2122 - 2122 - 2122 - 212
ज़िन्दगी भर हादसे दर हादसे होते रहे
और हम हालात पर हँसते रहे रोते रहे
आए हैं बेदार करने देखिये हमको वही
उम्र भर जो ग़फ़लतों की नींद में सोते रहे
कर दिए आबाद गुलशन हमने जिनके वास्ते
वो हमारे रास्तों में ख़ार ही बोते रहे
बोझ बन जाते हैं रिश्ते बिन भरोसे प्यार के
जाने क्यूँ हम नफ़रतों की गठरियाँ ढोते …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 11, 2020 at 9:57pm — 5 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 21- 21
हादिसात ऐसे हुए हैं ज़िन्दगी में बार-बार
हर ख़ुशी हर मोड़ पर रोई तड़प कर ज़ार-ज़ार
दर्द ने अंँगडाईयाँ लेकर ज़बान-ए-तन्ज़ में यूँ
पूछा मेरी बेबसी से कौन तेरा ग़म-गुसार
अपनी-अपनी क़िस्मतें हैं अपना-अपना इंतिख़ाब
दिलपे कब होता किसी के है किसी को इख़्तियार
रफ़्ता-रफ़्ता जानिब-ए-दिल संग भी आने लगे अब
जिस जगह पर हम किया करते हैं तेरा…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 8, 2020 at 11:51am — 4 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
न यूँ दर-दर भटकते हम जो अपना आशियाँ होता
ख़ुदा ने काश हमको भी किया अह्ल-ए-मकाँ होता
बिछा के राहों में काँटे पता देते हैं मंज़िल का
कोई तो रहनुमा होता कोई तो मेह्रबाँ होता
ख़ुदा या फेर लेता रुख़ जो तू भी ग़म के मारों से
तो मुझ-से बेक़रारों का ठिकाना फिर कहाँ होता
बने तुम हमसफ़र मेरे ख़ुदा का शुक्र है वर्ना
न जाने तुम कहाँ होते न जाने मैं कहाँ …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 7, 2020 at 8:36am — 3 Comments
फ़ाइलुन -फ़ाइलुन - फ़ाइलुन -फ़ाइलुन
2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2
वो नज़र जो क़यामत की उठने लगी
रोज़ मुझपे क़हर बनके गिरने लगी
रोज़ उठने लगी लगी देखो काली घटा
तर-बतर ये ज़मीं रोज़ रहने लगी
जबसे तकिया उन्होंने किया हाथ पर
हमको ख़ुद से महब्बत सी रहने लगी
एक ख़ुशबू जिगर में गई है उतर
साँस लेता हूँ जब भी महकने…
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 27, 2020 at 10:31am — 40 Comments
212-122-1212
मैं जो कारवाँ से बिछड़ गया
यूँ तुम्हारे दर पे ही पड़ गया
दिल गया ख़ुशी की तलाश में
साथ उनके हम से बिछड़ गया
ये गरेबाँ गुल-रू की चाह में
क्या कहूँ के फिर से उधड़ गया
वो दुआ थी तेरी या बद् दुआ
ये नसीब अपना बिगड़ गया
कोई ज़िन्दगी तो सँवर गई
ग़म नहीं मुझे मैं उजड़ गया
वो तुम्हारी आँखों में चुभ रहा
लो हमारा ख़ेमा उखड़ गया
मैं झुका…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 20, 2020 at 6:30pm — 10 Comments
2122 / 2122 / 2122 / 212
हो रही है दिल पे खट-खट मौत की दस्तक है क्या
जा रहे वापस या उसके क़दमों की ठक-ठक है क्या
फिर उठा है हर तरफ़ ये इक धुआँ सा आज क्यों
आग जिससे घर जला था बढ़ गई दिल तक है क्या
भूल बैठा है मुझे तू सुन के या अन्जान है
मेरी आहों की रसाई आज भी तुझ तक है क्या
गुम हुआ हूँ जबसे मैं उसके ख़याल-ओ-ख़्वाब में
बोलता हूँ जब भी कुछ ये सुनता हूंँ बक-बक है…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 20, 2020 at 6:06pm — 15 Comments
आप यूँ ही अगर हमसे रूठे रहे
एक आशिक़ जहाँ से गुज़र जाएगा
ऐसी बातें करोगे अगर आप तो
ग़म का मारा ये दिल कुछ भी कर जाएगा
आप यूँ ही अगर...
कैसी नाराज़गी है ओ जान-ए-वफ़ा
मुझसे क्या हो गई भूल कुछ तो बता
हाय कुछ तो बता
आप ख़ुद ही समझ लेंगे इक रोज़ ये
जब ख़ुमार आपका ये उतर जाएगा
आप यूँ ही अगर...
