मकर संक्रान्ति का पर्व हिन्दुओं के अन्यान्य बहुसंख्य पर्वों की तरह चंद्र-कला पर निर्भर न हो कर सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है. इस विशेष दिवस को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं.
पृथ्वी की धुरी विशेष कोण पर नत है जिस पर यह घुर्णन करती है. इस गति तथा पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर वलयाकार कक्ष में की जा रही परिक्रमा की गति के कारण सूर्य का मकर राशि में प्रवेश-काल बदलता रहता है. इसे ठीक रखने के प्रयोजन से प्रत्येक…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on January 14, 2013 at 4:00am — 45 Comments
तार-तार विश्वास, मगर जीवन चलता है.. .…
Added by Saurabh Pandey on December 31, 2012 at 7:30pm — 28 Comments
बालक-वृंद सुनैं, यह भारत-भूमि सदा सुख-साध भरी है
पावन चार नदी तट हैं, इतिहास कहे छलकी ’गगरी’ है
नासिक औ हरिद्वार-उजैन क घाट प बूँद ’अमी’ बिखरी है
धाम प्रयाग विशेष सदा जहँ धर्म-सुकर्म ध्वजा फहरी है
पुण्यधरा तपभूमि महान जो बारह साल प कुंभ सजावैं
तीनहुँ…
Added by Saurabh Pandey on December 26, 2012 at 12:30am — 48 Comments
छू दो तुम.. . / फिर
सुनो अनश्वर !
थिर निश्चल
निरुपाय शिथिल सी
बिना कर्मचारी की मिल सी
गति-आवृति से
अभिसिंचित कर
कोलाहल भर
हलचल हल्की.. .
अँकुरा दो
प्रति विन्दु देह का
लिये तरंगें
अधर पटल पर.. . !
विन्दु-विन्दु जड़, विन्दु-विन्दु हिम
रिसूँ अबाधित
आशा अप्रतिम.. .
झल्लाये-से चौराहे पर
किन्तु चाहना की गति …
Added by Saurabh Pandey on December 17, 2012 at 6:00pm — 29 Comments
शब्द-पुष्पों का एक गुच्छा सादर प्रस्तुत है --
हर दिल के दरबार में, बादशाह बेताज
सहज-धीर-उद्भाव-नत, ओबीओ सरताज
ओबीओ सरताज, पूर्ण जो जीवन जीता
’जो कुछ है, वह सार’, सोच का सुगढ़ प्रणेता …
Added by Saurabh Pandey on November 18, 2012 at 11:30am — 25 Comments
शिथिल मनस पे वार कर, जो कर सके तो कर अभी..
प्रहार बार-बार कर, जो कर सके तो कर अभी.. !
अजस्र श्रोत-विन्दु था मनस कभी बहार का
यही हृदय उदाहरण व पुंज था दुलार का
प्रवाह किंतु रुद्ध अब, विदीर्ण-त्रस्त स्वर…
Added by Saurabh Pandey on November 6, 2012 at 1:24pm — 25 Comments
बारिश की धूप
सूरज कर्कश चीखे दम भर
दिन बरसाती
धूल दोपहर.. .।
उमस कोंसती
दोपहरी की
बेबस आँखों का भर आना
आलमिरे की
हर चिट्ठी से
बेसुध हो कर फिर बतियाना.. .
राह देखती
क्यों ’उस’ की
ये पगली साँकल
रह-रह हिल कर…
Added by Saurabh Pandey on September 20, 2012 at 4:00pm — 22 Comments
शिक्षक और गुरु : कैसी अवधारणा
5 सितंबर यानि ’शिक्षक दिवस’, उद्भट दार्शनिक विद्वान और देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्लि राधाकृष्णन का जन्मदिवस. कृतज्ञ देश आपके जन्मदिवस पर आपको भारतीय नींव की सबलता के प्रति आपकी अकथ भूमिका के लिये स्मरण करता है.…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on September 5, 2012 at 12:30am — 24 Comments
आज लगते ही तू लगता है चीखने
"आ ज़ाऽऽऽ दीऽऽऽऽऽऽऽऽ...."
घोंचू कहीं का.
मुट्ठियाँ भींच
भावावेष के अतिरेक में
चीखना कोई तुझसे सीखे .. मतिमूढ़ !
…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on August 15, 2012 at 11:30am — 43 Comments
फाग बड़ा चंचल करे, काया रचती रूप !
भाव-भावना-भेद को, फागुन-फागुन धूप !!
