For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 2122 212

हाय दिल में बस गयी एक गीत गाती सी नज़र ।
कुछ बताती सी नज़र और कुछ छुपाती सी नज़र ।

उसकी आहट से सिहर उठते हैं मेरे जिस्मो-जाँ
बाँचती है मुझको उसकी सनसनाती सी नज़र ।

ज़िन्दगी के फलसफे को पंक्ति दर पंक्ति पढ़ा
क्या गहनता नाप पाती सरसराती सी नज़र ?

आज फिर खामोश सहमा सा कहीं आँगन कोई
सूँघ ली क्या बच्चियों ने बजबजाती सी नज़र ?

कतरा कतरा हो रही है रूह जैसे अजनबी
मुझको मुझसे छीनती है हक़ जताती सी नज़र।

कुछ न कुछ कहती मुझे थी, पर न मैं ही सुन सकी
अब मुझे झकझोरती है कसमसाती सी नज़र।

अजनबी सा आइना घुल-मिल करे अब गुफ्तगू
देखती है चाहतों से गुनगुनाती सी नज़र ।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 570

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:54am

आ0 प्राची बहन इस लाजवाब गजल के लिए बहुत बहुत बधाई ।

Comment by मनोज अहसास on February 11, 2016 at 5:46pm
बहुत खूब ग़ज़ल आदरणीया
बहुत सारे सुन्दर भाव
खूबसूरत बहर में


इसी बहर में हमने भी एक ग़ज़ल दो तीन पहले डाली थी मंच का ध्यान ही नहीं गया
अब आपकी ग़ज़ल पढ़कर जानने की कोशिश करता हूँ क्या कमी रह गई उसमे

सादर
Comment by Shyam Narain Verma on February 11, 2016 at 4:19pm

क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 

 सादर 

Comment by Ravi Shukla on February 11, 2016 at 12:38pm

आदरणीया प्राची जी संभवत: आपकी पहली गजल से दो चार हो रहे है बहुत ही सुन्‍दर गजल कही है आपने बधाई स्‍वीकार करें

नज़र को कई तरीके से आपने बयान किया है । सुन्‍दर ।

एक पाठक के तौर पर भी कुछ कहने की अनुमति चाहते है

मतले के उला में एक को इक करके गिरा के पढने की आवश्‍यकता नही र‍ह जाएगी

आज फिर खामोश सहमा सा कहीं आँगन कोई
सूँघ ली क्या बच्चियों ने बजबजाती सी नज़र ? सावधान सा करता हुआ शेर  बहुत ही बढि़या खयाल है आदरणीया बधाई इसके लिये पर हमें लगता है नजर को सूंघना से बेहतर उपयोग किसी और शब्‍द से हो भी सकता है जैसे भांपना ।

बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिये आदरणीया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 11, 2016 at 1:48am

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी, बहुत खूब..... लाज़वाब और शानदार ग़ज़ल कही है आपने. हरेक शेर कमाल हुआ है. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 10, 2016 at 11:58pm
आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी,
शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 10, 2016 at 9:32pm
सुंदर शानदार प्रस्तुति।
Comment by Manan Kumar singh on February 10, 2016 at 9:19pm
बहुत शानदार प्रस्तुति, बधाई!
Comment by नादिर ख़ान on February 10, 2016 at 4:45pm

आज फिर खामोश सहमा सा कहीं आँगन कोई
सूँघ ली क्या बच्चियों ने बजबजाती सी नज़र ?   

कतरा कतरा हो रही है रूह जैसे अजनबी
मुझको मुझसे छीनती है हक़ जताती सी नज़र।

कुछ न कुछ कहती मुझे थी, पर न मैं ही सुन सकी
अब मुझे झकझोरती है कसमसाती सी नज़र।  

क्या कहने आदरणीया  प्राची जी बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने सभी शेर उम्दा है, बहुत मुबारकबाद इस प्रस्तुति के लिए ...... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"तुझे तेज धारा उधर ले न जाए   जिधर उठ रहे हैं भंवर धीरे धीरे। ("संभलना" शब्द के…"
18 minutes ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय दयाराम जी शुक्रिया  हौसला अफज़ाई केलिए       "
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय अजय गुप्ता जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है। बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है। बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय पूनम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पोस्ट पर आपकी टिप्पणी व सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय तिलकराज जी, पोस्ट पर आपकी टिप्पणी व सुझाव के लिए हार्दिक आभार। मतले में सुधार के लिए कुछ…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"" वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे धीरे" मुहब्बत  घटी   घर  इधर …"
4 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"जी अबपोस्ट की ग़ज़ल  गिरहके  साथ        "
4 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरे जलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे मचाया हवाओं ने कुहराम ऐसा गिरा टूट कर…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। आ. भाई तिलकराज जी की बात से सहमत…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service