For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"तरही ग़ज़ल नम्बर 4

नोट:-

तरही मुशायरा अंक-100 में 87 ग़ज़लें पोस्ट हुईं,मेरी इस ग़ज़ल में जो क़वाफ़ी इस्तेमाल हुए हैं वो बिल्कुल नये हैं ।

पहले सिल पर घिसा गया है मुझे

फिर जबीं पर मला गया है मुझे

जाल हूँ इक सियासी लीडर का

नफ़रतों से बुना गया है मुझे

कोई बारूद की तरह देखो

सरहदों पर बिछा गया है मुझे

कहदो तक़दीर से बखेरे नहीं

करके वो एक जा गया है मुझे

क़त्ल करने के बाद ख़्वाबों का

देके वो ख़ूँबहा गया है मुझे

हक़ किसी और का नहीं उस पर

दिल वो करके हिबा गया है मुझे

दर्द बढ़ता ही जा रहा है,"समर"

कैसी देकर दवा गया है मुझे

"समर कबीर"

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1486

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on October 27, 2018 at 10:50am

आदरणीय समर साहब इस गजल के लिए भी बहुत बहुत बधाई आपको वाकई आपने कमाल कर दिया शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें

Comment by राज़ नवादवी on October 26, 2018 at 5:02pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब अर्ज़ है. बहुत ख़ूब, बहुत शानदार. 

कोई बारूद की तरह देखो

सरहदों पर बिछा गया है मुझे

क्या कहने, दिल से मुबारकबाद. सादर. 

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 26, 2018 at 1:23pm

धन्य हो प्रभू । 

आपकी ग़ज़ल को नमन करता हूँ । ग़ज़ल के प्रति इतना गहरा समर्पण अब दुर्लभ है । 

हर शेर अपने आप में नए काफ़िया के साथ एक नई जमीन का मंजर दिखाता है । 

आपन तेज सम्हारो आपै .......

    सादर नमन गुरुदेव । 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2018 at 12:48pm

वाह वाह आ. समर सर ..
एक मिसरे पर चार ग़ज़लें और सभी बेहतरीन... 
बहुत बहुत बधाई 

Comment by नाथ सोनांचली on October 25, 2018 at 11:17am

पहले सिल पर घिसा गया है मुझे

फिर जबीं पर मला गया है मुझे

वाह वाह वाह, क्या मतला कहा आपने,, ग़ज़ब

क़त्ल करने के बाद ख़्वाबों का

देके वो ख़ूँबहा गया है मुझे

वाह, वाह

हक़ किसी और का नहीं उस पर

दिल वो करके हिबा गया है मुझे

गज़ब का शैर, वाह

आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। एकहीँ जमीन पर खुद में चार गज़ले कहना और वो भी 87 गजलों में आये क्वाफी को छोड़कर,, यह आपके बस की ही बात है। आपके कुछ नया करने के जुनून को देखकर हमें भी ऊर्जा मिलती है। इस बेहतरीन ग़ज़ल पर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2018 at 10:19am

वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह आद० समर भाई जी ये ग़ज़ल तो सबसे उम्दा हुई सभी काफिया नए हैं 

कोई बारूद की तरह देखो

सरहदों पर बिछा गया है मुझे--कमाल का शेर 

वैसे सभी शेर ऐक से बढ़कर एक हैं 

दिल से दाद हाज़िर है मुबारकबाद देती हूँ 

Comment by Mahendra Kumar on October 25, 2018 at 9:19am

वाह! एक ही ज़मीन पर इतनी सारी ग़ज़लें होने के बाद भी नये क़वाफ़ी ले के आना अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है। उस पर इतने अशआर निकालना केवल आप ही के बस की बात है। बहुत ख़ूब सर। इस शानदार ग़ज़ल पर मेरी तरफ़ से भी ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 25, 2018 at 9:04am

हार्दिक बधाई आदरणीय समर कबीर साहब जी।बेहतरीन गज़ल।

जाल हूँ इक सियासी लीडर का

नफ़रतों से बुना गया है मुझे

Comment by Surkhab Bashar on October 25, 2018 at 8:04am

मोहतरम  समर कबीर साहब बहुत अनछूऐ क़फीयों का इस्तेमाल किया 

उम्दा ग़ज़ल  के लिये मुबारक बाद कुबूल करें

Comment by Ajay Tiwari on October 25, 2018 at 6:21am

आदरणीय समर साहब, नए काफ़ियों के साथ बहुत अच्छे अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं आग फैली गली गली लेकिन सिर फिरा कोई भी नपा तो…"
15 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार नीलेश भाई, एक शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई। कुछ शेर बहुत हसीन और दमदार हुए…"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार जयहिंद रायपुरी जी, ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है। //ज़ेह्न कुछ और कहता और ही दिलकोई अंदर मेरे…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ज़िन्दगी जी के कुछ मिला तो नहीं मौत आगे का रास्ता तो नहीं. . मेरे अन्दर ही वो बसा तो नहीं मैंने…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी आयोजन का उद्घाटन करने बधाई.ग़ज़ल बस हो भर पाई है. मिसरे अधपके से हैं…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
13 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service