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काश कहीं ऐसा हो जाता

काश कहीं ऐसा हो जाता, 

मैं जगता तू सो जाता 

मेरी हंसी तुझे मिल जाती 

तेरे बदले मैं रो लेता 

काश कहीं ऐसा हो जाता 

तू चलता मैं थक जाता 

पैर तेरे कभी ना रुकते…

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Added by AMAN SINHA on March 19, 2024 at 6:02am — No Comments

दोहा पंचक. . .

दोहा पंचक. . . . .

महफिल में तनहा जले, खूब हुए बदनाम ।

गैरों को देती रही, साकी भर -भर जाम ।।

गज़ब हया की सुर्खियाँ, अलसाए अन्दाज़ ।

सुर्खी सारे कह गई, बीती शब के राज़ ।।

साथी है अब वेदना, विरही मन की यार ।

विस्मृत होता ही नहीं, वो अद्भुत संसार ।।

उसे भुलाने के सभी, निष्फल हुए प्रयास ।

मदन भाव उन्नत हुए, मन में मचली प्यास ।।

कोई पागल हो गया, किसी ने खोये होश ।

आशिक को घायल करे, मदमाती आगोश…

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Added by Sushil Sarna on March 18, 2024 at 4:03pm — No Comments

आँख मिचौली

आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली 

बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए 

पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना 

ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं 

मैं आऊँ मैं आऊँ…

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Added by AMAN SINHA on March 16, 2024 at 6:16am — No Comments

ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )

221--2121--1221--212

दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही

जी कर भी क्या करोगे जो इज़्ज़त नहीं रही

झूठों की सल्तनत में हुआ सच का सर क़लम 

ऐसा भी सब में कहने की हिम्मत नहीं रही

जो फ़ाइलों में पुल था बना, कब का ढह गया

सरकारी काम काज में बरक़त नहीं रही

संसार लेन देन का बाज़ार बन गया

रिश्तों में अब लगाव की क़ीमत नहीं रही

देखो तो काम एक भी हमने कहाँ किया

पूछो तो एक पल की भी फ़ुर्सत नहीं…

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Added by दिनेश कुमार on March 12, 2024 at 5:16am — No Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . . .

कर्मों के परिणाम से, गाफिल क्यों  इंसान ।

ऐसे जीता जिंदगी, जैसे हो भगवान ।।

भौतिक युग की सम्पदा, कब देती आराम ।

अर्थ पाश में जिंदगी , भटके चारों याम ।।

नश्वर तन को मानता, अजर -अमर परिधान ।

बस में समझे साँस को, यह दम्भी  इंसान ।।

साथ चली किसके भला, अर्थ दम्भ की शान।

खाक चिता पर हो गई,  इंसानी पहचान ।।

कहे स्वयंभू स्वयं को , माटी का इंसान ।

मुट्ठी भर अवशेष बस,मैं -मैं की पहचान ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on March 10, 2024 at 3:13pm — No Comments

ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता )

1212--1122--1212--22

अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता

ग़ज़ल सुनो! मैं लतीफ़े सुना नहीं सकता

ग़मों के दौर में जो मुस्कुरा नहीं सकता

वो ज़िंदगी से यक़ीनन निभा नहीं सकता

ख़ुद अपने सीने पे ख़ंजर चला नहीं सकता

हर एक दोस्त को मैं आज़मा नहीं सकता 

वो जिसकी ताल ही है मेरी धड़कनों का सबब

वही तराना-ए-उल्फ़त मैं गा नहीं सकता 

वो आसमाँ का सितारा है, मैं ज़मीं का परिंद

मैं ख़्वाब में भी क़रीब…

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Added by दिनेश कुमार on March 10, 2024 at 7:10am — No Comments

दोहा पंचक. . . . .नारी

दोहा पंचक. . . नारी

नर नारी से श्रेष्ठ है, हुई पुरानी बात ।

जीवन के हर क्षेत्र में, नारी देती मात ।।

नर नारी के बीच अब, नहीं जीत अरु हार ।

बनी शक्ति पर्याय अब, वर्तमान की नार ।।

कंधे से कंधा मिला, दे जीवन को अर्थ ।

नारी अब हर क्षेत्र में, लगने लगी समर्थ ।।

अनुपम कृति है ईश  की, इस जग का आधार ।

लगे  अधूरा सृष्टि का , नारी बिन शृंगार ।।

आसमान छूने चली, कल की अबला नार ।

देख…

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Added by Sushil Sarna on March 9, 2024 at 5:35pm — No Comments

ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( आप क्यूँ दूर दूर हैं हम से )

2122--1212--22

वोदका, व्हिस्की और कभी रम से

दिल को निस्बत है क़िस्सा ए ग़म से

ख़्वाब झरते हैं चश्मे पुर-नम से

हम बहलते हैं अपने ही ग़म से

उसकी मर्ज़ी ही अपनी मर्ज़ी है 

क्यूँ गिला ज़िंदगी को फिर हम से 

छूट जाता जो मोह अपनों का

बुद्ध बन जाते हम भी गौतम से

कब तलक देखें हम तेरी तस्वीर

प्यास बुझती नहीं है शबनम से

शाम होने लगी है जीवन की

रंग उड़ने लगे हैं मौसम…

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Added by दिनेश कुमार on March 9, 2024 at 8:30am — No Comments

मेरे नाम की पाति

आज गाँव से पाति आई,

माँ के चरणों की मिट्टी लायी

वैसे तो ये बस धूल है लेकिन,

इसमे अपनों की महक समाई

पाति में सबके हिस्से है,

सबके अपने-अपने किस्से है

कहीं प्रेम है, कहीं…

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Added by AMAN SINHA on March 8, 2024 at 11:09pm — No Comments

ग़ज़ल: सही सही बता है क्या

1212 1212

सही सही बता है क्या

भला है क्या बुरा है क्या

न इश्क़ है न चारागर

तो दर्द की दवा है क्या

लहू सा लाल लाल है

ये आँख में जमा है क्या

बुझे बुझे से लोग हैं

ये ज़िंदगी सज़ा है क्या

अजीब कशमकश सी है

ये दिल तुझे हुआ है क्या

सुकून है न चैन है

यूँ जीने में मज़ा है क्या

जो खाक़ हो रहे हैं हम

किसी कि बद्दुआ है क्या

जला दिया तो…

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Added by Aazi Tamaam on March 6, 2024 at 7:00pm — No Comments

है खुश खूब झकझोर डाली हवा- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२

नगर भर  चले  दौड़  काली हवा

है खुश खूब झकझोर डाली हवा।१।

*

गिरे फूल कलियाँ विवश भूमि पर

बजा  पात  कहती  है  ताली हवा।२।

*

कभी दान जीवन सभी को दिया

हुई  आज  लेकिन  सवाली  हवा।३।

*

कहाँ  से  प्रदूषण  धरा  का  मिटे

नहीं  सीख  पायी  जुगाली  हवा।४।

*

कँपा शीत में नित बढ़ी जब तपन

गयी   लौट   कुल्लू मनाली   हवा।५।

*

तनिक तो कहीं बात होती है कुछ

किसी की चली कब है…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2024 at 11:04am — 6 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . .

बातें करते प्यार की, करें न सच्चा प्यार ।

इस स्वार्थी संसार में, सब मतलब के यार ।।

सच्चे- झूठे सब यहाँ, कैसे हो पहचान ।

कई मुखौटों में छिपा,कलियुग का इंसान ।।

सच्चा मन का मीत वो, सच्ची जिसकी प्रीति ।

वो क्या जाने प्रीति जो, सिर्फ निभाये रीत ।।

छलते हैं क्यों आजकल, व्याकुल मन को मीत ।

सिर्फ देह को भोगना, समझें अपनी जीत ।।

कैसे यह अनुबंध हैं, कैसे यह संबंध ।

देह क्षुधा के दौर में,…

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Added by Sushil Sarna on March 5, 2024 at 3:45pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . जीवन तो अनमोल है

दोहा सप्तक -  जीवन तो अनमोल है

जीवन तो अनमोल है,  इसके लाखों रंग ।

पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग ।1।

जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार ।

कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार ।2।

जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।

अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत  अर्थ ।3।

जीवन तो अनमोल है, इसके  अनगिन रूप ।

इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप  ।4।

जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।

बहुत कठिन है जानना , इसका अर्थ…

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Added by Sushil Sarna on March 3, 2024 at 2:36pm — No Comments

सम्राट समुद्रगुप्त

उदार शासक एक वीर योद्धा

कला-प्रतिभा का संरक्षक जिसे कहा

गुप्त वंश एक महान योद्धा, जिसे भारत का नेपोलियन सबने कहा।।

 

