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उनके रुख़सारों की गर्मी अलअमाँ सद अलअमाँ
सब चटानें बर्फ़ की यकलख़्त पानी हो गईं
वाह आदरणीय समर कबीर साहिब बहुत ही दिलकश ग़ज़ल पेश की है आपने सर ... खूबसूरत अहसासों को समेटे शे'रों के लिए दिल से बधाई स्वीकारें सर।
बहोत खूब
आदरणीय समर साहब क्या कहने आपका अंदाज बिल्कुल मुख्तलिफ होता है हर शेर अपने आप मे अकेला अपने शानदार उपस्थिति दर्ज करता हुबा । आदरणीय नीलेश का कहना सही है यहां तो एक गजल में ही हालत खराब थी और आप ने दो दो कह दी । खास कर इस गजल ने बहुत प्रभावित किया नये नये काफियों का प्रयोग बहुत अच्छा लगा । भवानी शब्द तो दिमाग में आया ही नहीं ।
हर शेर दम दार पर गुस्ताखी मुआफ हमें दूसरा शेर
उनके रुख़सारों की गर्मी अलअमाँ सद अलअमाँ
सब चटानें बर्फ़ की यकलख़्त पानी हो गईं
बहुत बहुत पंसद आया उसके लिये सैकड़ों मुबारक बाद और दाद हाजिर है । बहुत खूब । सादर
वाह वा..
भवानी ग़ज़ब काफ़िया मिलाया है सर ..
यहाँ तो एक ग़ज़ल में पसीने छूट गए और आप दो-दो कह गए ..
ग़ज़ब..
दाद और बधाई स्वीकार कीजिये
सादर
बेहतरीन गज़ल आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब ।हार्दिक बधाई।
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