Comments
नैन पर चंद दोहे :
नैन नैन में हो गई, अंतर्मन की बात।
नैन गाँव को मिल गयी, सपनों की सौग़ात।।
रीत निभा कर प्रीत ने, दिल पर खाई चोट।
आँस न स्रावित हो सकी, थी पलकों की ओट।।( आँस=वेदना )
नैन झुके तो शर्म है, नैन उठें बेशर्म।
नैन जानते नैन के, कैसे होते कर्म।।
नैन बड़े बेशर्म हैं ,नैनों का क्या धर्म।
प्रीत सयानी जानती, प्रीत नैन का मर्म।।
नैन नैन को भेजते,अंतस के सन्देश
बिना दरस के नैन को, लगता ज्योँ…
Added by Sushil Sarna on May 3, 2019 at 1:20pm — 6 Comments
हस्ताक्षर....एक क्षणिका....
स्वरित हो गए
नयन
अंतर्वेदना की वीचियों से
वाचाल हुए
कपोल पर
मूक प्रेम के
खारे
हस्ताक्षर
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशसित
Added by Sushil Sarna on May 1, 2019 at 8:11pm — 4 Comments
ये दिल.....
फिर
धोखा दे गया
धड़क कर
ये दिल
वादा किया था
ख़ुद से
टुकड़े
ख़्वाबों के
न बीनूँगा मैं
सबा ने दी दस्तक
लम्स
यादों के
जिस्म से
सरगोशियाँ करने लगे
भूल गया
खुद से किया वादा
बेख़ुदी में
खा गया धोखा
किसी की करीबी का
भूल गया हर कसम दिल
डूब गया
सफ़ीना यादों का
बेवफ़ा
हो गया साहिल
लाख
पलकें बंद कीं
बुझा दिए चराग़
तारीकियों में…
Added by Sushil Sarna on May 1, 2019 at 3:53pm — 8 Comments
दो क्षणिकाएं : ....
नैन पाश में
सिमट गयी
वो
बनकर एक
एक भटकी सी
खुशबू
और समा गई
मेरी
अदेह देह में
..........................
जल पर पड़ी
जल
सूखने लगा
पेड़ों पर पड़ी
पेड़ सूखने लगा
जीवों पर पड़ी
तो कंठ सूखने लगा
तृप्ती की आस में
अंततः
साँझ की गोद में
तृषित ही
सो गई
धूप
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 28, 2019 at 1:58pm — 4 Comments
साहिलों पर .... (लघु रचना )
गुफ़्तगू
बेआवाज़ हुई
अफ़लाक से बरसात हुई
तारीकियों में शोर हुआ
सन्नाटे ने दम तोड़ा
तड़प गयी इक मौज़
बह्र-ए-सुकूत में
और
डूब गए सफ़ीने
अहसासों के
लबों के
साहिलों पर
(अफ़लाक=आसमानों )
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 27, 2019 at 5:41pm — 4 Comments
तेरे मेरे दोहे ....
द्रवित हुए दृग द्वार से , अंतस के उदगार।
मौन रैन में हो गए, घायल सब स्वीकार।।
रेशे जीवन डोर के, होते बड़े महीन।
बिन श्वासों के देह ये, लगती कितनी दीन।।
दृशा दूषिका से भरी, दूषित हुए विचार।
वर्तमान में हो गए, खंडित सब संस्कार।।
लोकतंत्र में है मिला, हर जन को अधिकार।
अपने वोटों से चुने, वो अपनी सरकार।।
हर भाषण में हो रही, प्रजातंत्र की बात।
प्रजा झेलती तंत्र के ,नित्य नए…
Added by Sushil Sarna on April 26, 2019 at 4:28pm — 8 Comments
जाल .... ( 4 5 0 वीं कृति)
बहती रहती है
एक नदी सी
मेरे हाथों की
अनगिनित अबोली रेखाओं में
मैं डाले रहता हूँ एक जाल
न जाने क्या पकड़ने के लिए
हाथ आती हैं तो बस
कुछ यातनाएँ ,दुःख और
काँच की किर्चियों सी
चुभती सच्चाईयाँ
डसते हैं जिनके स्पर्श
मेरे अंतस में बहती
जीत और हार की धाराओं को
काले अँधेरों में भी मुझे
अव्यक्त अभियक्तियों के रँग
वेदना के सुरों पर
नृत्य करते नज़र आते हैं
नदी
हाथों की…
Added by Sushil Sarna on April 24, 2019 at 1:24pm — 5 Comments
प्रतीक्षा लौ ...
जवाब उलझे रहे
सवालों में
अजीब -अजीब
ख्यालों में
प्रतीक्षा की देहरी पर
साँझ उतरने लगी
बेचैनियाँ और बढ़ने लगीं
ह्रदय व्योम में
स्मृति मेघ धड़कने लगे
नैन तटों से
प्रतीक्षा पल
अनायास बरसने लगे
सवाल
अपने गर्भ में
जवाबों को समेटे
रात की सलवटों पर
करवटें बदलते रहे
अभिव्यक्ति
कसमसाती रही
कौमुदी
खिलखिलाती रही
संग रैन के
मन शलभ के प्रश्न
बढ़ते रहे
जवाब…
Added by Sushil Sarna on April 22, 2019 at 6:25pm — 8 Comments
अधूरी सी ज़िंदगी ....
