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KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog – October 2016 Archive (6)

पहरे

पहरे

बढ़ा लो पहरे और
फर्क क्या पड़ना है?
आतंक के माहौल में
आगे फिर भी बढ़ना है |
ठानी है जो तुमने करो
मैं अपना कर्तव्य निभाऊंगी
वक़्त आया तो
निडर होकर
देश पर जान वारूँगी।
दर्द इतना झेला है
अब न तुम मुझको डराओ
गोली बारूद की बिसात पर
मौत बुलाने से बाज आओ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 23, 2016 at 10:30am — 5 Comments

बादल बने एहसास

उमड़ते घुमड़ते

रहे एहसास

उन लहरों की तरह

आकाश से सागर तक

फ़ासले तय करते गये

हर हवा के झोंके

ने पत्तों की उड़ाया कभी

टकराये पेड़ से

चट्टानों से

बहे झरने की तरह कभी

तिनके की तरह तैरते रहे

पानी में अपने अस्तित्व

के लिए लड़ते रहे

उन लहरों से ।



कभी हवा से उड़ने लगे

एक पतंग बन

खुले नभ में

अपने ख्वाबों को

उंचाईयों पर पहुँचाने के लिए

हंसते हुए लहराते हुए ।



बरस पड़े आँसू बन कभी

अपनी यादों के… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 12, 2016 at 10:00pm — 5 Comments

शाख़ पर चिड़िया

रोज़ देखतीं हूँ

शाख पर बैठी हुई

चिड़ियाओं को



जो बैठती हैं

एक शाख़ पर

कलरव करती हैं ।



भूख लगने पर

पंखों को फ़ैलाए

उड़ जाती हैं ।

अपने लिए

दाना ढूंढने ।



समय आने पर

बीनती हैं तिनके

अपने लिए

एक घरौंदा बनाती हैं ।





करती हैं परवरिश

विहग-सुवन की ।



करतीं हैं इन्तज़ार

समय का

पंख आ जाने पर

जो कल एक

बच्चा था

उड़ जाता है

ऊँचे गगन में

उड़ जाता है

अपनी… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2016 at 8:30pm — 11 Comments

एक एहसास (कविता )

एक एहसास
मीठा सा
इंतज़ार दे गया ।

प्यार का
विश्वाश का
तड़प का
अधिकार का ।


एक एहसास
प्यारा सा
प्यार जता गया

आँखों से आँखों का मिलना
आत्मा की पुकार
एक ख़्वाब जगा गया ।

प्यारा सा चेहरा
अपनी और खींचता है
ग्रीष्म में सावन
का एहसास
तुम्हारा प्यार दे गया ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 10, 2016 at 7:51pm — 10 Comments

ज़िन्दगी (कविता)

छोटी छोटी सी खुशियां

भर देती हैं  झोली

हंसी ख़ुशी दिन बीते जब

ज़िन्दगी लगती  हमजोली



जीवन के है रंग निराले

जो  खेले आँख मिचोली

एक आये जब दूजा जाए  

ज़िन्दगी लगती मखमली |



लेकर बहार आती है ज़िन्दगी

प्यार से जब सींचि जाती है

कड़वाहट का ज़हर भी पीती

अपना असर दिखाती है |



अपनों के बीच अपनों के संग

प्यार को पाती है ज़िन्दगी

प्यार गर न मिले तो

सूखे पत्तों की तरह मुरझा जाती है ज़िन्दगी |

मौलिक एवं…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 10:30pm — 10 Comments

नयन भी तरस गये ( कविता)

छम छम करती हुई
आयी जब वो छत पर
चाँद भी जैसे ठहर सा गया
यौवन उसका देखकर
श्वेत वस्त्रों में लिपटी हुई
कुछ शरमाई कुछ अलसायी
देख रही थी बादलों को
लगा मानो कह रही हो
बुला दो मेरे प्रियतम को
देख उसको बादल भी बरस पड़े
पीड़ा थी जुदाई की
या थी प्रीत की जीत
चाँद भी जा चूका था
बादल भी बरस गये
पिया के दरस को
नयन भी तरस गये |

मौलिक एवं अप्रकाशित


Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 5:20pm — 10 Comments

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