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‘पता चला है सेठ से तुम्हारे पुराने सम्बन्ध थे ?’- इंस्पेक्टर ने कड़क कर पूंछा I

‘जी हाँ ----I’

‘कैसे सम्बन्ध थे ?’

‘एक समय मै रखैल थी उसकी I’

‘तब तूने उसकी हत्या क्यों की ?’

‘क्योंकि वह मनुष्य नहीं राक्षस था I वह मेरी बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाने जा रहा था I मैंने साले को वही चाकू से गोद दिया I’

‘तो तेरी बेटी क्या सती सावित्री थी ?’

‘नहीं साहिब , हम जैसे लोग पेट के लिए देह बेचते है I सती -सावित्री होना हमारे लिये गाली है पर मैंने उस मुंहजले को सारी सच्चाई तो पहले ही बता दी थी, फिर  उस पर शैतान क्यों सवार हो गया !’

‘कैसी सच्चाई ?’

‘यही कि  वह सेठ ही मेरी लडकी का बाप था I’

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by khursheed khairadi on January 11, 2015 at 7:15pm

आदरणीय गोपालनारायण सर ,कड़वी गोली ,अस्वीकार्य किंतु अटल सच्चाई | मरद जात की देहलोलुपता और लंपटता की बखिया उधेड़ दी  आपने |सादर अभिनन्दन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2015 at 5:18pm

कैसे कैसे दानव हैं इसी सभ्य समाज में... जिनके लिए स्त्री एक देह से ज्यादा कुछ नहीं 

प्रस्तुत लघुकथा में समाज का एक घिनौना और टीसता पक्ष उभरा है 

हार्दिक बधाई प्रस्तुति पर आ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 11, 2015 at 4:46am
सच ने जब अचानक सिर उठा दिया तो
हर नज़र झुक गयी , सन्नाटा छा गया।
Comment by somesh kumar on January 10, 2015 at 9:41pm

सच !कहीं से शालीन कहीं से निर्लज्ज |कहीं से मर्यादित कहीं से पशुवत |सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई ,आदरणीय 

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 10, 2015 at 9:41pm

बेहतरीन लघु कथा वाह खूब है सर वाह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2015 at 9:36pm
सफल लघुकथा। अनुभवी लेखनी का जादू। कसा हुआ कथानक। बधाई स्वीकार करें सर।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 10, 2015 at 9:27pm

क्या कहने आदरणीय, बहुत ही बारीकी से बात उकेरी है, अच्छी लघुकथा हुई है, धंधे वाली भी अपने धंधे में ईमानदारी रखती है किन्तु ....

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by shikha kaushik on January 10, 2015 at 9:10pm

कठोर व् कुटिल यथार्थ की अभिव्यक्ति .बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी 

Comment by कंवर करतार on January 10, 2015 at 8:23pm

उत्तर की हर लड़ी सच्चाई को उघेड़ती -सुंदर रचना, डॉ श्रीवास्तव जी  बहुत बहुत बधाई I

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 8:09pm

एकदम से क़त्ल की वजह उजागर होना ..हतप्रभ करती है...मानवीय संवेदनाओं की रक्षा के लिए किया गया संगीन गुनाह,  कानूनन तो अपराध है ही..पर उसकी अचानक उत्तेजना की वजह सामजिक पाप से मुक्ति ही है..बहुत सुघड़ता से कथ्य को लघुकथा में जिस खूबसूरती से आपने गढ़ा है, सराहनीय हैं ..बधाई आदरणीय.

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