अमर ...
प्रश्न
कभी मृत नहीं होते
उत्तर
सदा अमृत नहीं होते
कामनाएं
दास बना देती हैं
उत्कण्ठाएं
प्यास बढ़ा देती हैं
शशांक
विभावरी का दास है
शलभ
अमर लौ अनुराग है
दृष्टि
दृश्य की प्यासी है
तृषा
मादक मकरंद की दासी है
भाव
निष्पंद श्वास है
अंत
अनंत का विशवास है
स्मृति
कालजयी कल है
अमर
प्रीत का हर पल है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर , प्रणाम ... आप सृजन पर आये, अपने स्नेहिल आशीर्वाद से उसे अलंकृत किया , सृजनकर्ता के हृदय को परमसुख का अनुभव हुआ। अपने कीमती समय से सृजन को आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार।
कविताओं में पारिभाषिकता का चलन एक समय बहुत ज़ोर पर था. आज उस तौर की कविता को देख कर भला लगा. वैसे यह शिल्पगत व्यवस्था है. जो चलन के हिसाब से आती-जाती रहती है. आपके प्रयास केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरनाजी.
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय SALIM RAZA REWA साहिब प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय Tasdiq Ahmed Khan साहिब प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील सरना जी आदब,
हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
मेरी ग़ज़लों में भी आपकी महब्बत चाहता हूँ ,
आदरणीय Afroz 'sahr' साहिब प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
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