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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (481)

आजकल इस देश में-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



ये शिवालों से दुखी है आजकल इस देश में

वो हवाओं से दुखी है आजकल इस देश में।१।
.

भूखे रहने की  सलाहें  दे  रहा  भूखों को वो

जो निवालों से दुखी है आजकल इस देश में।२।

**

जिस को उत्तर सारे  के  सारे  पता हैं दोस्तो

वो सवालों से दुखी  है  आजकल इस देश में।३।

**

जो अँधेरों से बचा लाया था अपने-आप को

वो उजालों से दुखी  है आजकल इस देश…
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:30pm — 12 Comments

हमको समझ नहीं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



कहते है लोग प्रीत  की  हमको समझ नहीं

दुश्मन के साथ मीत की हमको समझ नहीं।१।

*

नफरत ही नित्य बँट  रही  सरकार इसलिए

आँगन में उठती भीत की हमको समझ नहीं।२।

*

न्योतो  न  आप  मंच  से  महफिल  बिगाड़ने

कविता गजल या गीत की हमको समझ नहीं।३।

*

हम ने सदा  ही  धूप  का  रस्ता  बुहारा  पर

रिश्तों में पसरी शीत की हमको समझ नहीं।४।

*

समझा नहीं है  खेल  मुहब्बत  को इसलिए

इस में ही…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 25, 2021 at 5:17am — 4 Comments

उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२ /२२

जिसका अपना यहाँ दायरा कम है

आसमाँ को भी  वो  मानता कम है।१।

*

मुझसे कहता है क्यों पूजता कम है

देख तुझ  में  भी  तो  देवता कम है।२।

*

जो  ठहरना  नहीं  चाहता  साथी

उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है।३।

*

बात औरों के सिर डालकर देखो

अपने  ईमान  को  तौलता कम है।४।

*

पास  बैठा  है  लेकिन  अबोला  ही

कौन कहता है अब फासला कम है।५।

*

हर बुराई …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2021 at 9:43am — 12 Comments

रात भर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२

आँखों में नींद ला के जगाती है रात भर

पाकर अकेला याद जो आती है रात भर।१।

*

कैसे हो चैन देह को मन को सुकून तब

शोलों सी चाँदनी ये जलाती है रात भर।२।

*

होने लगी है जुल्फ जो उसकी सफेद यूँ

आँखों के आँसुओं से नहाती है रात भर।३।

*

बजती हवा से दूर जो मंदिर की घन्टियाँ

आवाज दे के लगता बुलाती है रात भर।४।

*

आता है याद माँ का वो दामन हमें बहुत

जब रात सर्दियों  की सताती है रात…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2021 at 7:30am — 5 Comments

करके दिखाया देश में किसने कहा हुआ -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



सेवा  के  नाम  खाते  हैं  मेवा  छिपा  हुआ

इनके सिवा बताओ तो किसका भला हुआ।१।

*

मिलती हैं रोटियाँ जो ये कुर्सी के खेल से

है रक्त बेबशों  का  भी  इन में लगा हुआ।२।

*

मुकरे  हैं  नेता  सारे  ही  देकर  वचन हमें

करके दिखाया देश  में  किसने कहा हुआ।३।

*

नेता हुए हैं आज  के  गिरगिट सरीखे सब

खादी को ऐसे कर दिया सबसे गिरा हुआ।४।

*

ये  नीरो  जैसे  देश  में  रहते  हैं …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 11, 2021 at 2:41am — 4 Comments

कहते पुजारी मुझ से हैं तू देवता बदल- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



रस्ता बदल न और कभी काफ़िला बदल

केवल तू अपनी सोच का ये दायरा बदल।१।

*

मिलती है राह कर्म से जन्नत की भी मगर

किस्मत को जीतने के लिए हौसला बदल।२।

*

है जानकार जो  भी  वो  पैसों के पीछे बस

जिसको पता न रोग का कहता दवा बदल।३।

*

चेहरा ही अपना दाग से करता जो गुफ्तगू

क्या होगा हमको लाभ बता आईना बदल।४।

*

पूजा का खुद को तौर तरीका न आता है

कहते पुजारी मुझ से  हैं  तू देवता बदल।५। …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2021 at 7:00am — 4 Comments

भूख का व्यापार मत करवाइए- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

कायराना  काम  कोई  यार  मत करवाइए

हर नदी नाले को हम से पार मत करवाइए।१।

*

शेर पाला है तो शेरों से लड़ाओ खूब पर

गीदड़ों से तो उसे दो-चार मत करवाइए।२।

*

वीरता की धार इससे कुंद सी पड़ जायेगी

रोजमर्रा दुश्मनों   से   प्यार मत करवाइए।३।

*

जाति धर्मों  के  लवादे  में  सियासत हेतु यूँ

नित्य अपनों से तो इतनी रार मत करवाइए।४।

*

चापलूसों को जमाकर रंग रोगन बस…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2021 at 7:43am — 6 Comments

देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/२१२२/२१२२/२१२



कौन कहता घाव  अपने  सी  रहा है आदमी

आजकल तो खून  अपना  चूसता है आदमी।१।

*

देवता होना  नहीं  पर  दानवों  की बात सुन

आदमी की  पाँत  से  ही  लापता है आदमी।२।

*

जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो

आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।

*

प्यास होने पर  मरुस्थल  छान लेता नीर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 6:42pm — 12 Comments

निष्पक्ष सत्य सुर्खी में -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221-2121-1221-212



अखबार कोई आज भी अच्छा बचा है क्या

हर सत्य जिसमें नाप के छपता खरा है क्या।१।

*

राजा से पूछा  करता  जो  डंके  की चोट पर

जन के दुखों को देख के मानस दुखा है क्या।२।

*

हट  कर खबर  के  पृष्ठों  से  सम्पादकीय में

जनता के हित का मामला कोई उठा है क्या।३।

*

जिस का लगाता दाँव है पत्रकार जान तक

निष्पक्ष सत्य  सुर्खी  में  आता सदा है क्या।४।

*

पीड़ा हो जिस में लोक की केवल छपी हुई

नेता के नित्य कर्म को लिखना घटा है…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 6:41am — 3 Comments

भटका रही हैं रोज ही रस्तों की खेतियाँ-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221/2121/1221/212

पत्थर जमाना  बोये  जो  काटों की खेतियाँ

छोड़ो न तुम तो साथियों सुमनों की खेतियाँ।१।

*

कर लेंगे  ये  भी  शौक  से  बेटे  किसान के

लिख दो हमारे हिस्से में जख्मों की खेतियाँ।२।

*

ये जो  है  लोकतंत्र  का  धोखा  मिला  हमें

बन्धक रखी  हैं  वोट  दे  हाथों की खेतियाँ।३।

*

बदलो स्वभाव काम का हर दुख मिटाने को

किस्मत पे छाप  छोड़ती  कर्मों की खेतियाँ।४।

*

उजड़े नगर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2021 at 1:28pm — No Comments

मौत का भय है न जिनको जुल्म वो सहते नहीं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122/2122/2122/212



है नहीं क्या स्थान जीवन भर ठहरने के लिए

जो शिखर चढ़ते हैं सब ही यूँ उतरने के लिए।१।

*

स्वप्न के ही साथ जीवन हो सजाना तो सुनो

भावना की  कूचियाँ  हों  रंग  भरने के लिए।२।

*

ये जगत बैठा के खुश हैं लोग यूँ बारूद पर

भेज दी है अक्ल सबने घास चरने के लिए।३।

*

खिल के आयेगी हिना भी सूखने तो दे सनम

रंग लेता  है  समय  कुछ  यूँ  उभरने के लिए।४।

*

मौत का भय है न जिनको जुल्म वो सहते नहीं

जिन्दगी का  लोभ  काफी  यार …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 23, 2021 at 7:18pm — 8 Comments

सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



इज्जत हमारी उनसे ही पहचान जग में है

सच है हमारा तात से सम्मान जग में है।१।

*

वंदन उन्हीं के चरणों का करते हैं उठते ही

आशीष उन का ईश का वरदान जग में है।२।

*

मागें भला क्या ईश से मालूम हमको सब

माता पिता के रूप में भगवान जग में है।३।

*

सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ

वो सच स्वयं नसीब से धनवान जग में है।४।

*

हमको जहाँ के खेल का अनुभव नहीं कोई

जीना उन्हीं की सीख से आसान जग में है।५।

*

ये खेल ये…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2021 at 7:04pm — 6 Comments

सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221, 2121, 1221, 212

तैराक खुद को जाँचने पानी में आयेगा

तब ही नया सा मोड़ कहानी में आयेगा।१।

*

तुमको सफर मिला भी तो रस्ता बुहार के

रोड़ा न अब  के  कोई  रवानी  में आयेगा।२।

*

सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं

कब देश अपना यार  जवानी में आयेगा।३।

*

सोने की चिड़िया फिर से कहायेगा देश ये

जब दौर सुनहरा  सा  किसानी में आयेगा।४।

*

देती…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2021 at 6:30am — 4 Comments

इस को जरूरी रात में कोई जगा रहे-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

चाहत नहीं कि सब से ही मिलती दुआ रहे

केवल जगत  में  शौक  से  नेकी  बचा रहे।१।

*

हम को कहो  न  आप  गुनाहों का देवता

पापों की गठरी आप की हम ही जला रहे।२।

*

चाहत सभी को नींद जो आये सुकून की

इस को  जरूरी  रात  में  कोई  जगा रहे।३।

*

माना बुरे हैं  दाग  भी हमको लगे हैं पर

वो ही उठाये उँगली जो केवल भला रहे।४।

*

अपनी ही आखें बन्द हैं मानो ये साथियो

अच्छे दिनों को खूब वो कब से दिखा रहे।५।

*

झगड़ा न…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2021 at 4:32am — 7 Comments

