For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Abhinav Arun's Blog – September 2010 Archive (6)

ग़ज़ल:माँ के आँचल सा

ग़ज़ल



माँ के आँचल सा खिलता है गुलमोहर,

मुझसे अपनों सा मिलता है गुलमोहर.



तुम अपने रेखा चित्रों में रंग भरो,

मेरे सपनों में हिलता है गुलमोहर.



खुशबू वाले चादर तकिये और गिलाफ ,

बूढ़ी आँखों से सिलता है गुलमोहर.



चौड़ी होती सड़कों से खुश होते हम,

बची हुई साँसे गिनता है गुलमोहर.



भक्काटा* के शोर में छोटे बच्चे सा ,

अपने मांझे को ढिलता है गुलमोहर .



चटख चाँदनी जब करती सोलह सिंगार ,

झोली में तारे बिनता है… Continue

Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 4:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल:आ रहा जब तक

ग़ज़ल



आ रहा जब तक पतन से अर्थ है,

आचरण पर बहस करना व्यर्थ है.



आपके चेहरे पे गड्ढे शेष हैं,

आईने पर धूल की एक पर्त है.



चौक पर कबिरा मुनादी कर रहा,

आइये देखें क्या उसकी शर्त है.



सत्य आँखों की परिधि से दूर था ,

आज न्यायालय में जीता तर्क है.



मार्क्स गाँधी गोर्की को भूलकर ,

पीढी क्या जानेगी क्या संघर्ष है .



क़त्ल भाषा धर्म जाति के सबब,

सभ्यता का क्या यही उत्कर्ष है.



दोष अपना मेरे ऊपर मढ़ गया… Continue

Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 3:30pm — 2 Comments

अथ से इति तक !

जब तक अथ से इति तक

ना हो सब कुछ ठीक ठाक ,

सुख की पीड़ा से अच्छा है

पीड़ा का सुख उठाना.

जब तक सुनी ना जाएँ आवाज़े

सिलने वाले हो हज़ार सूइयों वाले

और होंठों पर पहरे पड़े हों ,

चुप्प रहने से अच्छा है,

शब्दों की अलगनी पर खुद टंग जाना .

जब तक जले न पचास तीलियों वाली माचिस

या ख़ाक न हो जाएँ सडांध लिए मुद्दे

हल वाले हांथों का बुरा हो हाल

मेंड़ पर बैठने से अच्छा है बीज बन जाना .

जब तक मदारी का चलता हो खेल

और एक से एक मंतर हो रहें हो… Continue

Added by Abhinav Arun on September 29, 2010 at 3:00pm — 2 Comments

गज़ल:ज़मीर इसका ..

ज़मीर इसका कभी का मर गया है ,
न जाने कौन है किस पर गया है.

दीवारें घर के भीतर बन गयीं हैं,
सियासतदां सियासत कर गया है.

तरक्की का नया नारा न दो अब ,
खिलौनों से मेरा मन भर गया है.

कोई स्कूल की घंटी बजा दे,
ये बच्चा बंदिशों से डर गया है.

बहुत है क्रूर अपसंस्कृति का रावण ,
हमारे मन की सीता हर गया है.

शहर से आयी है बेटे की चिट्ठी,
कलेजा माँ का फिर से तर गया है.

Added by Abhinav Arun on September 25, 2010 at 3:30pm — 8 Comments

गज़ल:खुदाई जिनको

खुदाई जिनको आजमा रही है,

उन्हें रोटी दिखाई जा रही है.



शजर कैसे तरक्की का हरा हो,

जड़ें दीमक ही खाए जा रही है.



राम उनके भी मुंह फबने लगे हैं,

बगल में जिनके छुरी भा रही है .



कहाँ से आयी है कैसी हवा है ,

हमारी अस्मिता को खा रही है.



तिलक गांधी की चेरी जो कभी थी ,

सियासत माफिया को भा रही है.



हाई-ब्रिड बीज सी पश्चिम की संस्कृति ,

ज़हर भी साथ अपने ला रही है .



शेयर बाज़ार ने हमको दिया क्या ,

गरीबी और बढती… Continue

Added by Abhinav Arun on September 25, 2010 at 3:00pm — 6 Comments

एक शायर की अभिलाषा !!

आग हूँ कुछ पल दहक जाने की मोहलत चाहता हूँ ,



दर्द को पीकर बहक जाने की मोहलत चाहता हूँ.





फिर बिखर जाऊँगा एक दिन पिछले मौसम की तरह ,



फूल हूँ कुछ पल महक जाने की मोहलत चाहता हूँ,





पहले कीलें ठोकिये पहनाईए काँटों का ताज ,



फिर मैं सूली पर लटक जाने की मोहलत चाहता हूँ.





आपकी इन बूढ़ी आँखों का सहारा बन सकूं ,



इसलिए बाबा शहर जाने की मोहलत चाहता हूँ.





कतरा कतरा चूसकर हर शख्स मीठा हो गया… Continue

Added by Abhinav Arun on September 12, 2010 at 10:38pm — 14 Comments

Monthly Archives

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service