लाल गेंद बन उछल गया है ,
बाल सुलभ ज्यों किलक रहा है
कुछ पल ही में रूप बदलकर
अब यौवन में सिमट गया है
स्वर्ण सी आभा फ़ैल रही है
मिटटी स्वर्ण में परिणित होगी
रेनू जाल के सिरे पकड़ कर
दुर्बल काया भी चल देगी
संध्या की चादर हलकी है
मछुवारे के जाल के जैसी
खींच रही पल पल वो उसको
छिपना होगा निशा से पहले…
Added by SUMAN MISHRA on December 9, 2012 at 2:03pm — 2 Comments
प्रतिबिम्बों में जी लूं पहले ....
By Suman Mishra on Tuesday, 27 November 2012 at 13:25 ·
एक सत्य जो सबको दिखता,
एक सत्य प्रतिबिंबित सा है
वेगवान है जीवन पल पल
रुक थोड़ा तू दिग्भ्रमित क्यों है
जी लूं कुछ पल खुद को खुद में
कह लूं सुन लूं खुद से खुद मैं
एक बार मैं हंस लूं खुद पे
फिर पट…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 8, 2012 at 1:30pm — 5 Comments
एक सतह इस धरती पर, धूल , फूल और वृक्ष हैं फैले
एक सतह मन के धरती पर, अंतस तक यादों के झूले
दूर दूर तक आँखों का ताकना, राह वही पर पथिक न मेले
गति और मति दोनों ही संग में , कहाँ किसे अपने संग ले लें ,
कितनी दूर चलोगे संग में वो अदृश्य जो हाथ बढाता
मैं उसकी वो मेरा प्रति पल, गहरा है…
Added by SUMAN MISHRA on December 8, 2012 at 1:30pm — 6 Comments
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