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Shikha kaushik's Blog (34)

पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा

 पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा 

चरण कमल रखे तभी वहीँ पास में बैठा प्रभात का पालतू कुत्ता बुलेट उन पर जोर जोर से भौकने लगा .गुरुदेव के उज्जवल मस्तक पर क्षण भर को कुछ लकीरें उभरी और फिर होंठों पर मुस्कान .गुरुदेव ने स्नेह से बुलेट के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ''शांत हो जाओ मैं समझ गया हूँ .ईश्वर तुम्हे मुक्ति प्रदान करें !'' गुरुदेव के इतना कहते ही बुलेट शांत हो गया और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया .वहां उपस्थित प्रभात सहित उसके परिवारीजन यह देखकर चकित रह गए…

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Added by shikha kaushik on October 25, 2012 at 11:00pm — 8 Comments

चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !

विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !



धर्म पताका फहराने , पापी को सबक सिखाने ,

चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !

हर हर हर हर महादेव !

 …

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Added by shikha kaushik on October 23, 2012 at 9:30pm — 4 Comments

चौदह बरस वनवास काट राम बन कर देख !

चौदह बरस वनवास काट राम बन कर देख !





कैसे सहे जाते हैं होनी के लिखे लेख ?

चौदह बरस वनवास काट राम बन कर देख !



कैसे निभाते कुल की रीत ; प्रिय पिता से प्रीत ,

शांत कैसे करते हैं कैकेयी उर के क्लेश ?

चौदह बरस ....................





होना था जिस घड़ी श्री राम का अभिषेक ,

उसी घड़ी चले धर कर वो तापस वेश !

चौदह बरस ........................





कैसे चले कंटकमय पथ पर संग सिया लखन ?

काँटों की चुभन पर भरते न आह लेश… Continue

Added by shikha kaushik on October 22, 2012 at 3:32pm — 7 Comments

हम स्वछंद हैं कवि .....

हम स्वछंद हैं कवि .....

हमको नहीं छंद अलंकार का है ज्ञान ,

हम स्वछंद हैं कवि बस भाव हैं प्रधान .



आचार्य गिन मात्रा कहते लिखो निर्धन ,

लिखा अगर गरीब तो क्या हो जायेगा श्रीमान !



हालात जो देखे सीधे सीधे लिख दिए ,

पढ़कर ''वे'' बोले व्याकरण का कुछ तो रखते ध्यान .



कहते अलंकार से कविता का कर श्रृंगार ,

हम 'रबड़ के छल्ले ' देते न उनको कान .



है नहीं कविता में अपनी प्रतीक ,बिम्ब,गुण ,

जूनून है बस…

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Added by shikha kaushik on October 4, 2012 at 2:30am — 6 Comments

जब वचन निभाने राम चले ....

जब वचन  निभाने राम चले ....
जब वचन  निभाने राम चले ,
संग सिया चली और लखन चले,
दशरथ के प्राणाधार चले ,
कौशल्या के अरमान चले 
जब वचन ......
 
जिस आँगन में खेले राघव ,
घुटनों के…
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Added by shikha kaushik on September 30, 2012 at 9:49pm — 3 Comments

दर्द में जो बात है वो बात राहत में कहाँ !

संघर्ष में आनंद है जो कामयाबी में कहाँ !

दर्द में जो बात है वो बात राहत में कहाँ !



मुद्दा कोई उलझा रहे चलती रहें बस अटकलें ,

जो मज़ा उलझन में है वो सुलझने में कहाँ !



ज़िंदगी की मुश्किलों से रोज़ टकराते रहें ,

ज़िंदगी के साथ है सब मौत आने पर कहाँ !



बरसो बाद दोस्त मिला दिल को मिली कितनी ख़ुशी !

ये गर्मजोशी ,शिकवे ,गिले रोज़ मिलने में कहाँ !



हमको सुकून की नहीं हमें कशमकश की चाह ,

जो…
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Added by shikha kaushik on September 28, 2012 at 5:00pm — 5 Comments

पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार !

(साभार गूगल से)

.

भूतल में समाई सिया उर कर रहा धिक्कार

पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार !



देवी अहिल्या को लौटाया नारी का सम्मान

अपनी सिया का साथ न दे पाया किन्तु राम

है वज्र सम ह्रदय मेरा करता हूँ मैं स्वीकार !

पितृ सत्ता के समक्ष ........



वध किया अनाचारी का…

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Added by shikha kaushik on September 19, 2012 at 7:30am — 8 Comments

मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी .

 [listen on shikhakaushik06  ]
 

Stamp on Tulsidas

सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ;

आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ?



आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ;

पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ?