फगुनाई ऐसी चढ़ी, टेसू धारें आग
दोहे तक तउआ रहे, छेड़ें मन में फाग ॥
भइ, फागुन में उम्र भी करती जोरमजोर
फाग विदेही कर रहा, बासंती बरजोर !!…
Added by Saurabh Pandey on February 29, 2012 at 7:30am — 21 Comments
(छंद - दुर्मिल सवैया)
जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी
कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी
तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे…
Added by Saurabh Pandey on December 31, 2011 at 2:00pm — 58 Comments
Added by Saurabh Pandey on October 31, 2011 at 1:30pm — 2 Comments
कंधे पर मेरे एक अज़ीब सा लिजलिजा चेहरा उग आया है.. .
गोया सलवटों पड़ी चादर पड़ी हो, जहाँ --
करवटें बदलती लाचारी टूट-टूट कर रोती रहती है चुपचाप.
निठल्ले आईने पर
सिर्फ़ धूल की परत ही नहीं होती.. भुतहा आवाज़ों की आड़ी-तिरछी लहरदार रेखाएँ भी होती हैं
जिन्हें स्मृतियों की चीटियों ने अपनी बे-थकी आवारग़ी में बना रखी होती हैं
उन चीटियों को इन आईनों पर चलने से कोई कभी रोक पाया है क्या आजतक?..
…
Added by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 9:30am — 20 Comments
नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥
साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥
बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान, पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥
राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये ॥4॥
***************
हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि
विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा ||1||
हो खरा…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 11:00pm — 18 Comments
ज़िन्दग़ी का रंग हर स्वीकार होना चाहिये
जोश हो, पर होश का आधार होना चाहिये ||1||
एक नादाँ आदतन खुशफहमियों में उड़ रहा
कह उसे, उड़ने में भी आचार होना…
Added by Saurabh Pandey on October 10, 2011 at 9:46am — 11 Comments
मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है
जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?
इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से ||1||…
Added by Saurabh Pandey on October 4, 2011 at 1:30pm — 33 Comments
.
जिसकी रही कभी नहीं आदत उड़ान की
अल्फ़ाज़ खूबियाँ कहें खुद उस ज़ुबान की
*
भोगा हुआ यथार्थ जो सुनाइये, सुनें
सपनों भरी ज़ुबानियाँ दिल की न जान की..
*
जिसके खयाल हरघड़ी परचम बने उड़ें
वो खा रहा समाज में इज़्ज़त-ईमान की ..
*
जिनके कहे हज़ारहा बाहर निकल पड़े
ऐसी जवान ताव से चाहत कमान की..
*
जबसे सुना कि शोर है अब इन्क़िलाब का
ये सोच खुश हुआ बढ़ी कीमत दुकान की.
*
हर नाश से उबारता, भयमुक्त जो…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on September 1, 2011 at 9:30am — 15 Comments
निस्शब्द स्वरों के कानफोड़ू शोर
चिलचिलाते मौन की बेधती टीस
लगातार भींचती जाती दंत-पंक्तियों में घिर्री कसावट
माज़ी का गाहेबगाहे हल्लाबोल करते रहना..... ....
जब एकदम से सामान्य हो कर रह जाय..
तो फिर...
कागज़ के कँवारेपन को दाग़ न लगे भी तो कैसे?
आखिर जरिया भर है न बेचारा ..
/एक माध्यम भर../
कुछ अव्यक्त के निसार हो जाने भर का
महज़ एक जरिया ... ...और....
किसी जरिये की औकात आखिर होती ही क्या है ?
उसके…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 24, 2011 at 8:09pm — 11 Comments
स्मृतियों के अनगढ़ कमरे से
अचानक बाहर फुदक आयी हैं कुछ नम रोशनियाँ... /आज फिर.. ..
एक बार फिर
मासूम सी कोशिश की है इनने..
कि, मनाँगन में
कशिशभरी आवारा धूप बन लहर-लहर नाचेंगी..
तुम मेरे साथ हो न हो.... ..
इन रोशनियों के साथ जरूर होना.. ..
...............कोशिश तो करना.. ..
मुझे पता है .. गया समय उल्टे पाँव नहीं चलता..
किन्तु इन भोली-निर्दोष रोशनियों को अब कौन समझाये..
और देखो.. ..
तुम भी मत समझाना..…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 24, 2011 at 7:30pm — 12 Comments
आओ साथी बात करें हम
अहसासों की रंगोली से रिश्तों में जज़्बात भरें हम..
रिश्तों की क्यों हो परिभाषा
रिश्तों के उन्वान बने क्यों
हम मतवाला जीवनवाले
सम्बन्धों के नाम चुने क्यों
तुम हो, मैं हूँ, मिलजुल हम हैं, इतने से बारात करें हम..
आओ साथी बात करें हम.........
शोर भरी ख्वाहिश की बस्ती--
--की चीखों से क्या घबराना
कहाँ बदलती दुनिया कोई
उठना, गिरना, फिर जुट जाना
स्वर-संगम से अपने श्रम के, मन…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 22, 2011 at 6:30pm — 18 Comments
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