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मिथिलेश वामनकर's Blog – August 2015 Archive (17)

कबीरा, सूर, मीरा और तुलसीदास रखता हूँ। (ग़ज़ल)

1222---1222---1222-1222

 

मैं घर से दूर आया हूँ मगर कुछ ख़ास रखता हूँ।

तुम्हारी याद की ताबिश हमेशा पास रखता हूँ।

 

कभी वट पूजती हो तुम, दिखा के चाँद को…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 31, 2015 at 2:03pm — 28 Comments

मुम्बईया मजाहिया ग़ज़ल -- मिथिलेश वामनकर

1222---1222---1222-1222

 

सटक ले तू अभी मामू किधर खैरात करने का

नहीं है बाटली फिर क्या इधर कू रात करने का

 

पुअर है पण नहीं वाजिब उसे अब चोर बोले तुम…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 28, 2015 at 8:30pm — 32 Comments

गलीज़ आदत टला-टली है -- (ग़ज़ल) --- मिथिलेश वामनकर

121-22---121-22---121-22---121-22

 

नसीब को जो कभी न रोया, उसी को किस्मत फली-फली है

जो काम आये तुरंत कर लो,  गलीज़ आदत टला-टली है

 

कुछ इस तरह से मुहब्बतों के…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 27, 2015 at 3:30am — 16 Comments

दुनिया बिलकुल छोटी है (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

22---22---22---2

 

फूलों में सरगोशी है

सच की खुशबू फैली है

 

मुमकिन को भी मायूसी

नामुमकिन कर देती…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 3:30pm — 19 Comments

कुछ तो कहो, कुछ जवाब दो -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

221—2121—1221—212

 

जुगनू से मांगने को चला है कि ताब दो

बेचैन हो गया है बशर  फिर नकाब दो

 

इस तिश्नगी से हम न कभी मुतमईन थे…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 23, 2015 at 9:30am — 20 Comments

ऑक्सीजन - (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर

“अब परेशान होने से क्या होगा? मैंने पहले ही कहा था कि इतनी उधारी मत करो.”

“गज़ब बात करती हो सुधा. अगर उधार नहीं लेते तो अनु की पढ़ाई का क्या होता?”

“क्या अनु यहीं नहीं पढ़ सकती थी? कितना कहा, पर आपको तो.... जवान बेटी को विदेश भेज दिया ... बरमंगम में पढ़ाएंगे”

“बरमंगम नहीं यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्मिंघम इन ग्रेट ब्रिटेन”

“जिस जगह का नाम तक याद नहीं रहता, वहां भेज दिया बेटी को और अब परेशान हो रहे है.”

“अरे मैं परेशान इसलिए हूँ कि संपत भाई इसी हप्ते चार लाख वापस मांग रहे…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 21, 2015 at 3:41am — 20 Comments

इस फ़िजूली से बेहतर यही, कुछ न कुछ आप करते रहें--- (ग़ज़ल)--- मिथिलेश वामनकर

212—212—212----212—212—212

 

वो बदलते नहीं है अगर,  तो फ़क़त इतना चल जाएगा

आप खुद ही बदल जाइए, ये ज़माना बदल जाएगा

 

बात इतनी सी है ये मगर, नासमझ बन के बैठे…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 9:30am — 15 Comments

ग़ज़ल -- होगा तो क्या होगा? (मिथिलेश वामनकर)

1222 — 1222 — 1222  — 1222

 

प्रकाशित और नित् निर्मल जो मन होगा तो क्या होगा?

हमारा और उनका जब मिलन होगा तो क्या होगा?

 

उन्हें इस बात का आभास हो जाए तो अच्छा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 9:30am — 24 Comments

ग़ज़ल -- उछाल के बिजली के तार पर (मिथिलेश वामनकर)

221 2121 1221 212

 

अपनी ख़ुशी उछाल के बिजली के तार पर

रौशन किया है देखिये घर  जोरदार पर

 

आसान लग रहा है अगर तै सफ़र मियां…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 11:00pm — 26 Comments

ग़ज़ल -- ‘चलो अपनी सुनाते हैं’ (मिथिलेश वामनकर)

1222—1222—1222—1222

 

घरौंदें, आस में अक्सर यही जुमलें सुनाते हैं 

‘परिन्दें, शाम होती है तो घर को लौट आते हैं’

 

वों तपते जेठ सा तन्हां हमेशा छोड़ जाते…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 9:00pm — 28 Comments

पुण्य-लाभ (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर

दोनों लगभग एक ही साथ चित्रगुप्त के समक्ष पहुंचे क्योकिं आश्रम में हृदयघात से जब बाबा दुनिया से सिधारे तो  अगाध श्रद्धा रखने वाले भूपेश भाई ने भी सदमे में तत्काल प्राण त्याग दिए.

