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PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA's Blog – March 2014 Archive (4)

भारतीय किसान (प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा)

भारतीय किसान 

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जय जवान जय किसान 

जग का नारा झूंठा  

भाग्य किसान  कैसा तेरा

प्रभू भी तुझसे रूठा 

लेकर हल खेत में 

नंगे पाँव तू जाए 

मखमली कालीन पे

वणिक विश्राम पाए 

भरता सगरे जग का पेट 

खुद है  भूखा सोता 

बिके फसल  तेरी जब 

कर्जा कम न होता 

हाय रे किस्मत तेरी 

कैसा  भाग्य अनूठा 

जय जवान जय किसान 

जग का…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2014 at 3:30pm — 20 Comments

मेरे पन्ने (प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा)

मेरे पन्ने 

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जीवन पृष्ठ मेरे
हाथों में तेरे
खुली किताब की तरह
कुछ
चिपके पन्ने
कह रहे
दास्तान पढ़ने को
है अभी बाक़ी
लौट आया हूँ फिर
चाहता हूँ
रुकूँ अभी
हवा के तेज झोंके
जीवन पृष्ठों को
तेजी से बदलते हुए
चिपका हूँ
दीवार के साथ
बूझेगा अब कौन
न है मधुशाला
न उसमे साकी
मौलिक और अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१५ मार्च २०१४

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2014 at 8:00pm — 6 Comments

युवा भारत

युवा भारत
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उमंग से भरे चेहरे
पल होंगे तभी सुनहरे
मिले दिशा जब उस ओर
होती है जिधर से भोर
खिलती कली खिलती धूप
बहती नदी खिलता रूप
उन्मुक्त हो गगन उड़ान
नारी स्वयं की पहचान
सफल होय जीवन अपना
शेष रहे न कोई सपना
गीत मिल वो गुनगुनाएं
आओ सब स्वर्ग बनायें
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
मौलिक /अप्रकाशित

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 11, 2014 at 9:56pm — 12 Comments

फतवा (लघुकथा) - प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

मौलवी साहिब के घर गहरी उदासी छाई हुई थी. उनके तीनो बच्चों को डॉकटरी जांच के दौरान पोलियों रोग से ग्रस्त पाया गया था. उम्र अधिक होने के कारण अब उन बच्चों का इलाज भी सम्भव नहीं था. अत: ज़िंदगी भर के लिए बच्चों के अपाहिज होने की कल्पना मात्र से ही हर कोई दुखी था. मोहल्ले के गरीब और निरक्षर परिवारों के दौड़ते भागते तंदरुस्त बच्चों को देखकर पढ़े लिखे मौलवी साहिब बार बार यही सोच रहे थे कि काश उन्होंने भी धार्मिक फतवों से ज्यादा अपने बच्चों की परवाह की होती। 

मौलिक /…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2014 at 7:00pm — 16 Comments

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