कहता था हम से देश को आया सँभालने-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



करता है जग में धर्म के लोगो न काम वो

लेकिन बताता नाम है सब को ही राम वो।१।

**

कहता था हम से देश को आया सँभालने

पर उजली भोर कर रहा देखो तो शाम वो।२।

**

महँगा हुआ है थाली में निर्धन का कौर भी

सेठों को  मुफ्त  बाँटता  हर दम ईनाम वो।३।

**

केवल उड़ायी  नींद  हो  ऐसा नहीं हुआ

सपने भी लूट ले गया सब के तमाम वो।४।

**

समझा न मन के दर्द को लोगो भले कभी

करता है मन की  बात  बहुत बेलगाम…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2021 at 7:08am — 5 Comments

कम है-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२

गीत में सद् भावना का ज्वार कम है

सर्वहित की कामना का ज्वार कम है।१।

**

दे रहे  सब  सान्त्वना  पर  जानता हूँ

शुद्ध मन की प्रार्थना का ज्वार कम है।२।

**

सिद्ध कैसे  झट  से  होगी  योग  माया

आज साधक साधना का ज्वार कम है।३।

**

सत्य मर्यादा टिकेगी किस तरह अब

हर किसी में वर्जना का ज्वार कम है।४।

**

हर नगर श्मसान जैसा आज दिखता

किस नयन में वेदना का ज्वार कम है।५।

**…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2021 at 1:20pm — 11 Comments

समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा

लाया  मगर  अमल  में  अँधेरों  ने जो कहा।१।

**

बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को

समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा।२।

**

देखा जो उसको मान के आँखों का धोखा है

जाना  अमर  है  सत्य  हवाओं  ने  जो  कहा।३।

**

सोचा ही था कि शाप के परिणाम आ गये

आया असर  न  एक  दुआओं ने जो कहा।४।

**

इस दौर कह के झूठ है अन्नों की बात को

सच कह रही है  देह  दवाओं ने जो…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 3, 2021 at 11:30am — 9 Comments

करने को नित्य पाप जो-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



करने को नित्य  पाप  जो  गंगा नहायेंगे

हम से अधिक न यार कभी पुण्य पायेंगे।१।

**

तन के धुलेंगे पाप न पावन जो मन हुआ

अंतस में ग्लानि होगी तो गंगा को आयेंगे।२।

**

कोसेेंगे एक दिन तो स्वयं अपने आप को

अपनी नजर से बोलिए क्या क्या छिपायेंगे।३।

**

हम को भले ही भाव न तुम दो अभी मगर

घन्टी बजा कलम  से  तो  हम ही जगायेंगे।४।

**

जिनको शऊर आया न दीपक जलाने का

कहते  हैं  रोशनी  को  वो  सूरज  उगायेंगे।५।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2021 at 10:00am — 8 Comments

कोई बिका तो लाया है कोई खरीद कर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

कोई बिका तो लाया है कोई खरीद कर

दुनिया में आज हो रही शादी खरीद कर।१।

**

हम हर गली या चौक पे चर्चा में व्यस्त हैं

लाला चलाता  देश  है  खादी खरीद कर।२।

**

पाया अधिक तो हो गया दुश्मन की ओर ही

किसका हुआ  वकील  है  वादी खरीद कर।३।

**

रखता बचा के  कौन से जीवन के हेतु वो

बच्चों को लोभी देता न टाफी खरीद कर।४।

**

खुद खाके भूख माँ ने खिलाया था कौर इक

कमतर उसे जो दें  भी  तो  रोटी खरीद कर।५।

**

कर्मों से जो…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2021 at 10:05am — 4 Comments

आँसू हमारी आँखों में लाने का शुक्रिया-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



मीठी सी बात कर के लुभाने का शुक्रिया

फिर गीत ये विकास के गाने का शुक्रिया।१।

***

हमको दुखों से एक भी शिकवा नहीं भले

होते हैं सुख के दिन ये बताने का शुक्रिया।२।

**

वादे सियासती  ही  सही  हम को भा गये

फिर से दिलों में आस जगाने का शुक्रिया।३।

**

खातिर भले ही वोट की आये हो गाँव तक

यूँ पाँच साल  बाद  भी  आने  का शुक्रिया।४।

**

पथरा गयीं थी देखते पथ ये तुम्हारा जो

आँसू हमारी आँखों में लाने का शुक्रिया।५।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 27, 2021 at 8:15pm — 6 Comments

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