वृक्षों को मत काटिए, वृक्ष धरा शृंगार.
हरियाली वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार..
नदियाँ सब बेहाल हैं, इन पर दे दें ध्यान.
कचरा निस्तारित करें, बन जाएँ इंसान..…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on July 26, 2012 at 12:00am — 35 Comments
मदन-छंद या रूपमाला
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है मदन यह छंद इसका, रूपमाला नाम.
पंक्ति प्रति चौबीस मात्रा, गेयता अभिराम.
यति चतुर्दश पंक्ति में हो, शेष दस ही शेष,
अंत गुरु-लघु या पताका, रस रहे अवशेष..
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चाँदनी का चित्त चंचल, चन्द्रमा चितचोर.
मुग्ध नयनों से निहारे, मन मुदित मनमोर.
ताकता संसार सारा, देख मन में खोट.
पास सावन की घटायें, चल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on July 23, 2012 at 1:30pm — 18 Comments
(एक अभिनव प्रयोग)
खुसरो की बेटी कहलाये
भारतेंदु संग रास रचाये
कविजन सारे जिसके प्रहरी
क्या वह कविता? नहिं कह-मुकरी!
बांच जिसे जियरा हरषाये
सोलह मात्रा छंद सुहाये
पुलकित नयना बरसे बदरी
क्या चौपाई ? नहिं कह-मुकरी!
चैन चुराये दिल को भाये
चिर-आनंदित जो…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 1:00am — 23 Comments
रास्तों में मुश्किलें हैं आज इनसे होड़ ले.
जिन्दगी भी रेस है तू दम लगा के दौड़ ले.
मंजिलें अलग-अलग हैं रास्ते जुदा-जुदा,
गर तू पीछे रह गया तो साथ देगा क्या खुदा,
हिम्मतों से काम लेके रुख हवा का मोड़ ले.
जिन्दगी भी रेस है तू दम लगा…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on July 13, 2012 at 1:00am — 32 Comments
'ग़ज़ल'
दुआओं से किसी की फल रहा हूँ
निगाहों में तुम्हारी खल रहा हूँ
किसी को भी नहीं मैं छल रहा हूँ
न तो रहमोकरम पर पल रहा…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on April 27, 2012 at 1:00pm — 15 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on April 6, 2012 at 1:13pm — 14 Comments
आरोग्य दोहावली
१
दही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय.
होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय..
२
बहती यदि जो नाक हो, बहुत बुरा हो हाल.…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on February 18, 2012 at 2:30pm — 11 Comments
बीता साल चला गया, देकर नन्हा चित्र.
अंग्रेजी नव वर्ष की, तुम्हें बधाई मित्र.
तुम्हें बधाई मित्र, इसे अपनापन देना.
देकर स्नेह दुलार, इसे नवजीवन देना.
अम्बरीष…
Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2012 at 1:25am — 14 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 25, 2011 at 12:30pm — 7 Comments
मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की. |१|
जो किसी को भी न भातीं छोड़ दो वो आदतें,
दोस्तों अब फिक्र हो इस देश के सम्मान की. |२|
माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,
हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की. |३|
जान देकर जो गये अपनी शहीदाने…
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 12:30am — 8 Comments
अदब के साथ जो कहता कहन है
वो अपने आप में एक अंजुमन है
हमें धोखे दिये जिसने हमेशा
उसी के प्यार में पागल ये मन है
हुई है दिल्लगी बेशक हमीं से
कभी रोशन था उजड़ा जो चमन है
अँधेरे के लिए शमआ जलाये
जिया की बज्म में गंगोजमन है
नज़र दुश्मन की ठहरेगी कहाँ अब
बँधा सर पे हमेशा जो कफ़न है
खिले हैं फूल मिट्टी है महकती
यहाँ पर यार जो मेरा दफ़न है
कहाँ परहेज मीठे से हमें…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 12:30am — 19 Comments
हरिगीतिका
(1)
मधु छंद सुनकर छंद गुनकर, ही हमें कुछ बोध है,
सब वर्ण-मात्रा गेयता हित, ही बने यह शोध है,
अब छंद कहना है कठिन क्यों, मित्र क्या अवरोध है,
रसधार छंदों की बहा दें, यह मेरा अनुरोध है ||
(2)
यह आधुनिक परिवेश इसमें, हम सभी पर भार है,
यह भार भी भारी नहीं जब, संस्कृति आधार है,
सुरभित सुमन सब है खिले अब, आपसे मनुहार है,
निज नेह के दीपक जलायें, ज्योंति का…
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 1, 2011 at 2:31am — 15 Comments
(1)
बड़े प्यार से जो दुलरावै|
हमको अपने गले लगावै|
प्रीति-रीति में हम हों बंदी|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!
_________________________
(2)
अलंकार से सज्जित सोहै|
रस की वृष्टि सदा मन मोहै |
मिल जाता है परमानन्द |
क्यों सखि साजन? नहिं सखि छंद |
__________________________
(3)
परम संतुलित जिसका भार|
गुरु लघु रूप बना आधार!
जन-जन को है जिसने मोहा|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि…
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 24, 2011 at 11:00pm — 23 Comments
आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.
जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.
आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,
नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.
घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,
आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.
आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी,
कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 4, 2011 at 11:53pm — 27 Comments
दूर मंजिल कब मिलेगी रास्ता कोई नहीं,
वो मुसाफिर हूँ कि जिसका रहनुमा कोई नहीं.
आशिकी में जो बने हैं आज मजनू देखिये,
है अजब ये चीज उल्फत खुशनुमा कोई नहीं.
दोस्ती से दिल मिला लो सामने है आइना,
दुश्मनी को दूर रक्खो है मज़ा कोई नहीं .
वो जो आये हैं यहाँ पर खिल गया…
Added by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2011 at 10:30pm — 8 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on July 7, 2011 at 2:00am — 8 Comments
जलियावाला बाग में, बारूदी था जोर.
सारे जन मारे गए बचा न कोई और..
कातिल डायर ने कहा फायर फायर मार.
तड़ तड़ बरसें गोलियाँ भीषण करें प्रहार ..
मौत मिली थी…
Added by Er. Ambarish Srivastava on April 15, 2011 at 12:00am — 13 Comments
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