चंद्रगुप्त प्रथम का राजदुलारा

कुमारदेवी का पुत्र रहा

विनयशील जो मृदुलवाणी का, प्रखर बुद्धि का स्वामी हुआ।।

 

उत्तराधिकारी का प्रबल दावेदार

पराजित अग्रज काछा भी उससे हुआ

विजय अभियान की ख़ातिर जाना जाता, अजय-अभय एक योद्धा रहा।।

 

गृह कलह को शांत है…

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Added by PHOOL SINGH on March 1, 2024 at 4:30pm — No Comments

चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२

*

हमें  एक  नदिया  मिली  नाम की

न थी वो किसी प्यास के काम की।१।

*

जिसे देश कहते  हैं  सब राम का

वहीं  पर  फजीहत  हुई  राम की।२।

*

दुखाती है मन जो  महज याद से

करो अब न  बातें  उसी शाम की।३।

*

बिना उस के ये भी परायी गली

शरण में चलें  कौन  से धाम की।४।

*

मिटायेगी  वाणी  सभी  दूरियाँ

मिठासें रखो बस पके आम की।५।

*

चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर

घड़ी आ गयी तन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 29, 2024 at 10:42pm — No Comments

यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'



१२२ १२२/ १२२/१२

जिन्हें भाव जग में खले दीप के

वही  कहते  आरे  चले  दीप के।१।

*

यहाँ बाँध  घन्टी  गले दीप के

तमस जी रहा है तले दीप के।२।

*

बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को

नहीं एक  हम  ही  छले  दीप के।३।

*

चले है तमस  यूँ  दिखा आँख जो

लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।

*

कहाँ कब जले घर नहीं है पता

इरादे  कहाँ  अब  भले  दीप के।५।

*

परायों से बढ़ आज अपनो से भय

न बाती ही  कालिख …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2024 at 2:42pm — No Comments

अँधेरे उजाले मिले प्यार से- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२



अँधेरे    उजाले    मिले   प्यार   से

चकित है मनुज उनके व्यवहार से।१।

*

नहीं काम  आता  किसी  के कोई

मिटे  दुख  भला   कैसे  संसार  से।२।

*

हटा मैल मन का तनिक भी नहीं

नहा कर चले  नित्य  हरिद्वार से।३।

*

न बदला है  कोई  किसी के कहे

जो बदला स्वयं अपने आचार से।४।

*

अकेले न  तुम  हो  असंतुष्ट अब

हमें भी तो शिकवा है दो चार से।५।

*

शिखर चाहते   हैं  सजाना बहुत…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2024 at 11:14pm — No Comments

हर बार नई बात निकल आती है

बात यहीं खत्म होती तो और बात थी 

यहाँ तो हर बात में नई बात निकल आती है 

यूँ लगता है जैसे कि ये कोई बरगद का पेड़ है 

जहां से भी खोदो एक नई साख निकल आती है 

उलझने ऐसी है कि कोई छोड़ मिलती ही नहीं 

एक को खींचो तो संग मे दो चार चली…

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Added by AMAN SINHA on February 26, 2024 at 11:30am — No Comments

दोहा त्रयी .....

दोहा त्रयी. . . . .

जीवन में ऐश्वर्य के, साधन हुए अनेक ।
अर्थ दौड़ में खो गया, मानव धर्म विवेक ।।

चले न कोई साथ जब, साथ निभाता नाथ ।
संचित कितना भी करो, खाली रहते हाथ ।।

गौण हुईं अनुभूतियाँ, क्षीण हुए सम्बंध ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।

सुशील सरना / 23-2-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 22, 2024 at 1:31pm — 2 Comments

दोहा त्रयी. . . . . .

दोहा त्रयी. . . .

मन के मधुबन से हुई , लुप्त नेह की गंध ।
काई देती स्वार्थ की, रिश्तों में दुर्गन्ध ।।

बदल गया परिवार में, रिश्तों का अब रूप ।
तीखी लगती स्वार्थ की,  अब आँगन में धूप ।।

अर्थ रार में खो गए, रिश्ते सारे खास ।
धन वैभव ने भर दिया, जीवन मैं संत्रास ।।

सुशील सरना / 11-2-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 11, 2024 at 2:06pm — 2 Comments

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"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
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" आदरणीय अशोक जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
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pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"  कोई  बे-रंग  रह नहीं सकता होता  ऐसा कमाल  होली का...वाह.. इस सुन्दर…"
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pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली.. हार्दिक बधाई आदरणीय "
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