लिखते…

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Added by shikha kaushik on September 4, 2012 at 3:00pm — 15 Comments

भारत माँ को नमन

भारत माँ को नमन अपनी जमीन सबसे प्यारी है ; अपना गगन सबसे प्यारा है ;

बहती सुगन्धित मोहक पवन ;

इसके नज़ारे चुराते हैं मन ;

सबसे है प्यारा अपना वतन ;

करते हैं भारत माँ को नमन

वन्देमातरम !वन्देमातरम !

करते हैं भारत माँ ! को नमन .

उत्तर में इसके हिमालय खड़ा ;

दक्षिण में सागर सा पहरी अड़ा ;

पूरब में इसके खाड़ी बड़ी ;

पश्चिम का अर्णव करे चौकसी ;

कैसे सफल हो कोई दुश्मन !

करते हैं भारत माँ को नमन !

वन्देमातरम !वन्देमातरम !

करते…

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Added by shikha kaushik on August 16, 2011 at 7:52pm — No Comments

कुदरत है अनमोल !

कुदरत है अनमोल !



कुदरत है बड़ी अनमोल

देख ले तू ये आँखें खोल ;

चल कोयल के जैसा बोल

कानों में तू रस दे घोल .

कुदरत है ........................





तितली -सा तू बन चंचल ;

सरिता सा तू कर कल-कल ;

बरखा जल सा बन निर्मल ;

घुमड़-घुमड़ कर बन बादल;

भौरा बन तू इत-उत डोल.

कुदरत है .............................

 



सूरज बन तू खूब चमक ;

चंदा सा तू बन मोहक ;

फूलों सा तू महक-महक ;

चिड़ियों जैसा चहक-चहक…

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Added by shikha kaushik on July 13, 2011 at 9:00pm — No Comments

लघु कथा: फूल

सिमरन दो साल के बेटे विभु को लेकर जब से मायके आई थी उसका मन उचाट था, गगन से जरा सी बात पर बहस ने ही उसे यंहा आने के लिए विवश किया था | यूँ गगन और उसकी 'वैवाहिक रेल' पटरी पर ठीक गति से चल रही थी पर सिमरन के नौकरी की जिद करने पर गगन ने इस रेल में इतनी जोर क़ा ब्रेक लगाया क़ि यह पटरी पर से उतर गई और सिमरन विभु को लेकर मायके आ गयी | सिमरन अपने घर से निकली तो देखा विभु उस फूल की  तरह मुरझा गया था जिसे बगिया से तोड़कर बिना…

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Added by shikha kaushik on January 23, 2011 at 9:00am — 2 Comments

जीवन कर्म

हर  सुबह नई आशा  के साथ जागो;

 दिल में विश्वास रखो ऊपर वाले के प्रति;

गिरो अगर तो गिरकर संभालो खुद को;

जिन्दगी में जीत फिर तुम्हारी होगी!

ये मत सोचो क्या खो दिया;…

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Added by shikha kaushik on January 22, 2011 at 9:30am — 2 Comments

कविता -आत्मशक्ति पर विश्वास

जीवन एक ऐसी पहेली है जिसके बारे में बात करना वे लोग ज्यादा पसंद करते हैं जिन्होंने कदम-कदम पर सफलता पाई हो.उनके पास बताने लायक काफी कुछ होता है. सामान्य व्यक्ति को तो असफलता का ही सामना करना पड़ता है.हम जैसे साधारण मनुष्यों की अनेक आकांक्षाय होती हैं. हम चाहते हैं क़ि गगन छू लें; पर हमारा भाग्य इसकी इजाजत नहीं देता.हम चाहकर भी अपने हर सपने को पूरा नहीं कर पाते .यदि मन की हर अभिलाषा पूरी हो जाया करती तो अभिलाषा भी साधारण हो जाती .हम चाहते है क़ि हमें कभी शोक ;दुःख ; भय का सामना न करना पड़े.हमारी… Continue

Added by shikha kaushik on January 19, 2011 at 10:00pm — 6 Comments

क्रांति स्वर मे ललकारें ...

छोड़ विवशता-वचनों को

व्यवस्था धार बदल डालें

समर्पण की भाषा को तज

क्रांति स्वर में ललकारें .

*************************************

छीनकर जो तेरा हिस्सा

बाँट देते है ''अपनों'' में ;

लूटकर सुख तेरा सारा लगाते

''सेंध'' सपनों में ;

तोड़ कर मौन अब अपना

उन्हें जी भरके धिक्कारें

समर्पण की भाषा को तज

क्रांति स्वर में ललकारें .

*************************************

हमीं से मांग कर वोटें

वो सत्तासीन हो जाते;

भूल करके सारे… Continue

Added by shikha kaushik on January 12, 2011 at 11:00am — 1 Comment

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