तेरे वादों पे हम कर यक़ीं लुट गए
तेरी भोली सी सूरत पे क्यूँ मिट गए
हाय क्यूँ मिट गए
मर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 22, 2020 at 6:30pm — 5 Comments
2212 /1212 /2212 /12
क्या आरज़ू थी दिल तेरी और क्या नसीब है
चाहा था टूट कर जिसे वो अब रक़ीब है।
पलकों की छाँव थी जहाँ है ग़म की धूप अब
वो भी मेरा नसीब था ये भी नसीब है।
ऐसे बदल गये मेरे हालात क्या कहूँ
अब चारा-गर कोई न ही कोई तबीब है।
कैसे मिले ख़ुशी हों भला दूर कैसे ग़म
मुश्किल कुशा के साथ वो मेरा रक़ीब है।
उसने बड़े ही प्यार से बर्बाद कर …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 6, 2020 at 2:16pm — 11 Comments
212 /1212 /2
जो नज़र से पी रहे हैं
बस वही तो जी रहे हैं
ये हमारा रब्त देखो
बिन मिलाए पी रहे हैं
कोई रिन्द भी नहीं हम
बस ख़ुशी में पी रहे हैं
इक हमें नहीं मयस्सर
गो सभी तो पी रहे हैं
क्या पिलाएंगे हमें जो
तिश्नगी में जी रहे हैं
वो हमें भी तो पिला दें
जो बड़े सख़ी रहे हैं
बेख़ुदी की ज़िन्दगी है
बेख़ुदी में पी रहे हैं …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 14, 2020 at 9:00pm — 17 Comments
उफ़ ! क्या किया ये तुम ने, वफ़ा को भुला दिया,
उस शख़्स ए बावफ़ा को, कहो क्या सिला दिया।
जो ले के जाँ, हथेली पे, हरदम रहा खड़ा,
तुम ने उसी को, ज़ह्र का, प्याला पिला दिया।
अब क्या भला, किसी पे कोई, जाँ निसार दे,
जब अपने ख़ूँ ने, ख़ून का, रिश्ता भुला दिया।
गुलशन की जिस ने तेरे, सदा देखभाल की,
उस बाग़बां का तू ने, नशेमन जला दिया।
गर वो मिलेंगे हम से, कभी पूछ लेंगे हम,
क्यूँ ख़ाक़ में हमारा,…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 26, 2020 at 12:08pm — 16 Comments
ईद कैसी आई है ! ये ईद कैसी आई है !
ख़ुश बशर कोई नहीं, ये ईद कैसी आई है !
जब नमाज़े - ईद ही, न हो, भला फिर ईद क्या,
मिट गये अरमांँ सभी, ये ईद कैसी आई है!
दे रहा कोरोना कितने, ज़ख़्म हर इन्सान को,
सब घरों में क़ैैद हैं, ये ईद कैसी आई है!
गर ख़ुदा नाराज़ हम से है, तो फिर क्या ईद है,
ख़ौफ़ में हर ज़िन्दगी, ये ईद कैसी आई है!
रंज ओ ग़म तारी है सब पे, सब परीशाँ हाल हैं,
फ़िक्र में रोज़ी की सब, ये ईद कैसी आई…
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 25, 2020 at 6:00am — 9 Comments
2212/ 1211/ 2212/ 12
चेहरा छुपा लिया है सभी ने नका़ब में,
परदा नशीं बने हैं सभी इस अ़ज़ाब में।
आक़ा हो या अ़वाम सभी फ़िक्रमन्द हैं,
अब घिर चुकी है पूरी जमाअ़त इताब में।
फ़ाक़ाकशी न कर दे कहीं ज़िन्दगी फ़ना,
सब लोग मुब्तिला हैं इसी इज़्तिराब में।
करता रहा ग़रूर सदा जिस ग़िना पे तू ,
क़ुदरत न कुछ है आज तेरे इस निसाब में।
क्या ये अ़ज़ाब है या कोई इम्तिहान है ?,
ये …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 20, 2020 at 5:30pm — 5 Comments
रौशनी दिल में नहीं हो तो ख़तर बनता है,
आग सीने में लगी हो तो शरर बनता है।
जिसको ढाला न गया हो किसी भी साँचे में,
इब्ने आदम यूं ही हरगिज़ न बशर बनता है।
टूट जाते हैं कई रिश्ते ग़लत फ़हमी से,
रंजिशें ख़ुद ही भुला दे जो, बशर बनता है।
बात जो निकली ज़बां से न वो फिर रुकती है,
राज़ हो जाए अ़यां गर, तो ज़ह'र बनता है।
अदबियत जिसको विरासत में ही मिल जाती हो,
तब कहीं जा के 'अ़ली' कोई 'जिगर'…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 6, 2020 at 6:26pm — 5 Comments
डरते हैं जो मुश्किल से घबराते हैं ख़तरों से ,
लरज़ीदः क़दम फिर वो मन्ज़िल को नहीं पाते ,,
गर अ़ज़्म जो पुख़्ता हो लें काम भी हिम्मत से,
तो लोग सितारों से आगे हैं निकल जाते ।
'मौलिक व अप्रकाशित'
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 29, 2020 at 12:19pm — 2 Comments
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