यूँ तो तक़दीर ने देखे हैं मोड़ कई ...
जिंदगी यूँ ही मुड़ेगी कभी सोचा न था..
कई ज़माने से प्यासा हूँ में यहाँ ..
ओस से प्यास बुझेगी कभी सोचा न था..
यूँ तो फिरते हैं कई लोग यहाँ ..
गुदड़ी में लाल मिलेगा कभी सोचा न था ..
किस्मत ने दी है हर जगह दगा ..
मुकद्दर यूँ ही चमकेगा कभी सोचा न था ..
खून करे हैं सभी के अरमानों के हमने..
खून मेरा भी होगा कभी सोचा न था..…
Added by Amod Kumar Srivastava on June 13, 2013 at 10:35am — 6 Comments
आज बहुत पुरानी डायरी पर ...
उंगलियाँ चलाईं ...
जाने कहाँ से एक आवाज ..
चली आयी ..
आवाज, जानी पहचानी ...
कुछ बरसों पुरानी ..
एक हंसी,
जो दूर से हंसी जा रही थी..…
Added by Amod Kumar Srivastava on June 12, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
दोस्तों को दुश्मन बनाया है किसने ..
शमशान में लाशों को पहुँचाया है किसने..
किसने किसको, किसको है देखा ..
न देखा है हमने न, देखा है तुमने...
हुयी शाम और ये रात है आयी..
किसने ये तारों की महफ़िल सजाई ...
सोचते-सोचते में सो गया हूँ ..
रात की कालिमा में मैं खो गया हूँ..
किसने इस कालिमा को लालिमा बनाया ..
किसने मुझको फिर से जगाया..
किसने किसको, किसको है देखा ..
न देखा है हमने न, देखा है तुमने... …
Added by Amod Kumar Srivastava on June 10, 2013 at 12:00pm — 8 Comments
जिंदगी
दर्द है या गम,
कि है नीरस सावन,
या कागज कोरा..
जाती हुयी शाम को ..
आती हुयी रात को ..
खिलखिलाती वो हंसी को,
पंक्षियों के कोलाहल को...
उसको है…
Added by Amod Kumar Srivastava on May 27, 2013 at 4:30pm — 7 Comments
जाओ तुमको तुम्हारे हाल पे
मेने छोड़ दिया
तुमको इससे ज्यादा में और
दे भी क्या सकता था ...
देखो इस सूखे दरख्त को जिसने
बहुत फल खिलाये थे .. पर…
आज यहाँ परिंदा भी अपना
घोसला नहीं बनाता…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on May 9, 2013 at 12:08pm — 6 Comments
दुखी सभी हैं यहाँ अपने अपने सुख के लिए..
तेरे लिए तो न कोई भी रोने वाला है ..
हजारों लोग इधर से गुज़र गए फिर भी ...
ये सिलसिला न कभी बंद होने वाला है..…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on April 9, 2013 at 11:30am — 2 Comments
Added by Amod Kumar Srivastava on March 29, 2013 at 5:03pm — 6 Comments
याद है
वो अपना दो कमरे का घर
जो दिन में
पहला वाला कमरा
बन जाता था
बैठक !!
बड़े करीने से लगा होता था
तख्ता, लकड़ी वाली कुर्सी
और टूटे हुए स्टूल पर रखा…
Added by Amod Kumar Srivastava on March 22, 2013 at 4:30pm — 4 Comments
कुछ रिश्ते अनाम होते हें
बन जाते हें
यूँ हीं, बेवजह, बिना समझे
बिना देखे, बिना मिले ....
महसूस कर लेते हें एकदूजे को
जैसे हवा महसूस कर ले खुशबु को
मानो मन महसूस कर ले आरजू को
मानो रूह महसूस कर ले बदन…
Added by Amod Kumar Srivastava on March 20, 2013 at 2:00pm — 7 Comments
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