कुछ
अधूरी सी रही
ज़िंदगी
कुछ प्यासी सी रही
ज़िंदगी
चलते रहे
सीने से लगाए
एक उदास भरी
ज़िंदगी
जीते रहे
मगर अनमने से
जाने कैसे
गुफ़्तगू करते
कट गयी
अधूरी सी ज़िंदगी
ढूंढते रहे
कभी अन्तस् में
कभी जिस्म पर रेंगते
स्पर्शों में
कभी उजालों में
कभी अंधेरों में
निकल गई छपाक से
जाने कहाँ
हमसे हमारी
अधूरी सी ज़िंदगी
बरसती रही…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 20, 2019 at 7:26pm — 6 Comments
वेदना ...
अंतस से प्रस्फुरित हो
अधर तीर पर
ठहर गए कुछ शब्द
मौन के आवरण को
भेदने के लिए
अंतस के उजास पर
तिमिर का अट्हास
मानो वेदना का चरम हो
स्पर्शों की आँधी
निर्ग्रंथ देह पर
बिखरी अनुभूतियों के
प्रतिबिम्ब अलंकृत कर गई
रश्मियाँ अचंभित थी
निर्ग्रंथ देह पर
अनुभूतियों के
विप्रलंभ शृंगार को देखकर
क्या यही है प्रेम चरम की परिणीति
तृषा और तृप्ति के संघर्ष का अंत
नैनों तटों पर तैरती
अव्यक्त…
Added by Sushil Sarna on April 17, 2019 at 8:06pm — 6 Comments
क्षणिकाएँ :
१.
झाँक सका है कौन
जीवन सत्य के गर्भ में
निर्बाध गति
मौन यति
शाँत या अशांत
बढ़ता है सदा
अदृश्य और अज्ञात लक्ष्य की ओर
हो जाता है सम्पूर्ण
एक अपूर्णता के साथ
एक जीवन
२.
लिख गया कोई
खारी बूँदों से
रक्तिम गालों पर
विरह के
स्मृति ग्रन्थ
रह गई दृष्टि
निहारती
सूने चिन्हों से अलंकृत
अवसन्न से
प्रेम पंथ
३.
हो गई समर्पित
जिसे अपना मान
कर गया वही…
Added by Sushil Sarna on April 15, 2019 at 7:59pm — 8 Comments
उम्र ...
गर्भ से चलती है
धरती पर पलती है
आँखों को मलती है
संग साँसों के चलती है
उम्र
जिस्म की दासी है
युग युग से प्यासी है
ख़ुशी और उदासी है
छलती ही जाती है
उम्र
मस्तानी जवानी है
अधूरी सी कहानी है
लहरों की रवानी है
रेत सी फिसल जाती है
उम्र
काल की दुपहरी है
चिताओं पर ठहरी है
ज़माने से बहरी है
धधक जाती है चुपके से
उम्र
कल तक जो चलती थी
आशाओं…
Added by Sushil Sarna on April 12, 2019 at 5:16pm — 4 Comments
कुछ क्षणिकाएं :
उल्फ़त की निशानी
आँख में
थिरकता
बूँद भर पानी
...........................
समाज
अंधेरों के घेरों में
सभ्यता
न साँझ में
न सवेरों में
..........................
माँ की लाश
बिलखता विश्वास
टूटा आकाश
बेटी के पास
.............................
जीवन रंग
हुए बदरंग
रिश्तों के संग
...............................
दृष्टि में विकार
बढ़ता व्यभिचार
नारी…
Added by Sushil Sarna on April 11, 2019 at 7:51pm — 2 Comments
पांच दोहे :
माँ की पूजा जो करे, तज कर सारे काम।
उसके जीवन में सदा ,पूरन होते काम।।
जयकारों से गूँजता, है माँ का दरबार।
दरस मात्र से जीव का, होता बेड़ा पार।।
माँ के पावन नाम की, महिमा अपरम्पार।
बाल न बाँका भक्त का, कर पाता संसार।।
माँ की पूजा-अर्चना, करता जो निष्काम।
मिल जाता उस भक्त को , माँ का पावन धाम।।
चलकर नंगे पाँव जो, आता तेरे धाम।
पूरन होते जीव के, मुश्किल सारे काम।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 10, 2019 at 5:44pm — 8 Comments
पागल मन की मर्ज़ियाँ, नैनों के उत्पात।
स्पर्श करें गुस्ताखियाँ, सपना लगती रात।१ ।
ये आँखों की सुर्खियाँ, बिखरे-बिखरे बाल।
अधरों की शैतानियाँ ,करें उजागर गाल।२ ।
यौवन रुत में जब करें , नैन हृदय पर वार।
घूंघट पट में लाज के, शरमाता शृंगार।३ ।
नैन करें जब नैन से, अंतर्मन की बात।
दो पल में सदियाँ मिटें ,रात लगे सौग़ात।४ ।
बंजारे सा मन हुआ, बंजारी सी…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 5, 2019 at 3:42pm — 6 Comments
दोहे ... एक भाव कई रूप ...
नर से नारी माँगती ..
नर से नारी माँगती, बस थोड़ा सा प्यार।
थोड़े से उस प्यार पर, तन-मन देती वार।।
नर से नारी माँगती , सपनों का शृंगार।
नारी तन का नर अधम ,करता फिर व्यापार।।
नर से नारी माँगती , जीवन भर का साथ।
ले हाथों में हाथ वो, माने उसको नाथ।।
नर से नारी माँगती,बाहों का संसार।
बन जाता फिर प्रेम वो, माथे का शृंगार ।।
नर से नारी माँगती ,माधव जैसा प्यार।
बन…
Added by Sushil Sarna on March 25, 2019 at 6:00pm — 13 Comments
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