===========ग़ज़ल===========
बहरे- हजज
वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २
सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे
कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे
गरीबी ने मिटा डाला जिसे खाने के लाले हैं
चलाने अपना घर अच्छा बुरा वो काम क्या देखा
बना माँ बाप को अपना खुदा पूजा करो यारो
है जिसका घर यहाँ मंदिर वो तीरथ धाम क्या देखे
मिटा अभिमान खुद का कर रहा काली कमाई जो
सियासी बन गया अब नाम क्या बदनाम क्या देखे
बना आतंकवादी अब खड़ा बन्दूक ताने यूँ
जो छीने जिन्दगी पल में वो अल्ला-राम क्या देखे
संदीप पटेल "दीप"
Comment
बना माँ बाप को अपना खुदा पूजा करो यारो
है जिसका घर यहाँ मंदिर वो तीरथ धाम क्या देखे ,अति सुंदर अभिव्यक्ति संदीप जी ,बधाई
क्या भाई ? एकदम से साथ बहा ले गये ! वाह !
वैसे, इस मिसरे को पुनः देखें... बह्र के हिसाब से नहीं बल्कि गेयता के हिसाब से...
चलाने अपना घर अच्छा बुरा वो काम क्या देखा
ग़ज़ल की विधा में आपका प्रयास मुग्ध करता है. बधाई.. .
जो छीने जिन्दगी पल में वो अल्ला-राम क्या देखे ।
बहुत ही सुंदर रचना, अभिनंदन और धन्यवाद ।
आदरणीय वीनस सर जी कृपया ये स्नेह और सहयोग सहित मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखिये अनुज के प्रति आभारी हूँ आपकी हौसलाफजाई और जर्रानवाजी के लिए
आदरणीया डॉ. प्राची जी ...आदरणीय राजेश झा जी,, आदरणीय नादिर जी... आदरणीय वीनस सर जी आप सभी को सादर प्रणाम
आप सभी मेरी कही ग़ज़ल को वक़्त दिया और सराहा इसके लिए मैं आप सभी को तहे दिल से शुक्रिया
साथ साथ आप सभी का इस स्नेह के लिए आभारी हूँ
स्नेह बनाये रखिये अनुज पर यूँ ही
वाह वाह संदीप जी
पिछले कुछ दिन से आपकी ग़ज़लों के स्तर में एक बड़ी उछल देखने को मिली है
हुजूर आपके शेयर का भाव बढता जा रहा है :) :) :)
यह ग़ज़ल भी हाई रेटेड जा रही है
जय हो
बहुत सुन्दर ग़ज़ल संदीप जी
उच्च कहन युक्त हर शेर के लिए हार्दिक बधाई .
जो छीने जिन्दगी पल में वो अल्ला-राम क्या देखे
बहुत उम्दा बात कही, लोग ईश्वर के नाम पर लड़ते है पर उसे पहचानते नहीं ।
बहुत सुंदर संदीप जी
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