चित्रगुप्त ने बाबा को स्वर्ग में भेज दिया और भूपेश भाई को नर्क जाने का आदेश दिया.

सुनकर भूपेश भाई सन्न रह गए, लेकिन बाबा के आश्वासन की याद आते ही खुद को सँभालते हुए बोले-

“मुझे नरक क्यों भगवन?”

“क्योकि तुमने कोई पुण्य कार्य नहीं किया वत्स!”

“नहीं भगवन!....जीवन भर आश्रम में दान किया,…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 9:00am — 10 Comments

असाधारण- लघुकथा (मिथिलेश वामनकर)

“आप सरकारी नौकरी के साथ समाज सेवा कैसे कर लेते है?”

“जब नौकरी से फ्री होता हूँ तो खाली समय का उपयोग कर लेता हूँ.”

 “आपको झुग्गी-बस्ती में शिक्षा के प्रसार की प्रेरणा कहाँ से मिली?”

“हा हा हा... प्रेरणा व्रेरणा कुछ नहीं भाई.... स्लम एरिया के पास वाले सिग्नल पर बच्चों को सामान बेचते और भीख मांगते देखा, तो स्लम में चला गया... लोगों से बात की तो लगा कुछ करना होगा और असली काम तो वालेंटियर ही कर रहे है.”

“आपको सब पर्यावरण-मित्र कहते है क्योकिं आप इतने बड़े ओहदे पर है फिर…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 12:00pm — 22 Comments

बदला (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर

उसने कामवाली को जरा-सा जोर से क्या डांट दिया, पति और बेटे दोनों ने ये कहकर अयोग्य घोषित कर दिया कि उसकी नाहक ही परेशान होने उम्र नहीं है। परिवार के दबाव में स्टोर की चाबी बहू को सौपते हुए उसे लगा था जैसे उसके किचन नाम के किले पर किसी ने सेंधमारी कर ली हो।  वह सोच में डूबी थी कि अचानक बहू के चिल्लाने की आवाज सुनकर बोली-

 “अरे बहू सुबह सुबह क्यों डांट रही है बच्चे को, अब एक दिन स्कूल नहीं जाएगा तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा।” दादी की शह पाकर बच्चा दादी के साथ ही लग लिया। पूरा दिन दादी के…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 2:30am — 26 Comments

ग़ज़ल -- कुरआन पढ़कर आरती करता रहा - (मिथिलेश वामनकर)

2122--2122--2122--212

इस मकां को बामो-दर से एक घर करती रही

माँ मुसलसल काम अपना उम्र भर करती रही

 

धूप बारिश सर्दियों को मुख़्तसर करती रही

बीज की कुछ कोशिशें मिलकर शज़र करती रही…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 1:00am — 16 Comments

शायरी का हुनर नहीं आता -- (मिथिलेश वामनकर)

212—212—1222

 

पास दिल के जो डर नहीं आता

राहे-हक हमसफर नहीं आता

 

आज बेटा बदल गया कितना

एक आवाज़ पर नहीं…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 3, 2015 at 9:30am — 42 Comments

बुनियाद (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर [अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस पर ]

“आज फ्रेंडशिप डे है मगर ये डिसिप्लिन साला!....... सेलिब्रेट भी नहीं कर सकते.”

“आर्मी लाइफ है ब्रदर.”

“सुना, अमेरिका में ईराक पर हमले का अमेरिकी सैनिकों के साथ-साथ सिविलियन भी विरोध कर रहे है.”

“हाँ यार...... इतने पावरफुल देश की सेना में डिसिप्लिन ही नहीं है क्या?”

“अच्छा.... अगर इन्डियन आर्मी पाकिस्तान पर हमला करें तो क्या यहाँ भी विरोध होगा?”

“ अबे गद्दारों जैसी बात मत कर.......हमारा देश, राष्ट्रभक्तों का देश हैं. इसकी बुनियाद में…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 2, 2015 at 3:49am — 34 Comments

बिगड़ता है किसी का क्या?---(मिथिलेश वामनकर)

1222--1222—1222--1222

 

लगे बोली सियासत में, भला आम-आदमी का क्या?

निजाम-ए-मुल्क जो कह दे मगर इस अबतरी का क्या?                                 

 

अगर दो वक़्त की…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 5:00am — 26 Comments

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